Article 93 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-01 12:12:13
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 93
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 93
लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष अनुच्छेद 93 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह लोकसभा के अध्यक्ष (Speaker) और उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) के पदों को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद लोकसभा की कार्यवाही को संचालित करने और इसकी व्यवस्था बनाए रखने के लिए इन पदों की स्थापना और भूमिका को रेखांकित करता है।
अनुच्छेद 93 का पूर्ण विवरण
अनुच्छेद 93 का प्रावधान निम्नलिखित है
लोकसभा अपने सदस्यों में से यथाशीघ्र (as soon as may be) एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का निर्वाचन करेगी। यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है, तो लोकसभा अपने सदस्यों में से किसी अन्य व्यक्ति को इन पदों के लिए चुनेगी।
अनुच्छेद 93 की मुख्य विशेषताएं
अध्यक्ष का निर्वाचन: लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा के सदस्यों द्वारा चुना जाता है। यह पद संसद की कार्यवाही में निष्पक्षता और व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
उपाध्यक्ष की भूमिका: उपाध्यक्ष भी लोकसभा के सदस्यों में से चुना जाता है और अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उनकी जिम्मेदारियों को संभालता है।
निरंतरता सुनिश्चित करना: यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है (जैसे इस्तीफा, अयोग्यता, या अन्य कारणों से), तो लोकसभा तुरंत नए व्यक्ति का चयन करती है, जिससे कार्यवाही में कोई रुकावट न आए।
लोकसभा की स्वायत्तता: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन लोकसभा के भीतर होता है, जो इसकी स्वायत्तता और आत्म-नियमन की क्षमता को दर्शाता है।
निष्पक्षता की अपेक्षा: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी भूमिका में निष्पक्ष रहें और लोकसभा की कार्यवाही को निष्पक्षता और संवैधानिक मर्यादा के साथ संचालित करें।
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992) (दलबदल मामला)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत अध्यक्ष की भूमिका और उनके निर्णयों की वैधता पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 93 के तहत चुने गए अध्यक्ष को दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता के मामलों में निर्णय लेने की शक्ति है, लेकिन उनके निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं, यदि वे मनमाने या असंवैधानिक हों।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 93 के तहत अध्यक्ष की भूमिका की निष्पक्षता और जवाबदेही को रेखांकित किया।
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में बिहार विधानसभा के विघटन और अध्यक्ष की भूमिका पर विचार किया गया, जो अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्छेद 93 से संबंधित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष की कार्रवाइयां संवैधानिक ढांचे के भीतर और निष्पक्षता के साथ होनी चाहिए। उनके निर्वाचन (अनुच्छेद 93) और कर्तव्यों की संवैधानिकता महत्वपूर्ण है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 93 के तहत अध्यक्ष की भूमिका की संवैधानिकता को मजबूत किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और अध्यक्ष की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 93 के तहत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा है, जो संविधान की मूल संरचना के अधीन है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 93 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के उपाध्यक्ष की भूमिका और उनके निर्वाचन पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 93 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष (या समकक्ष) का निर्वाचन और उनकी कार्रवाइयां संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करनी चाहिए और निष्पक्ष होनी चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 93 के तहत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के निर्वाचन की संवैधानिकता को रेखांकित किया।
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