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Article 75 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-30 15:04:48
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 75

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 75
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 75: मंत्रिपरिषद का गठन और उनकी नियुक्ति
अनुच्छेद 75 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) के गठन, नियुक्ति, और उनके कर्तव्यों को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद भारत की संसदीय शासन प्रणाली में मंत्रिपरिषद की भूमिका और उनकी जवाबदेही को स्पष्ट करता है।
अनुच्छेद 75 के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं
अनुच्छेद 75(1): राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करेंगे। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति करेंगे, लेकिन यह प्रधानमंत्री की सलाह पर होगा। इसका अर्थ है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति के पास सीमित विवेकाधीन शक्ति हो सकती है, लेकिन अन्य मंत्रियों की नियुक्ति पूरी तरह से प्रधानमंत्री की सलाह पर आधारित होती है।
अनुच्छेद 75(2) मंत्री अपने पद पर राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत (pleasure of the President) बने रहेंगे। इसका तात्पर्य है कि राष्ट्रलोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से जवाबदेह होगी। यह संसदीय शासन प्रणाली का मूल सिद्धांत है, जिसमें मंत्रिपरिषद को लोकसभा में बहुमत का समर्थन बनाए रखना होता है।
अनुच्छेद 75(4): कोई भी व्यक्ति जो मंत्री बनता है, उसे अपने पद की शपथ लेनी होगी। शपथ की प्रक्रिया और प्रारूप संविधान की तीसरी अनुसूची में दिए गए हैं।
अनुच्छेद 75(5): कोई भी व्यक् जो संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, वह मंत्री बन सकता है, बशर्ते वह नियुक्ति के छह महीने के भीतर संसद के किसी एक सदन का सदस्य बन जाए। यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है, तो उसे मंत्री पद छोड़ना होगा।
अनुच्छेद 75(6): मंत्रिपरिषद के सदस्यों के वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर्धारित किए जाएंगे। यह प्रावधान मंत्रियों के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1952 के तहत लागू होता है।
अनुच्छेद 75 की मुख्य विशेषताएं
संसदीय शासन प्रणाली: अनुच्छेद 75 भारत की संसदीय शासन प्रणाली को मजबूत करता है, जिसमें मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह होती है। यदि मंत्रिपरिषद लोकसभा का विश्वास खो देती है, तो उसे इस्तीफा देना पड़ सकता है।
प्रधानमंत्री की भूमिका: प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का प्रमुख होता है और मंत्रियों की नियुक्ति और उनके विभागों के आवंटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्ति: प्रधानमंत्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति के पास सीमित विवेकाधीन शक्ति हो सकती है, खासकर तब जब कोई स्पष्ट बहुमत न हो (जैसे गठबंधन सरकार के मामले में)। हालांकि, यह शक्ति अनुच्छेद 74 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह के अधीन है।
सामूहिक जवाबदेही: मंत्रिपरिषद का सामूहिक जवाबदेही का सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि मंत्रिपरिषद एक इकाई के रूप में लोकसभा के प्रति जिम्मेदार है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य (1974):
पृष्ठभूमि: इस मामले में राष्ट्रपति और राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों पर विचार किया गया, जिसमें अनुच्छेद 75 और अनुच्छेद 74 की भूमिका भी शामिल थी।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारत में संसदीय शासन प्रणाली के तहत मंत्रिपरिषद वास्तविक कार्यकारी शक्ति रखती है, और राष्ट्रपति को उनकी सलाह माननी होती है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति में राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्ति सीमित होती है और केवल असाधारण परिस्थितियों (जैसे स्पष्ट बहुमत न होने पर) में प्रयोग की जा सकती है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 75 के तहत मंत्रिपरिषद की प्राथमिकता और राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका को स्पष्ट किया।
एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)
पृष्ठभूमि: यह मामला अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) से संबंधित था, लेकिन इसमें अनुच्छेद 75 की सामूहिक जवाबदेही के सिद्धांत पर भी चर्चा हुई।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंत्रिपरिषद की सामूहिक जवाबदेही लोकसभा के प्रति होती है, और यदि मंत्रिपरिषद लोकसभा का विश्वास खो देती है, तो उसे इस्तीफा देना होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति की कार्रवाइयां, जो मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होती हैं, संवैधानिक सीमाओं के अधीन हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 75(3) के तहत सामूहिक जवाबदेही के सिद्धांत को और मजबूत किया।
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006): पृष्ठभूमि: यह मामला बिहार विधानसभा के विघटन और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति से संबंधित था, जिसमें अनुच्छेद 75 की व्याख्या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थी।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि मंत्रिपरिषद की नियुक्ति और उनकी जवाबदेही संसदीय शासन प्रणाली के मूल सिद्धांतों पर आधारित है। राष्ट्रपति की भूमिका संवैधानिक सीमाओं के भीतर होनी चाहिए।
प्रभाव: इसने मंत्रिपरिषद की नियुक्ति और जवाबदेही की प्रक्रिया को और स्पष्ट किया।
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम हर्षवर्धन (1979):
पृष्ठभूमि: इस मामले में मंत्रियों की नियुक्ति और उनके पद पर बने रहने की शर्तों पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 75(2) के तहत "राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत" का अर्थ यह नहीं है कि राष्ट्रपति स्वतंत्र रूप से मंत्रियों को हटा सकते हैं। यह निर्णय मंत्रिपरिषद की सलाह (अनुच्छेद 74) पर आधारित होता है।
प्रभाव: इसने राष्ट्रपति की भूमिका को मंत्रिपरिषद के अधीन होने की पुष्टि की।
बी.आर. कापुर बनाम तमिलनाडु राज्य (2001)
पृष्ठभूमि: इस मामले में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता की नियुक्ति पर सवाल उठा, क्योंकि वह एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराई गई थीं और अयोग्य थीं।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 75(1) के तहत प्रधानमंत्री या मंत्रियों की नियुक्ति संवैधानिक और नैतिक मानदंडों के अनुरूप होनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति संसद का सदस्य बनने के लिए अयोग्य है, तो वह मंत्री नहीं बन सकता।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 75(5) के तहत गैर-सदस्यों की नियुक्ति की शर्तों को और स्पष्ट किया।
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