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Article 85 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 11:35:43
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 85

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 85
संसद के सत्र, सत्रावसान, और विघटन अनुच्छेद 85 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह संसद के सत्रों को बुलाने, सत्रावसान (Prorogation), और लोकसभा के विघटन (Dissolution) से संबंधित प्रक्रियाओं को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद संसद की कार्यवाही को व्यवस्थित करने और विधायी प्रक्रिया की निरंतरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अनुच्छेद 85(1): राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) को सत्र के लिए बुलाएगा। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संसद का कोई भी सत्र समाप्त होने के बाद छह महीने से अधिक का अंतराल न हो। इसका अर्थ है कि संसद को कम से कम हर छह महीने में एक बार सत्र के लिए बुलाया जाना चाहिए।
अनुच्छेद 85(2): राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को सत्रावसान (Prorogue) कर सकता है, यानी सत्र को समाप्त कर सकता है।
राष्ट्रपति लोकसभा को भंग (Dissolve) भी कर सकता है, जिससे उसका कार्यकाल समाप्त हो जाता है और नए चुनाव की प्रक्रिया शुरू होती है। ये दोनों कार्रवाइयां मंत्रिपरिषद की सलाह पर की जाती हैं (अनुच्छेद 74)।
अनुच्छेद 85 की मुख्य विशेषताएं
नियमित सत्र: अनुच्छेद 85(1) यह सुनिश्चित करता है कि संसद नियमित रूप से सत्र आयोजित करे, ताकि विधायी और प्रशासनिक मामलों पर चर्चा और निर्णय लिया जा सके। छह महीने का अंतराल नियम लोकतांत्रिक जवाबदेही को बनाए रखता है।
राष्ट्रपति की भूमिका: सत्र बुलाने, सत्रावसान करने, और लोकसभा को भंग करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास है, लेकिन यह मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होती है, जो संसदीय शासन प्रणाली के सिद्धांत को दर्शाता है।
लोकसभा का विघटन: लोकसभा का विघटन आमतौर पर तब होता है जब मंत्रिपरिषद लोकसभा में विश्वास खो देती है या कार्यकाल पूरा होने पर नए चुनाव की आवश्यकता होती है। यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक जनादेश को ताजा रखने में मदद करती है।
राज्यसभा की स्थायित्व: चूंकि राज्यसभा एक स्थायी सदन है (अनुच्छेद 83(1)), यह सत्रावसान या लोकसभा के विघटन से प्रभावित नहीं होती। यह विधायी निरंतरता प्रदान करता है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में बिहार विधानसभा के विघटन की संवैधानिकता पर सवाल उठा, जो अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्छेद 85(2) के तहत लोकसभा के विघटन से संबंधित सिद्धांतों को छूता है।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकसभा का विघटन (अनुच्छेद 85(2)) राष्ट्रपति की शक्ति है, लेकिन यह मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होना चाहिए। यदि विघटन मनमाना या असंवैधानिक है, तो यह न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 85(2) के तहत विघटन की प्रक्रिया की संवैधानिक जवाबदेही को रेखांकित किया।
एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)
पृष्ठभूमि: यह मामला अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) से संबंधित था, लेकिन इसमें लोकसभा की भूमिका और उसके विघटन पर भी अप्रत्यक्ष रूप से चर्चा हुई।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकसभा का विघटन (अनुच्छेद 85(2)) संवैधानिक ढांचे के भीतर होना चाहिए। यदि मंत्रिपरिषद लोकसभा में विश्वास खो देती है, तो विघटन आवश्यक हो सकता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 85(2) और मंत्रिपरिषद की जवाबदेही के बीच संबंध को स्पष्ट किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016):
पृष्ठभूमि: इस मामले में राज्यपाल की भूमिका और विधानसभा के सत्रों पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 85 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद के सत्र बुलाने की शक्ति (अनुच्छेद 85(1)) संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है, और यह मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होनी चाहिए। मनमानी कार्रवाइयां संवैधानिक नहीं हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 85(1) के तहत सत्र बुलाने की प्रक्रिया की संवैधानिकता को रेखांकित किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और सत्रों पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 85 के तहत संसद के सत्र और विघटन की प्रक्रिया संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है, क्योंकि यह लोकतांत्रिक और संसदीय शासन प्रणाली को बनाए रखता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 85 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
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