Article 76 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-01 10:11:18
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 76
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 76
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 76: भारत का महान्यायवादी (Attorney General of India)
अनुच्छेद 76 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह भारत के महान्यायवादी (Attorney General of India) की नियुक्ति, कर्तव्यों, और शक्तियों को परिभाषित करता है। महान्यायवादी भारत सरकार का सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है और सरकार को कानूनी मामलों में सलाह देने के साथ-साथ न्यायालयों में उसका प्रतिनिधित्व करता है।
अनुच्छेद 76 के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं
अनुच्छेद 76(1): राष्ट्रपति भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति करेंगे। महान्यायवादी वह व्यक्ति होगा जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो। इसका अर्थ है कि उसे भारत का नागरिक होना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने का अनुभव होना चाहिए, या उच्च न्यायालय में कम से कम पांच वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में कार्य किया हो।
अनुच्छेद 76(2): महान्यायवादी का कर्तव्य है कि वह भारत सरकार को कानूनी मामलों में सलाह दे और संविधान या कानून द्वारा सौंपे गए अन्य कर्तव्यों का पालन करे। वह भारत सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायालयों में प्रतिनिधित्व करता है।
अनुच्छेद 76(2): महान्यायवादी का कर्तव्य है कि वह भारत सरकार को कानूनी मामलों में सलाह दे और संविधान या कानून द्वारा सौंपे गए अन्य कर्तव्यों का पालन करे। वह भारत सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायालयों में प्रतिनिधित्व करता है।
अनुच्छेद 76 की मुख्य विशेषताएं
संवैधानिक पद: महान्यायवादी एक संवैधानिक पद है, जो भारत सरकार और न्यायपालिका के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है। वह सरकार को कानूनी मामलों में स्वतंत्र और निष्पक्ष सलाह देता है।
सुप्रीम कोर्ट में भूमिका: महान्यायवादी सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार का मुख्य प्रतिनिधि होता है और संवैधानिक, आपराधिक, या नागरिक मामलों में सरकार की ओर से तर्क प्रस्तुत करता है।
स्वतंत्रता और निष्पक्षता: यद्यपि महान्यायवादी सरकार द्वारा नियुक्त होता है, उससे अपेक्षा की जाती है कि वह कानून के शासन के प्रति निष्ठा रखे और निष्पक्ष सलाह दे।
राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत: महान्यायवादी की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया राष्ट्रपति के अधीन है, लेकिन यह अनुच्छेद 74 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होती है।
अन्य संबंधित प्रावधान
वेतन और भत्ते: महान्यायवादी के वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। वर्तमान में, यह महान्यायवादी और अन्य विधि अधिकारियों (वेतन और शर्तें) नियम के तहत तय होता है।
अतिरिक्त विधि अधिकारी: अनुच्छेद 76 के अलावा, भारत सरकार सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल जैसे अन्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति करती है, जो महान्यायवादी की सहायता करते हैं। हालांकि, ये पद संवैधानिक नहीं हैं।
संसद में भूमिका: महान्यायवादी को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में बोलने का अधिकार है, लेकिन उसे मतदान का अधिकार नहीं है (अनुच्छेद 88)।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
इन रे: प्रेसिडेंशियल रेफरेंस (1998):
पृष्ठभूमि: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए एक संदर्भ पर विचार किया, जिसमें महान्यायवादी ने सरकार की ओर से तर्क प्रस्तुत किए।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने महान्यायवादी की भूमिका को सरकार के सर्वोच्च विधि अधिकारी के रूप में रेखांकित किया और कहा कि उनकी सलाह संवैधानिक और कानूनी ढांचे के भीतर होनी चाहिए।
प्रभाव: इसने महान्यायवादी की निष्पक्षता और कानून के प्रति उनकी जिम्मेदारी को स्पष्ट किया। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015) (NJAC मामला)
पृष्ठभूमि: इस मामले में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की संवैधानिकता पर विचार किया गया,जिसमें महान्यायवादी ने सरकार की ओर से तर्क प्रस्तुत किए।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने NJAC को असंवैधानिक घोषित किया। इस मामले में महान्यायवादी की भूमिका सरकार के प्रतिनिधि के रूप में थी, लेकिन कोर्ट ने उनकी सलाह की सामग्री से अधिक संवैधानिक सिद्धांतों पर ध्यान दिया।
प्रभाव: इसने महान्यायवादी की भूमिका को उच्च-स्तरीय संवैधानिक मामलों में महत्वपूर्ण माना।
अलोक प्रसन्ना कुमार बनाम भारत संघ (2015):
पृष्ठभूमि: इस जनहित याचिका में महान्यायवादी की नियुक्ति की पारदर्शिता और योग्यता पर सवाल उठाया गया। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महान्यायवादी की नियुक्ति सरकार का विशेषाधिकार है, लेकिन यह संवैधानिक मानदंडों और योग्यता के आधार पर होनी चाहिए। प्रभाव: इसने अनुच्छेद 76(1) के तहत नियुक्ति प्रक्रिया की जवाबदेही को रेखांकित किया।
मद्स बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2014)
पृष्ठभूमि: इस मामले में महान्यायवादी की भूमिका और सरकार के विधि अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया पर अप्रत्यक्ष रूप से चर्चा हुई।
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