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Article 74 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-30 14:59:03
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 74

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 74
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 74: मंत्रिपरिषद और राष्ट्रपति की सलाह
अनुच्छेद 74 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह भारत के राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) के बीच संबंध को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद यह निर्धारित करता है कि राष्ट्रपति को अपनी शक्तियों क प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होती है। यह प्रावधान भारत की संसदीय शासन प्रणाली के मूल सिद्धांत को रेखांकित करता है, जिसमें मंत्रिपरिषद वास्तविक कार्यकारी शक्ति का केंद्र होती है।
अनुच्छेद 74 के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:
अनुच्छेद 74(1): यह कहता है कि भारत में एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसके प्रमुख प्रधानमंत्री होंगे, जो राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देगी। राष्ट्रपति को अपनी शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करना होगा।
प्रोवाइसो (1976 का संशोधन): 42वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा जोड़ा गया प्रोवाइसो कहता है कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद से अपनी सलाह पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकते हैं, लेकिन पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह को मानना बाध्यकारी होगा
अनुच्छेद 74(2): यह कहता है कि मंत्रिपरिषद द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह को न्यायालय में प्रश्नगत (चुनौती) नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान मंत्रिपरिषद की सलाह की गोपनीयता और कार्यकारी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 74 की मुख्य विशेषताएं
संसदीय शासन प्रणाली: अनुच्छेद 74 भारत की संसदीय शासन प्रणाली का आधार है, जिसमें राष्ट्रपति नाममात्र का प्रमुख होता है, और वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद के पास होती है, जो लोकसभा के प्रति जवाबदेह होती है।
बाध्यकारी सलाह: 42वें संविधान संशोधन (1976) ने यह स्पष्ट किया कि मंत्रिपरिषद की सलाह राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी है। इससे पहले कुछ विवाद थे कि क्या राष्ट्रपति अपनी विवेकाधीन शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।
पुनर्विचार का अधिकार: राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर एक बार पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं, लेकिन पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह को मानना अनिवार्य है।
न्यायिक समीक्षा की सीमा:अनुच्छेद 74(2) के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह की सामग्री को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, लेकिन यदि
अनुच्छेद 72 (दया याचिका): अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की दया याचिका की शक्ति भी अनुच्छेद 74 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह के अधी
न है। राष्ट्रपति दया याचिका पर स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले सकते; उन्हें गृह मंत्रालय और मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होती है।
अनुच्छेद 73 (केंद्र की कार्यकारी शक्ति): अनुच्छेद 73 केंद्र की कार्यकारी शक्ति का सामान्य दायरा निर्धारित करता है, जो मंत्रिपरिषद के माध्यम से संचालित होती है। अनुच्छेद 74 इस शक्ति के संचालन की प्रक्रिया को और स्पष्ट करता है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकद
संसारी देवी बनाम पंजाब राज्य (1967)
पृष्ठभूमि: इस मामले में यह सवाल उठा कि क्या राष्ट्रपति की शक्तियां मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना स्वतंत्र रूप से प्रयोग की जा सकती हैं।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत की संसदीय शासन प्रणाली में राष्ट्रपति एक संवैधानिक प्रमुख हैं और उनकी शक्तियां मंत्रिपरिषद की सलाह के अधीन हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 74 की बाध्यकारी प्रकृति को स्पष्ट किया।
शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य (1974):
पृष्ठभूमि: इस मामले में राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों (अनुच्छेद 163) के साथ-साथ राष्ट्रपति की शक्तियों (अनुच्छेद 74) पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों ही संवैधानिक प्रमुख हैं और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होती है। केवल असाधारण परिस्थितियों में वे अपनी विवेकाधीन शक्ति का उपयोग कर सकते हैं, जैसे सरकार गठन या विघटन के मामले में।
प्रभाव: इसने राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियों को सीमित किया और अनुच्छेद 74 की प्राथमिकता को स्थापित किया।
एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994):
पृष्ठभूमि: यह मामला अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) से संबंधित था, लेकिन इसमें अनुच्छेद 74 की भूमिका पर भी चर्चा हुई।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति की कार्रवाइयां, जो मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होती हैं, न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती हैं यदि वे संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती हैं। हालांकि, सलाह की सामग्री को चुनौती नहीं दी जा सकती।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 74(2) की व्याख्या को और स्पष्ट किया और संवैधानिक जवाबदेही को रेखांकित किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016):
पृष्ठभूमि: इस मामले में राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों और मंत्रिपरिषद की सलाह के बीच टकराव पर विचार किया गया, जो अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्छेद 74 से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि संसदीय शासन प्रणाली में मंत्रिपरिषद की सलाह सर्वोपरि होती है, और संवैधानिक प्रमुख (राष्ट्रपति या राज्यपाल) को इसे मानना होता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 74 के सिद्धांतों को और मजबूत किया।
कीहर सिंह बनाम भारत संघ (1989) (अनुच्छेद 72 के संदर्भ में):
पृष्ठभिका: इस मामले में दया याचिका पर राष्ट्रपति के निर्णय की प्रकृति पर विचार हुआ।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की शक्ति अनुच्छेद 74 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह के अधीन है। हालांकि, यह निर्णय न्यायिक समीक्षा के दायरे में हो सकता है यदि यह मनमाना या असंवैधानिक हो।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 74 और 72 के बीच संबंध को स्पष्ट किया।
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