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Article 72 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-30 14:24:50
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भारतीय सविधान का अनुच्छेद 72

भारतीय सविधान का अनुच्छेद 72
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 72 भारत के राष्ट्रपति को दया याचिका (Mercy Petition) के संबंध में शक्तियां प्रदान करता है। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को अपराधियों को क्षमादान, सजा में कमी, सजा को स्थगित करने, सजा को कम करने या सजा को बदलने की शक्ति देता है। यह प्रावधान भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है, जो राष्ट्रपति की शक्तियों और कर्तव्यों को परिभाषित करता है। अनुच्छेद 72 न केवल आपराधिक मामलों में बल्कि सैन्य न्यायालयों और अन्य विशेष परिस्थितियों में भी लागू होता है।
अनुच्छेद 72(1) के अनुसार, राष्ट्रपति को निम्नलिखित मामलों में शक्तियां प्राप्त हैं:
क्षमादान (Pardon): अपराधी को पूरी तरह से सजा से मुक्त करना।
सजा का स्थगन (Reprieve): सजा को अस्थायी रूप से निलंबित करना, विशेष रूप से मृत्युदंड के मामलों में।
सजा में राहत (Respite): सजा को कम करना, जैसे कि गर्भवती महिला या बीमार व्यक्ति के लिए।
सजा की माफी (Remission): सजा की अवधि या मात्रा को कम करना।
सजा का परिवर्तन (Commutation): सजा के प्रकार को बदलना, जैसे मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलना।
ये शक्तियां निम्नलिखित मामलों में लागू होती हैं:
केंद्र सरकार के कानूनों के तहत अपराध: जहां सजा या दंड केंद्र सरकार के कार्यकारी क्षेत्र में आता हो।
मृत्युदंड के मामले: जहां मृत्युदंड दिया गया हो। सैन्य न्यायालय (Court Martial): सैन्य कानूनों के तहत दी गई सजा के मामले में।
अनुच्छेद 72 की प्रक्रिया दया याचिका दाखिल करना: दया याचिका आमतौर पर उस व्यक्ति द्वारा दाखिल की जाती है जिसे सजा दी हालांकि, यह निर्णय मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होता है (अनुच्छेद 74 के तहत)।
महत्वपूर्ण बिंदु
न्यायिक समीक्षा: राष्ट्रपति का दया याचिका पर निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकता है, यदि यह मनमाना, असंवैधानिक, या दुर्भावनापूर्ण हो। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति की शक्ति असीमित नहीं है और इसे संवैधानिक ढांचे के भीतर प्रयोग करना होगा। राज्यपाल की समान शक्ति: अनुच्छेद 161 के तहत, राज्यपाल को भी राज्य के कानूनों के तहत दी गई सजाओं के लिए समान शक्तियां प्राप्त हैं, लेकिन मृत्युदंड के लिए नहीं।
विलंब का मुद्दा: दया याचिका पर निर्णय में अत्यधिक देरी को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के उल्लंघन के रूप में माना है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
कीहर सिंह बनाम भारत संघ (1989)
पृष्ठभूमि: कीहर सिंह को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। उनकी दया याचिका को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति की अनुच्छेद 72 के तहत शक्ति कार्यकारी रकृति की है, लेकिन यह न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति को दया याचिका पर निर्णय लेने के लिए कारण बताने की आवश्यकता नहीं है।
प्रभाव: इस मामले ने राष्ट्रपति की शक्ति की सीमाओं और न्यायिक समीक्षा की संभावना को स्पष्ट किया।
शत्रुघ्न चौहान बनाम भारत संघ (2014)
पृष्ठभूमि: इस मामले में, 15 मृत्युदंड प्राप्त कैदियों ने दया याचिका पर निर्णय में अत्यधिक देरी की शिकायत की।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि दया याचिका पर निर्णय में अनुचित देरी अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। कोर्ट ने कई दोषियों की सजा को मृत्युदंड से आजीवन कारावास में बदल दिया।
प्रभाव: इसने दया याचिका प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता पर जोर दिया।
याकूब मेमन बनाम भारत संघ (2015)
पृष्ठभूमि: याकूब मेमन को 1993 के मुंबई बम विस्फोटों के लिए मृत्युदंड दिया गया था। उनकी दया याचिका को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने रात में सुनवाई करके दया याचिका की प्रक्रिया और निर्णय की वैधता की जांच की। कोर्ट ने पाया कि प्रक्रिया में कोई खामी नहीं थी और सजा को बरकरार रखा।
प्रभाव: इसने दया याचिका की प्रक्रिया में त्वरित सुनवाई और पारदर्शिता के महत्व को रेखांकित किया।
धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2004)
पृष्ठभूमि: धनंजय चटर्जी को बलात्कार और हत्या के लिए मृत्युदंड दिया गया था। उनकी दया याचिका को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका की प्रक्रिया को बरकरार रखा और कहा कि राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम है, बशर्ते यह संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप हो।
प्रभाव: इस मामले ने राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्ति को और स्पष्ट किया।
नवनीत कौर बनाम पंजाब राज्य (2014)
पृष्ठभूमि: इस मामले में, दया याचिका पर निर्णय में देरी के कारण सजा को कम करने की मांग की गई थी।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मानसिक स्वास्थ्य या अन्य मानवीय आधारों पर दया याचिका पर विचार किया जा सकता है।
प्रभाव: इसने दया याचिकामें मानवीय पहलुओं पर विचार करने की आवश्यकता को उजागर किया।
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