Article 88 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-01 11:46:27
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 88
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 88
मंत्रियों और महान्यायवादी के संसद में अधिकार अनुच्छेद 88 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह मंत्रियों और भारत के महान्यायवादी (Attorney General of India) को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में भाग लेने के अधिकारों को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद कार्यपालिका और विधायिका के बीच समन्वय को सुनिश्चित करता है, जिससे सरकार की नीतियों और कानूनी मामलों पर संसद में प्रभावी चर्चा हो सके।
अनुच्छेद 88(1): प्रत्येक मंत्री और भारत का महान्यायवादी (Attorney General of India) को संसद के प्रत्येक सदन (लोकसभा और राज्यसभा) में बोलने और उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होगा। यदि कोई मंत्री या महान्यायवादी उस सदन का सदस्य नहीं है, तो भी उन्हें उस सदन में बोलने और कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 88(2): इस अनुच्छेद के तहत मंत्रियों और महान्यायवादी को दिए गए अधिकारों के बावजूद, वे उस सदन में मतदान (Voting) नहीं कर सकते, जिसके वे सदस्य नहीं हैं।
अनुच्छेद 88 की मुख्य विशेषताएं
मंत्रियों की संसद में उपस्थिति: अनुच्छेद 88 मंत्रियों को संसद के दोनों सदनों में उपस्थित होने और सरकार की नीतियों, विधेयकों, और अन्य मामलों पर बोलने का अधिकार देता है, भले ही वे किसी एक सदन के सदस्य हों। यह कार्यपालिका और विधायिका के बीच संवाद को मजबूत करता है।
महान्यायवादी की भूमिका: महान्यायवादी, जो भारत सरकार का प्रमुख कानूनी सलाहकार होता है (अनुच्छेद 76), संसद में कानूनी मामलों पर सरकार का पक्ष रख सकता है। यह विधायी प्रक्रिया में कानूनी स्पष्टता और विशेषज्ञता को बढ़ावा देता है।
सीमित मतदान अधिकार: मंत्रियों और महान्यायवादी को केवल उस सदन में मतदान का अधिकार है, जिसके वे सदस्य हैं। यह संसद की संरचना और सदस्यता के सिद्धांत को बनाए रखता है।
संसदीय जवाबदेही: मंत्रियों की दोनों सदनों में उपस्थिति और बोलने की क्षमता सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करती है, क्योंकि वे सांसदों के सवालों का जवाब दे सकते हैं और नीतियों का बचाव कर सकते हैं।
लचीलापन: यह प्रावधान उन मंत्रियों को भी संसद में भाग लेने की अनुमति देता है जो राज्यसभा के सदस्य हैं, लेकिन लोकसभा में सरकार का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं, या इसके विपरीत।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य (1974)
पृष्ठभूमि: इस मामले में राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद के बीच संबंधों पर विचार किया गया, जिसमें मंत्रियों की संसद में भूमिका पर भी चर्चा हुई।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 88 के तहत मंत्रियों का संसद में बोलना और भाग लेना संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा है। यह मंत्रिपरिषद की सामूहिक जवाबदेही (अनुच्छेद 75(3)) को लागू करने में मदद करता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 88 के तहत मंत्रियों की संसदीय जवाबदेही को रेखांकित किया।
एस.पी. आनंद बनाम एच.डी. देवे गौड़ा (1996)
पृष्ठभूमि: इस मामले में मंत्रियों की नियुक्ति और उनकी संसद में भूमिका पर सवाल उठा।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 88 मंत्रियों को दोनों सदनों में भाग लेने का अधिकार देता है, भले ही वे किसी एक सदन के सदस्य हों। यह संसद और कार्यपालिका के बीच समन्वय को सुनिश्चित करता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 88 के तहत मंत्रियों के अधिकारों की पुष्टि की।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और कार्यपालिका की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 88 के तहत मंत्रियों और महान्यायवादी की संसद में भागीदारी संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा है, जो संविधान की मूल संरचना के अधीन है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 88 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के विघटन और मंत्रियों की भूमिका पर विचार किया गया, जो अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्छेद 88 से संबंधित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंत्रियों की संसद में भागीदारी (अनुच्छेद 88) सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता को सुनिश्चित करती है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 88 के तहत मंत्रियों की भूमिका के महत्व को रेखांकित किया।
अनुच्छेद 88 की सीमाएं
मतदान की सीमा: मंत्रियों और महान्यायवादी को उस सदन में मतदान का अधिकार नहीं है, जिसके वे सदस्य नहीं हैं। यह संसद की सदस्यता के सिद्धांत को बनाए रखता है।
मंत्रिपरिषद की सलाह: मंत्रियों और महान्यायवादी की संसद में भागीदारी मंत्रिपरिषद की सामूहिक नीति के अनुरूप होनी चाहिए, क्योंकि वे सरकार का हिस्सा हैं।
न्यायिक समीक्षा: यदि मंत्रियों या महान्यायवादी की संसद में कार्रवाइयां संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती हैं, तो वे न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकती हैं, हालांकि ऐसे मामले दुर्लभ हैं।
संसद की स्वायत्तता: मंत्रियों और महान्यायवादी की भागीदारी संसद की कार्यवाही को प्रभावित कर सकती है, लेकिन अंतिम निर्णय संसद के सदस्यों के पास होता है।
Conclusion
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jp Singh
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