Article 81 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-01 11:23:56
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 81
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 81
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 81: लोकसभा की संरचना
अनुच्छेद 81 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह लोकसभा (House of the People) की संरचना को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद भारत की संसद के निचले सदन, लोकसभा, के गठन, सदस्यों की संख्या, और उनके निर्वाचन की प्रक्रिया को विस्तार से बताता है। लोकसभा भारत की जनता का प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व करती है और संसदीय शासन प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
अनुच्छेद 81 के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं
अनुच्छेद 81(1): लोकसभा में 530 से अधिक सदस्य नहीं होंगे, जिनमें शामिल हैं: राज्यों के प्रतिनिधि: अधिकतम 530 सदस्य, जो राज्यों से प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से चुने जाएंगे।
केंद्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि: अधिकतम 20 सदस्य, जो केंद्रशासित प्रदेशों से चुने जाएंगे, जैसा कि संसद द्वारा कानून बनाकर निर्धारित किया जाए।
मनोनीत सदस्य: राष्ट्रपति, यदि आवश्यक समझे, तो अंग्रेजी-भारतीय समुदाय (Anglo-Indian Community) से अधिकतम दो सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं, यदि उनका प्रतिनिधित्व अपर्याप्त हो। (नोट: 104वें संविधान संशोधन, 2019 के द्वारा अंग्रेजी-भारतीय समुदाय के लिए मनोनीत सीटों का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है।)
अनुच्छेद 81(2): राज्यों में लोकसभा की सीटों का आवंटन जनसंख्या के आधार पर होगा, ताकि प्रत्येक राज्य में प्रति सीट जनसंख्या का अनुपात यथासंभवएकसमान रहे। प्रत्येक राज्य को कम से कम एक सीट आवंटित की जाएगी, भले ही उसकी जनसंख्या कम हो।
अनुच्छेद 81(3):इस अनुच्छेद में "जनसंख्या" का अर्थ वह जनसंख्या है, जो अंतिम जनगणना के आधार पर निर्धारित की गई हो। हालांकि, यह जनसंख्या तब तक प्रभावी नहीं होगी, जब तक कि संसद द्वारा कानून बनाकर इसे लागू न किया जाए।
अनुच्छेद 81 की मुख्य विशेषताएं
प्रत्यक्ष निर्वाचन: लोकसभा के सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से चुने जाते हैं, जो भारत की संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली का आधार है। यह प्रक्रिया प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत नियंत्रित होती है।
जनसंख्या आधारित प्रतिनिधित: लोकसभा की सीटों का आवंटन जनसंख्या के आधार पर होता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को अधिक सीटें मिलें।
अनुसूचित जाति र जनजाति के लिए आरक्षण: अनुच्छेद 330 के तहत, लोकसभा में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए सीटें आरक्षित हैं, जो अनुच्छेद 81 के तहत आवंटित सीटों के भीतर समायोजित होती हैं।
अंग्रेजी-भारतीय समुदाय का प्रावधान: पहले अनुच्छेद 81(1)(b) के तहत अंग्रेजी-भारतीय समुदाय के लिए दो मनोनीत सीटों का प्रावधान था, लेकिन 104वां संविधान संशोधन (2019) के बाद यह प्रावधान समाप्त हो गया है।
परिसीमन: लोकसभा की सीटों का परिसीमन (Delimitation) जनसंख्या के आधार पर किया जाता है, जो परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) द्वारा नियंत्रित होता है। वर्तमान में, परिसीमन 1971 की जनगणना के आधार पर स्थिर है (42वां संविधान संशोधन, 1976 और 84वां संविधान संशोधन, 2001 के तहत), और अगला परिसीमन 2026 के बाद होगा।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (2002): पृष्ठभूमि: इस मामले में मतदाताओं के अधिकार और लोकसभा के लिए प्रत्याशियों की जानकारी के प्रकटीकरण पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 81 के तहत लोकसभा का प्रत्यक्ष निर्वाचन लोकतंत्र का आधार है। मतदाताओं को प्रत्याशियों की जानकारी (जैसे आपराधिक पृष्ठभूमि) का अधिकार है, ताकि वे सूचित निर्णय ले सकें। प्रभाव: इसने लोकसभा के निर्वाचन में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया और अनुच्छेद 81 की लोकतांत्रिक भावना को मजबूत किया।
कुलदीप नायर बनाम भारत संघ (2006): पृष्ठभूमि: हालांकि यह मामला मुख्य रूप से राज्यसभा के निर्वाचन (अनुच्छेद 80) से संबंधित था, लेकिन इसमें लोकसभा की संरचना और संसद के द्विसदनीय ढांचे पर भी चर्चा हुई। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 81 के तहत लोकसभा की संरचना भारत की संसदीय लोकतंत्र का आधार है, और यह जनता के प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करती है।
प्रभाव: इसने लोकसभा की लोकतांत्रिक और संवैधानिक स्थिति को रेखांकित किया।
मेघराज कुंभार बनाम भारत संघ (1994): पृष्ठभूमि: इस मामले में लोकसभा की सीटों के परिसीमन और जनसंख्या आधारित आवंटन पर सवाल उठा।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 81(2) के तहत सीटों का आवंटन जनसंख्या के आधार पर होना चाहिए, और परिसीमन आयोग की प्रक्रिया संवैधानिक है। हालांकि, परिसीमन को 1971 की जनगणना के आधार पर स्थिर रखा गया है (42वां संविधान संशोधन)।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 81 के तहत परिसीमन की प्रक्रिया की वैधता को स्थापित किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की संरचना और शक्तियों पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 81 के तहत लोकसभा की संरचना संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है, क्योंकि यह लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व का आधार है। संसद की शक्तियां इस मूल संरचना के अधीन हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 81 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
लोक प्रहरी बनाम भारत संघ (2018): पृष्ठभूमि: इस मामले में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के परिसीमन पर सवाल उठा, विशेष रूप से 1971 की जनगणना के आधार पर सीटों के स्थिरीकरण के संदर्भ में।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 81 और 82 के तहत परिसीमन की प्रक्रिया संवैधानिक है, और 1971 की जनगणना आधारित स्थिरीकरण नीति जनसंख्या नियंत्रण को प्रोत्साहित करने के लिए है। कोर्ट ने यह भी कहा कि परिसीमन का मुद्दा संसद के विधायी क्षेत्र में आता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 81 के तहत परिसीमन की नीति की वैधता को बरकरार रखा।
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