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Article 86 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 11:39:46
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 86

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 86
राष्ट्रपति का संसद को संबोधन और संदेश भेजने का अधिकार अनुच्छेद 86 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) को संबोधित करने और संदेश भेजने की शक्ति प्रदान करता है। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका को विधायी प्रक्रिया में मजबूत करता है और संसद के साथ उनके संचार को सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 86(1): राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) को एक साथ या अलग-अलग संबोधित कर सकता है।
राष्ट्रपति प्रत्येक सामान्य निर्वाचन के बाद लोकसभा के प्रथम सत्र और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र की शुरुआत में संसद को संबोधित करेगा। यह संबोधन आमतौर पर राष्ट्रपति का अभिभाषण (President’s Address) के रूप में जाना जाता है, जिसमें सरकार की नीतियों और योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत की जाती है।
अनुच्छेद 86(2): राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन या दोनों सदनों को एक साथ संदेश (Messages) भेज सकता है, चाहे वह किसी लंबित विधेयक से संबंधित हो या किसी अन्य मामले से। जिस सदन को संदेश भेजा जाता है, उसे उचित समय में उस संदेश पर विचार करना होगा।
अनुच्छेद 86 की मुख्य विशेषताएं
राष्ट्रपति का अभिभाषण: अनुच्छेद 86(1) के तहत राष्ट्रपति का संसद को संबोधित करना एक औपचारिक और संवैधानिक परंपरा है। यह अभिभाषण मंत्रिपरिषद द्वारा तैयार किया जाता है और सरकार की नीतियों, उपलब्धियों, और भविष्य की योजनाओं को दर्शाता है।
संदेश भेजने की शक्ति: अनुच्छेद 86(2) राष्ट्रपति को किसी भी महत्वपूर्ण मामले पर संसद को संदेश भेजने की शक्ति देता है। यह संदेश विधायी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है, जैसे किसी विधेयक पर विचार करने की सलाह देना।
मंत्रिपरिषद की भूमिका: राष्ट्रपति का अभिभाषण और संदेश मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होते हैं (अनुच्छेद 74), जो संसदीय शासन प्रणाली में मंत्रिपरिषद की प्राथमिकता को दर्शाता है।
संसद की जवाबदेही: संसद को राष्ट्रपति के संदेश पर उचित समय में विचार करना अनिवार्य है, जो संवैधानिक संतुलन और सहयोग को सुनिश्चित करता है।
संवैधानिक औपचारिकता: राष्ट्रपति का अभिभाषण और संदेश भेजने की प्रक्रिया भारत की संसदीय प्रणाली में एक औपचारिक परंपरा है, जो विधायी प्रक्रिया में राष्ट्रपति की प्रतीकात्मक भूमिका को रेखांकित करती है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में बिहार विधानसभा के विघटन पर विचार किया गया, जिसमें राष्ट्रपति की भूमिका और संसद की कार्यवाही पर अप्रत्यक्ष रूप से चर्चा हुई।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति की शक्तियां, जैसे संसद को संबोधित करना या संदेश भेजना (अनुच्छेद 86), मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होती हैं। ये शक्तियां संवैधानिक ढांचे के भीतर होनी चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 86 के तहत राष्ट्रपति की भूमिका की संवैधानिक सीमाओं को रेखांकित किया।
एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)
पृष्ठभूमि: यह मामला अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) से संबंधित था, लेकिन इसमें राष्ट्रपति की संसद के साथ संचार की भूमिका पर भी चर्चा हुई।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति का संसद को संदेश भेजने का अधिकार (अनुच्छेद 86(2)) विधायी प्रक्रिया में सहयोग को बढ़ावा देता है। यह मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होना चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 86(2) के तहत संदेशों की प्रक्रिया को स्पष्ट किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और राष्ट्रपति की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 86 के तहत राष्ट्रपति का अभिभाषण और संदेश भेजने का अधिकार संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा है, जो संविधान की मूल संरचना के अधीन है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 86 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016):
पृष्ठभूमि: इस मामले में राज्यपाल की स विधानमंडल के सत्रों और संदेशों पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 86 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति (या राज्यपाल) का संदेश भेजने का अधिकार संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है, और यह मंत्रिपरिषद (या मंत्रिमंडल) की सलाह पर आधारित होना चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 86(2) के तहत संदेशों की प्रक्रिया की संवैधानिकता को रेखांकित किया।
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