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Article 89 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 11:49:12
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 89

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 89
राज्यसभा का सभापति और उपसभापति अनुच्छेद 89 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह राज्यसभा के सभापति (Chairman) और उपसभापति (Deputy Chairman) के पदों को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद राज्यसभा की कार्यवाही को संचालित करने और इसकी व्यवस्था बनाए रखने के लिए इन पदों की भूमिका और नियुक्ति की प्रक्रिया को रेखांकित करता है।
अनुच्छेद 89(1): उपराष्ट्रपति (Vice-President of India) राज्यसभा का सभापति होगा। यह प्रावधान उपराष्ट्रपति को राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करने की जिम्मेदारी देता है।
अनुच्छेद 89(2): राज्यसभा अपने सदस्यों में से एक उपसभापति (Deputy Chairman) का निर्वाचन करेगी। उपसभापति सभापति की अनुपस्थिति में या जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा हो (अनुच्छेद 65 के तहत), राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करेगा।
अनुच्छेद 89(3): यदि उपसभापति का पद रिक्त हो, तो राज्यसभा अपने सदस्यों में से किसी अन्य व्यक्ति को उस सत्र के लिए या रिक्ति की अवधि के लिए कार्यवाहक उपसभापति के रूप में चुन सकती है।
अनुच्छेद 89 की मुख्य विशेषताएं
उपराष्ट्रपति की भूमिका: उपराष्ट्रपति, जो संविधान के अनुच्छेद 63 के तहत निर्वाचित होता है, स्वतः ही राज्यसभा का सभापति होता है। यह राज्यसभा की कार्यवाही में निष्पक्षता और संवैधानिक गरिमा सुनिश्चित करता है।
उपसभापति का निर्वाचन: उपसभापति का निर्वाचन राज्यसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है, जो इसकी स्वायत्तता को दर्शाता है। यह पद सभापति की अनुपस्थिति में कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण है।
निष्पक्षता की अपेक्षा: सभापति और उपसभापति से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी भूमिका में निष्पक्ष रहें और संसद की कार्यवाही को निष्पक्षता और व्यवस्था के साथ संचालित करें।
लचीलापन: अनुच्छेद 89(3) रिक्ति की स्थिति में कार्यवाहक उपसभापति के चयन की अनुमति देता है, जो राज्यसभा की कार्यवाही में निरंतरता सुनिश्चित करता है।
संवैधानिक संतुलन: सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति की भूमिका विधायिका और कार्यपालिका के बीच संवैधानिक संतुलन को दर्शाती है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992) (दलबदल मामला)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) और सभापति/अध्यक्ष की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभापति (अनुच्छेद 89) और अध्यक्ष (अनुच्छेद 93) की दलबदल मामलों में निर्णय लेने की शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है। सभापति को निष्पक्षता के साथ कार्य करना चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 89 के तहत सभापति की भूमिका की निष्पक्षता और जवाबदेही को रेखांकित किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के उपाध्यक्ष की भूमिका और सत्रों के संचालन पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 89 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपसभापति (या उपाध्यक्ष) की भूमिका संवैधानिक ढांचे के भीतर होनी चाहिए, और उनकी कार्रवाइयां निष्पक्ष और संवैधानिक होनी चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 89(2) के तहत उपसभापति की भूमिका की संवैधानिकता को मजबूत किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और सभापति की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 89 के तहत सभापति और उपसभापति की भूमिका संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा है, जो संविधान की मूल संरचना के अधीन है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 89 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के विघटन और सभापति की भूमिका पर विचार किया गया, जो अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्छेद 89 से संबंधित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभापति की कार्यवाही संवैधानिक ढांचे के भीतर होनी चाहिए और निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए।
प्रभाव: इसने सभापति की निष्पक्षता और संवैधानिक जवाबदेही को रेखांकित किया।
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