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Article 84 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 11:33:04
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 84

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 84
संसद के सदस्यों की योग्यता अनुच्छेद 84 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य बनने की योग्यताओं को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि संसद के सदस्य बनने वाले व्यक्ति कुछ न्यूनतम मानदंडों को पूरा करें, जो भारत की संसदीय लोकतंत्र की अखंडता को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
अनुच्छेद 84 के अनुसार, संसद (लोकसभा या राज्यसभा) का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं आवश्यक हैं:
अनुच्छेद 84(a): व्यक्ति भारत का नागरिक होना चाहिए।
अनुच्छेद 84(b): आयु: लोकसभा के लिए, व्यक्ति की आयु 25 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। राज्यसभा के लिए, व्यक्ति की आयु 30 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
अनुच्छेद 84(c): व्यक्ति को ऐसी अन्य योग्यताएं पूरी करनी होंगी, जो संसद द्वारा बनाए गए कानून में निर्धारित की गई हों। उदाहरण के लिए, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) में कुछ अतिरिक्त शर्तें दी गई हैं।
अनुच्छेद 84 की मुख्य विशेषताएं नागरिकता की आवश्यकता: संसद का सदस्य बनने के लिए भारत की नागरिकता अनिवार्य है, जो यह सुनिश्चित करता है कि केवल भारतीय नागरिक ही देश की विधायी प्रक्रिया में भाग लें।
आयु सीमा: लोकसभा और राज्यसभा के लिए अलग-अलग आयु सीमाएं (25 और 30 वर्ष) यह दर्शाती हैं कि राज्यसभा के सदस्यों से अधिक परिपक्वता और अनुभव की अपेक्षा की जाती है, क्योंकि यह ऊपरी सदन है और संघीय प्रतिनिधित्व का प्रतीक है।
संसद की विधायी शक्ति: अनुच्छेद 84(c) संसद को अतिरिक्त योग्यताएं निर्धारित करने की शक्ति देता है, जो विधायी लचीलापन प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में मतदाता सूची में पंजीकरण जैसी शर्तें शामिल हैं।
अनुच्छेद 102 के साथ संबंध: अनुच्छेद 84 योग्यताओं को परिभाषित करता है, जबकि अनुच्छेद 102 संसद के सदस्य बनने की अयोग्यताओं (जैसे लाभ का पद धारण करना, आपराधिक दोषसिद्धि, आदि) को परिभाषित करता है। दोनों मिलकर संसद की सदस्यता के लिए पूर्ण मानदंड बनाते हैं।
नरसी पटेल बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत संसद के सदस्यों की योग्यताओं और अयोग्यताओं पर सवाल उठा, विशेष रूप से मतदाता सूची में पंजीकरण के संबंध में।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 84(c) संसद को अतिरिक्त योग्यताएं निर्धारित करने की शक्ति देता है, और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत मतदाता सूची में पंजीकरण एक वैध शर्त है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 84 और 102 को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 84(c) के तहत संसद की विधायी शक्ति को मान्यता दी।
जे. जयललिता बनाम भारत संघ (2001) (बी.आर. कापुर मामला):
पृष्ठभूमि: इस मामले में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता की विधानसभा सदस्यता और उनकी नियुक्ति पर सवाल उठा, क्योंकि वह एक आपराधिक मामले में दोषी थीं।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 84 (और समान रूप से अनुच्छेद 173 राज्य विधानमंडल के लिए) के तहत संसद या विधानमंडल का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति को अयोग्यता (अनुच्छेद 102) से मुक्त होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति आपराधिक दोषसिद्धि के कारण अयोग्य है, तो वह संसद का सदस्य नहीं बन सकता।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 84 और 102 के बीच संबंध को स्पष्ट किया और आपराधिक दोषसिद्धि की स्थिति में योग्यता पर जोर दिया।
लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013)
पृष्ठभूमि: इस मामले में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) की संवैधानिकता पर सवाल उठा, जो दोषी सांसदों को उनकी सजा के खिलाफ अपील दायर करने की अवधि के दौरान अयोग्यता से छूट देती थी।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने धारा 8(4) को असंवैधानिक घोषित कर दिया, क्योंकि यह अनुच्छेद 84 और 102 के तहत योग्यता और अयोग्यता के मानदंडों का उल्लंघन करता था। कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि के तुरंत बाद सांसद अयोग्य हो जाता है।
प्रभाव: इसने संसद की सदस्यता के लिए उच्च नैतिक और कानूनी मानकों को लागू किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की संरचना और सदस्यता पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 84 के तहत संसद के सदस्यों की योग्यताएं संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं, क्योंकि वे लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व और संसदीय शासन प्रणाली को सुनिश्चित करते हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 84 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम वी.वाई. गुप्ता (1989)
पृष्ठभूमि: इस मामले में संसद के सदस्यों की नागरिकता और योग्यता पर सवाल उठा। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 84(a) के तहत भारत की नागरिकता संसद की सदस्यता के लिए अनिवार्य है। यदि किसी व्यक्ति की नागरिकता पर विवाद है, तो उसे संवैधानिक और कानूनी प्रक्रिया के तहत हल किया जाना चाहिए। प्रभाव: इसने नागरिकता की आवश्यकता को और स्पष्ट किया।
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