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Article 87 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 11:43:14
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 87

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 87
राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण अनुच्छेद 87 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह राष्ट्रपति के विशेष अभिभाषण (Special Address by the President) से संबंधित है। यह अनुच्छेद उन विशिष्ट अवसरों को परिभाषित करता है जब राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को संबोधित करता है और इस अभिभाषण पर संसद की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह भारत की संसदीय शासन प्रणाली में एक महत्वपूर्ण औपचारिक परंपरा है।
अनुच्छेद 87(1): राष्ट्रपति निम्नलिखित अवसरों पर संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) को एक साथ संबोधित करेगा
प्रत्येक सामान्य निर्वाचन के बाद लोकसभा के प्रथम सत्र की शुरुआत में।
प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र की शुरुआत में। यह अभिभाषण, जिसे राष्ट्रपति का अभिभाषण (President’s Address) कहा जाता है, सरकार की नीतियों, उपलब्धियों, और भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
अनुच्छेद 87(2): प्रत्येक सदन (लोकसभा और राज्यसभा) में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के लिए एक प्रस्ताव पेश किया जाएगा।
इस प्रस्ताव को धन्यवाद प्रस्ताव (Motion of Thanks) कहा जाता है, और इस पर संसद में विस्तृत चर्चा होती है। इस दौरान सांसद अभिभाषण में उल्लिखित नीतियों और मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करते हैं।
इस प्रस्ताव में संशोधन किए जा सकते हैं, जो सरकार की नीतियों पर सांसदों की राय को दर्शाते हैं।
अनुच्छेद 87 की मुख्य विशेषताएं
राष्ट्रपति का अभिभाषण: राष्ट्रपति का अभिभाषण संसद के सत्र की शुरुआत में एक औपचारिक और संवैधानिक परंपरा है। यह मंत्रिपरिषद द्वारा तैयार किया जाता है और सरकार की नीतिगत प्राथमिकताओं को दर्शाता है।
धन्यवाद प्रस्ताव: अनुच्छेद 87(2) के तहत धन्यवाद प्रस्ताव संसद में सरकार की नीतियों पर चर्चा का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। यह विपक्ष को सरकार की नीतियों की आलोचना करने और वैकल्पिक सुझाव देने का मंच देता है।
मंत्रिपरिषद की भूमिका: अभिभाषण की सामग्री मंत्रिपरिषद द्वारा तैयार की जाती है, और राष्ट्रपति इसे केवल संवैधानिक प्रमुख के रूप में प्रस्तुत करता है (अनुच्छेद 74)।
संसद की स्वायत्तता: धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान संसद स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त कर सकती है। संशोधन और मतदान के माध्यम से सांसद सरकार की नीतियों पर अपनी सहमति या असहमति दर्ज कर सकते हैं।
संवैधानिक महत्व: राष्ट्रपति का अभिभाषण और धन्यवाद प्रस्ताव संसद और कार्यपालिका के बीच संवाद को मजबूत करता है, जो संसदीय लोकतंत्र का आधार है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में बिहार विधानसभा के विघटन पर विचार किया गया, जिसमें संसद की कार्यवाही और राष्ट्रपति की भूमिका पर अप्रत्यक्ष रूप से चर्चा हुई।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति का अभिभाषण (अनुच्छेद 87) मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होता है और संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा है। यह संवैधानिक ढांचे के भीतर होना चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 87 के तहत अभिभाषण की संवैधानिक सीमाओं को रेखांकित किया।
एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)
पृष्ठभूमि: यह मामला अनुच्छेद 356 से संबंधित था, लेकिन इसमें संसद की कार्यवाही और राष्ट्रपति की भूमिका पर चर्चा हुई।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति का अभिभाषण (अनुच्छेद 87) संसद और कार्यपालिका के बीच संवाद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मंत्रिपरिषद की नीतियों को दर्शाता है और संसद में चर्चा के लिए आधार प्रदान करता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 87 के तहत अभिभाषण के महत्व को स्पष्ट किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और राष्ट्रपति की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 87 के तहत राष्ट्रपति का अभिभाषण संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा है, जो संविधान की मूल संरचना के अधीन है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 87 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016):
पृष्ठभूमि: इस मामले में राज्यपाल की विधानमंडल के सत्रों और संदेशों पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 87 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति (या राज्यपाल) का अभिभाषण संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है और मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होना चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 87 के तहत अभिभाषण की प्रक्रिया की संवैधानिकता को रेखांकित किया।
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