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Article 91 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 11:54:32
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 91

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 91
उपसभापति या अन्य व्यक्ति द्वारा सभापति के कर्तव्यों का पालन अनुच्छेद 91 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह राज्यसभा के सभापति (Chairman, जो उपराष्ट्रपति होता है) के कर्तव्यों को उपसभापति (Deputy Chairman) या अन्य व्यक्ति द्वारा पालन करने की व्यवस्था को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद सभापति की अनुपस्थिति या अक्षमता की स्थिति में राज्यसभा की कार्यवाही की निरंतरता सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 91 का पूर्ण विवरण
अनुच्छेद 91 के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं
अनुच्छेद 91(1): जब सभापति का पद रिक्त हो, या सभापति (उपराष्ट्रपति) राष्ट्रपति के कर्तव्यों का पालन कर रहा हो (अनुच्छेद 65 के तहत), तो उपसभापति सभापति के कर्तव्यों का पालन करेगा। उपसभापति को इस दौरान सभापति की सभी शक्तियां, विशेषाधिकार, और उन्मुक्तियां प्राप्त होंगी।
अनुच्छेद 91(2): जब सभापति और उपसभापति दोनों अनुपस्थित हों, या दोनों अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हों, तो राज्यसभा द्वारा अपने सदस्यों में से चुना गया कोई अन्य व्यक्ति सभापति के कर्तव्यों का पालन करेगा। ऐसा व्यक्ति सभापति की शक्तियों, विशेषाधिकारों, और उन्मुक्तियों का हकदार होगा, जब तक वह इन कर्तव्यों का पालन करता है।
अनुच्छेद 91 की मुख्य विशेषताएं
निरंतरता सुनिश्चित करना: अनुच्छेद 91 यह सुनिश्चित करता है कि सभापति की अनुपस्थिति, रिक्ति, या अक्षमता की स्थिति में राज्यसभा की कार्यवाही बाधित न हो। उपसभापति या अन्य चुना गया व्यक्ति कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करता है।
उपसभापति की प्राथमिकता: उपसभापति को सभापति के कर्तव्यों का पालन करने में प्राथमिकता दी जाती है, जो उनकी संवैधानिक भूमिका को मजबूत करता है।
लचीलापन: यदि सभापति और उपसभापति दोनों अनुपस्थित हों, तो राज्यसभा को अपने सदस्यों में से किसी को चुनने की स्वतंत्रता है, जो प्रक्रियात्मक लचीलापन प्रदान करता है।
शक्तियों और विशेषाधिकारों का हस्तांतरण: सभापति के कर्तव्यों का पालन करने वाला व्यक्ति (उपसभापति या अन्य) सभापति की शक्तियों और विशेषाधिकारों का उपयोग कर सकता है, जो निष्पक्ष और प्रभावी संचालन के लिए आवश्यक है।
संवैधानिक जवाबदेही: यह प्रावधान राज्यसभा की स्वायत्तता को बनाए रखता है, क्योंकि वैकल्पिक व्यक्ति का चयन सदन के भीतर होता है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992) (दलबदल मामला)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत सभापति/अध्यक्ष की भूमिका और उनके निर्णयों की वैधता पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभापति या उनकी अनुपस्थिति में उपसभापति (अनुच्छेद 91) द्वारा लिए गए निर्णय संवैधानिक ढांचे के अधीन हैं और न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकते हैं। निष्पक्षता अनिवार्य है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 91 के तहत उपसभापति की भूमिका की निष्पक्षता और जवाबदेही को रेखांकित किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के उपाध्यक्ष की भूमिका और सत्रों के संचालन पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 91 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपसभापति (या समकक्ष) द्वारा कर्तव्यों का पालन संवैधानिक प्रावधानों और निष्पक्षता के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए। मनमानी कार्रवाइयां असंवैधानिक हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 91 के तहत उपसभापति या अन्य व्यक्ति की भूमिका की संवैधानिकता को मजबूत किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और सभापति/उपसभापति की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 91 के तहत सभापति के कर्तव्यों का पालन करने की व्यवस्था संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा है, जो संविधान की मूल संरचना के अधीन है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 91 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के विघटन और सभापति/उपसभापति की भूमिका पर विचार किया गया, जो अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्छेद 91 से संबंधित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभापति या उपसभापति द्वारा कार्यवाही का संचालन संवैधानिक ढांचे के भीतर और निष्पक्षता के साथ होना चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 91 के तहत कर्तव्यों के पालन में निष्पक्षता की आवश्यकता को रेखांकित किया।
Conclusion
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