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Article 69 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-30 14:10:47
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 69

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 69
अनुच्छेद 69 का पाठ
अनुच्छेद 69 का शीर्षक है "उपराष्ट्रपति द्वारा ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान"। यह संविधान के भाग V (संघ) में शामिल है।
प्रत्येक उपराष्ट्रपति अपने कर्तव्यों का पालन करने से पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष निम्नलिखित रूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा, अर्थात्:"मैं, (नाम), ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कर्तव्यों का विश्वासपूर्वक निर्वहन करूँगा और अपनी पूरी योग्यता से संविधान का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षा करूँगा और मैं अपने कर्तव्यों का निर्वहन बिना किसी भय, पक्षपात, स्नेह या द्वेष के करूँगा।"
उद्देश्य
संवैधानिक जवाबदेही: अनुच्छेद 69 उपराष्ट्रपति को संविधान के प्रति निष्ठा और कर्तव्यों के निष्पक्ष निर्वहन की शपथ दिलाकर जवाबदेह बनाता है।
निष्पक्षता: शपथ मे भय, पक्षपात, स्नेह या द्वेष के बिना कर्तव्यों के निर्वहन का उल्लेख उपराष्ट्रपति की निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है।
संवैधानिक मूल्यों का संरक्षण: यह उपराष्ट्रपति को संविधान का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपता है।
लोकतांत्रिक परंपरा: शपथ लेने की प्रक्रिया भारत की लोकतांत्रिक और संवैधानिक परंपराओं को मजबूत करती है।
संघीय ढांचा: उपराष्ट्रपति, जो राज्य सभा का सभापति भी होता है, इस शपथ के माध्यम से संघीय ढांचे और संसदीय प्रणाली के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाता है।
ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि
औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन में, वायसराय और गवर्नर-जनरल जैसे पदाधिकारी ब्रिटिश क्राउन के प्रति शपथ लेते थे। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ की व्यवस्था अपनाई, जो लोकतांत्रिक मूल्यों को दर्शाती है।
स्वतंत्रता आंदोलन: स्वतंत्रता संग्राम में, भारतीय नेताओं ने संवैधानिक शासन और जवाबदेही की वकालत की, जो अनुच्छेद 69 में परिलक्षित होता है।
संविधान सभा: अनुच्छेद 69 (मसौदा अनुच्छेद 59) पर संविधान सभा में चर्चा हुई। डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने तर्क दिया कि उपराष्ट्रपति जैसे उच्च संवैधानिक पदाधिकारी को संविधान के प्रति निष्ठा और निष्पक्षता की शपथ लेनी चाहिए, ताकि उनकी जवाबदेही सुनिश्चित हो। शपथ का प्रारूप राष्ट्रपति की शपथ (अनुच्छेद 60) से मिलता-जुलता रखा गया।
सामाजिक संदर्भ: भारत की विविधता और संघीय ढांचे को देखते हुए, उपराष्ट्रपति की शपथ संवैधानिक एकता और निष्पक्ष
शपथ या प्रतिज्ञान
उपराष्ट्रपति को अपने कर्तव्यों का पालन शुरू करने से पहले शपथ लेनी या प्रतिज्ञान करना होता है। शपथ में ईश्वर का उल्लेख वैकल्पिक है, जिससे धर्मनिरपेक्षता का सम्मान होता है।
शपथ का प्रारूप: शपथ में तीन प्रमुख तत्व शामिल हैं: उपराष्ट्रपति के कर्तव्यों का विश्वासपूर्वक निर्वहन। संविधान का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षा। कर्तव्यों का निर्वहन बिना भय, पक्षपात, स्नेह या द्वेष के करना।
शपथ दिलाने वाला व्यक्ति: शपथ राष्ट्रपति या उनके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष ली जाती है। सामान्यतः राष्ट्रपति स्वयं शपथ दिलाते हैं, लेकिन असाधारण परिस्थितियों में अन्य व्यक्ति (जैसे मुख्य न्यायाधीश) नियुक्त किया जा सकता है।
लागू होने का दायरा: यह केंद्र सरकार पर लागू होता है और उपराष्ट्रपति के कर्तव्यों की शुरुआत को नियंत्रित करता है।
न्यायसंगत प्रकृति: अनुच्छेद 69 एक बाध्यकारी प्रावधान है, जो उपराष्ट्रपति को संवैधानिक ढांचे के भीतर जवाबदेह बनाता है।
संबंधित अनुच्छेद
अनुच्छेद 60: राष्ट्रपति द्वारा ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान।
अनुच्छेद 63: भारत का उपराष्ट्रपति।
अनुच्छेद 64: उपराष्ट्रपति का राज्य सभा का सभापति होना।
अनुच्छेद 66: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन।
अनुच्छेद 67: उपराष्ट्रपति का कार्यकाल।
अनुच्छेद 99: संसद के सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान।
संबंधित कानून और प्रक्रियाएँ
राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति अधिनियम, 1952: उपराष्ट्रपति की शपथ, निर्वाचन, और कार्यकाल से संबंधित प्रावधानों को नियंत्रित करता है।
संसद की नियमावली: शपथ ग्रहण की प्रक्रिया और औपचारिकताओं को नियंत्रित करती है।
तृतीय अनुसूची: संविधान में शपथ और प्रतिज्ञान के प्रारूप, जिसमें उपराष्ट्रपति की शपथ शामिल है।
शपथ ग्रहण का व्यावहारिक अनुप्रयोग
ऐतिहासिक उदाहरण:
1952: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारत के पहले उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।
2022: श्री जगदीप धनखड़ ने 11 अगस्त 2022 को उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई।
प्रक्रिया: शपथ ग्रहण समारोह सामान्यतः संसद भवन या राष्ट्रपति भवन में आयोजित होता है, जिसमें उच्च गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहते हैं।
धर्मनिरपेक्षता: शपथ में "ईश्वर की शपथ" या "सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान" का विकल्प धर्मनिरपेक्षता को दर्शाता है। कई उपराष्ट्रपतियों ने अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं के आधार पर प्रतिज्ञान का विकल्पचुना।
औपचारिकता: शपथ ग्रहण के बाद उपराष्ट्रपति औपचारिक रूप से अपने कर्तव्यों, जैसे राज्य सभा का सभापति बनना और संवैधानिक जिम्मेदारियाँ, शुरू करता है।
संबंधित मुकदमे
इन रे: प्रेसिडेंशियल इलेक्शन (1974) पृष्ठभूमि: 1974 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और संवैधानिक प्रक्रियाओं से संबंधित प्रश्नों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी गई। मुद्दा: क्या अनुच्छेद 69 के तहत उपराष्ट्रपति की शपथ की प्रक्रिया संवैधानिक है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 69 के तहत शपथ की प्रक्रिया संवैधानिक है और उपराष्ट्रपति की जवाबदेही सुनिश्चित करती है महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 69 की संवैधानिक वैधता को पुष्ट किया।
शिव किरण बनाम भारत संघ (1971)
पृष्ठभूमि: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में कथित अनियमितताओं को चुनौती दी गई, जिसमें शपथ की प्रक्रिया पर अप्रत्यक्ष सवाल उठे।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 69 के तहत शपथ की प्रक्रिया निर्वाचन की वैधता को प्रभावित करती है? निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 69 की शपथ प्रक्रिया संवैधानिक है और अनुच्छेद 71 के तहत विवादों का समाधान सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया जाता है।
याचिका को खारिज किया गया। महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 69 को संवैधानिक ढांचे और निर्वाचन प्रक्रिया के साथ जोड़ा।
मिथिलेश कुमार बनाम भारत संघ (1997)
पृष्ठभूमि: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और संवैधानिक प्रक्रियाओं को चुनौती दी गई। मुद्दा: क्या अनुच्छेद 69 केमहत्व: इस मामले ने अनुच्छे द 69 की संवैधानिक प्रकृति को और मजबूत किया।
बाबूराव पटेल बनाम भारत संघ (1988)
पृष्ठभूमि: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और संवैधानिक प्रक्रियाओं में प्रक्रियात्मक मुद्दों को चुनौती दी गई।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 69 के तहत शपथ की प्रक्रिया संवैधानिक है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 69 की शपथ प्रक्रिया संवैधानिक है और उपराष्ट्रपति की जवाबदेही सुनिश्चित करती है। याचिका को खारिज किया गया।
महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 69 की वैधता और प्रक्रिया की अखंडता को पुष्ट किया।
चारण सिंह बनाम भारत संघ (1979)
पृष्ठभूमि: उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और संवैधानिक प्रक्रियाओं को लेकर याचिका दायर की गई।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 69 के तहत शपथ की प्रक्रिया संवैधानिक है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 69 की शपथ प्रक्रिया संवैधानिक है और लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुरूप है। महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 69 की शपथ प्रक्रिया की वैधता को रेखांकित किया।
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