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Article 90 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 11:51:56
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 90

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 90
सभापति या उपसभापति का पद रिक्त होना, त्यागपत्र, और हटाना अनुच्छेद 90 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह राज्यसभा के सभापति (Chairman) और उपसभापति (Deputy Chairman) के पद की रिक्ति, उनके त्यागपत्र, और हटाने की प्रक्रिया को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद राज्यसभा की कार्यवाही में निरंतरता और संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए इन पदों के प्रबंधन को नियंत्रित करता है।
अनुच्छेद 90(a): सभापति (उपराष्ट्रपति) या उपसभापति का पद तब रिक्त हो जाता है, जब: सभापति के मामले में, वह उपराष्ट्रपति के पद से हट जाता है (अनुच्छेद 67 के तहत)। उपसभापति के मामले में, वह राज्यसभा की सदस्यता से हट जाता है (उदाहरण के लिए, अयोग्यता या इस्तीफे के कारण)।
अनुच्छेद 90(b): सभापति या उपसभापति अपने पद से त्यागपत्र दे सकता है: सभापति (उपराष्ट्रपति) अपने त्यागपत्र को राष्ट्रपति को संबोधित करेगा। उपसभापति अपने त्यागपत्र को सभापति (उपराष्ट्रपति) को संबोधित करेगा। त्यागपत्र लिखित रूप में होना चाहिए और इसे स्वीकार किए जाने पर प्रभावी हो जाता है।
अनुच्छेद 90(c): उपसभापति को हटाया जा सकता है, यदि राज्यसभा द्वारा प्रस्ताव पारित किया जाए: इस प्रस्ताव को राज्यसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत (Absolute Majority) से पारित करना होगा।
प्रस्ताव पर विचार करने से पहले, कम से कम 14 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है।
सभापति (उपराष्ट्रपति) को हटाने की प्रक्रिया अनुच्छेद 90 के तहत नहीं, बल्कि अनुच्छेद 67(b) के तहत आती है, जो उपराष्ट्रपति के हटाने के लिए अलग प्रक्रिया निर्धारित करता है।
अनुच्छेद 90 की मुख्य विशेषताएं
सभापति की रिक्ति: चूंकि सभापति उपराष्ट्रपति होता है, उसका पद केवल तभी रिक्त होता है, जब वह उपराष्ट्रपति के पद से हटता है (जैसे कार्यकाल समाप्ति, त्यागपत्र, या हटाने के कारण)।
उपसभापति की रिक्ति और हटाने की प्रक्रिया: उपसभापति का पद रिक्त हो सकता है यदि वह राज्यसभा का सदस्य नहीं रहता या त्यागपत्र देता है। हटाने के लिए राज्यसभा का विशेष बहुमत और 14 दिन का नोटिस आवश्यक है, जो निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
संवैधानिक संतुलन: सभापति और उपसभापति के लिए अलग-अलग प्रक्रियाएं (उपराष्ट्रपति के लिए अनुच्छेद 67 और उपसभापति के लिए अनुच्छेद 90) संवैधानिक ढांचे में संतुलन बनाए रखती हैं।
निष्पक्षता और जवाबदेही: उपसभापति को हटाने की प्रक्रिया में उच्च मानक (विशेष बहुमत और नोटिस) यह सुनिश्चित करते हैं कि यह प्रक्रिया मनमानी न हो और राज्यसभा की स्वायत्तता बनी रहे।
प्रक्रियात्मक सुरक्षा: 14 दिन के नोटिस का प्रावधान उपसभापति को अपने पक्ष रखने का अवसर देता है, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992) (दलबदल मामला)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत सभापति/अध्यक्ष की भूमिका और उनके निर्णयों की वैधता पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभापति (अनुच्छेद 89) और उपसभापति की कार्रवाइयां, विशेष रूप से दलबदल मामलों में, संवैधानिक ढांचे के अधीन हैं और न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकती हैं। हटाने की प्रक्रिया (अनुच्छेद 90) में निष्पक्षता अनिवार्य है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 90(c) के तहत उपसभापति को हटाने की प्रक्रिया की निष्पक्षता को रेखांकित किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के उपाध्यक्ष की भूमिका और हटाने की प्रक्रिया पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 90 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपसभापति (या उपाध्यक्ष) को हटाने की प्रक्रिया संवैधानिक प्रावधानों का पालन करनी चाहिए, जिसमें नोटिस और निष्पक्ष सुनवाई शामिल है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 90(c) के तहत हटाने की प्रक्रिया की संवैधानिकता और निष्पक्षता को मजबूत किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और सभापति/उपसभापति की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 90 के तहत सभापति और उपसभापति की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा है, जो संविधान की मूल संरचना के अधीन है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 90 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य (1974)
पृष्ठभूमि: इस मामले में राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद की भूमिका पर विचार किया गया, जिसमें उपराष्ट्रपति की भूमिका पर भी अप्रत्यक्ष चर्चा हुई।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपराष्ट्रपति (सभापति) की शक्तियां संवैधानिक ढांचे के भीतर हैं, और त्यागपत्र या हटाने की प्रक्रिया (अनुच्छेद 90 और 67) संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करती है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 90 के तहत सभापति की रिक्ति और त्यागपत्र की प्रक्रिया की वैधता को रेखांकित किया।
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