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Article 68 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-30 14:06:13
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 68

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 68
अनुच्छेद 68 का पाठ
अनुच्छेद 68 का शीर्षक है "उपराष्ट्रपति के कार्यालय में रिक्ति की पूर्ति के लिए समय"। यह संविधान के भाग V (संघ) में शामिल है।
(1) उपराष्ट्रपति के कार्यालय में रिक्ति की पूर्ति के लिए निर्वाचन उस रिक्ति के होने से पहले या यथास्थिति उसके पश्चात् यथाशीघ्र, और किसी भी दशा में उसके पश्चात् छह मास से अधिक अवधि के भीतर, कर लिया जाएगा।(2) जब उपराष्ट्रपति का कार्यालय मृत्यु, त्यागपत्र या हटाए जाने के कारण या अन्यथा रिक्त हो जाता है तब संसद द्वारा बनाई गई विधि के उपबन्धों के अनुसार कोई व्यक्ति तब तक उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा जब तक कि नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति अपने पद का कार्यभार ग्रहण न कर ले।
उद्देश्य
शासन की निरंतरता: अनुच्छेद 68 यह सुनिश्चित करता है कि उपराष्ट्रपति के कार्यालय में रिक्ति की स्थिति में शासन और संसदीय कार्यवाही में कोई रुकावट न आए।
शीघ्र निर्वाचन: यह रिक्ति की स्थिति में छह महीने के भीतर नए उपराष्ट्रपति के निर्वाचन की समय-सीमा निर्धारित करता है।
कार्यवाहक व्यवस्था: यह रिक्ति के दौरान कार्यवाहक उपराष्ट्रपति की नियुक्ति की व्यवस्था प्रदान करता है, ताकि राज्य सभा की कार्यवाही और संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन प्रभावित न हो।
संवैधानिक स्थिरता: यह संवैधानिक ढांचे के भीतर स्थिरता और सुचारु शासन को बनाए रखता है।
लोकतांत्रिक जवाबदेही: संसद को कार्यवाहक उपराष्ट्रपति की नियुक्ति के लिए कानून बनाने की शक्ति देना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दर्शाता है।
ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि
औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन में उपराष्ट्रपति जैसा कोई पद नहीं था, और रिक्ति की स्थिति में क्राउन द्वारा तत्काल नियुक्ति की जाती थी। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने एक लोकतांत्रिक और संवैधानिक प्रणाली अपनाई।
स्वतंत्रता आंदोलन: स्वतंत्रता संग्राम में, भारतीय नेताओं ने शासन की निरंतरता और जवाबदेही पर जोर दिया, जो अनुच्छेद 68 में परिलक्षित होता है।
संविधान सभा: अनुच्छेद 68 (मसौदा अनुच्छेद 58) पर संविधान सभा में चर्चा हुई। डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने तर्क दिया कि उपराष्ट्रपति के कार्यालय में रिक्ति से राज्य सभा की कार्यवाही और संवैधानिक कर्तव्यों में व्यवधान न हो, इसके लिए एक स्पष्ट प्रक्रिया और समय-सीमा आवश्यक है। कार्यवाहक व्यवस्था को संसद के विधायी अधिकार के अधीन रखा गया।
सामाजिक संदर्भ: भारत की विविधता और संघीय ढांचे को देखते हुए, रिक्ति की स्थिति में शीघ्र और निष्पक्ष निर्वाचन आवश्यक है ताकि संसदीय और संवैधानिक प्रक्रियाएँ स्थिर रहें।
अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: अनुच्छेद 68 संयुक्त राज्य अमेरिका (उपराष्ट्रपति की रिक्ति की पूर्ति) और आयरलैंड (संवैधानिक निरंतरता) से प्रेरित है, लेकिन भारतीय संसदीय लोकतंत्र के संदर्भ में ढाला गया।
प्रमुख प्रावधान
निर्वाचन की समय-सीमा (खंड 1): उपराष्ट्रपति के कार्यालय में रिक्ति की पूर्ति के लिए निर्वाचन यथाशीघ्र और अधिकतम छह महीने के भीतर होना चाहिए। यह रिक्ति होने से पहले (जैसे कार्यकाल समाप्ति पर) या बाद में (जैसे मृत्यु, त्यागपत्र) शुरू हो सकता है।
कार्यवाहक उपराष्ट्रपति (खंड 2): यदि उपराष्ट्रपति का कार्यालय रिक्त हो (मृत्यु, त्यागपत्र, हटाने, या अन्य कारण से), तो संसद द्वारा बनाए गए कानून के तहत कोई व्यक्ति कार्यवाहक उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है। यह व्यवस्था तब तक लागू रहती है जब तक नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति पद ग्रहण न कर ले।
संसद की शक्ति: संसद को कानून बनाकर कार्यवाहक उपराष्ट्रपति की नियुक्ति की प्रक्रिया निर्धारित करने का अधिकार है। वर्तमान में, राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति अधिनियम, 1952 इस प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
लागू होने का दायरा: यह केंद्र सरकार पर लागू होता है और उपराष्ट्रपति के कार्यालय में रिक्ति की स्थिति को नियंत्रित करता है।
न्यायसंगत प्रकृति: अनुच्छेद 68 एक बाध्यकारी प्रावधान है, जो रिक्ति पूर्ति और कार्यवाहक व्यवस्था को संवैधानिक ढांचे के भीतर स्थापित करता है।
अनुच्छेद 62: राष्ट्रपति के कार्यालय में रिक्ति की पूर्ति।
अनुच्छेद 63: भारत का उपराष्ट्रपति।
अनुच्छेद 66: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन।
अनुच्छेद 67: उपराष्ट्रपति का कार्यकाल।
अनुच्छेद 71: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवाद।
अनुच्छेद 89: राज्य सभा का उपसभापति (रिक्ति के दौरान संसदीय कार्यवाही के लिए प्रासंगिक)।
संबंधित कानून और प्रक्रियाएँ
राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति अधिनियम, 1952: उपराष्ट्रपति के निर्वाचन, कार्यकाल, और कार्यवाहक व्यवस्था को नियंत्रित करता है।
राष्ट्रपति (निर्वाचन) नियम, 1974: निर्वाचन प्रक्रिया और रिक्ति पूर्ति के नियम।
निर्वाचन आयोग: उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और रिक्ति पूर्ति का संचालन करता है।
संसद की नियमावली: कार्यवाहक उपराष्ट्रपति की नियुक्ति और निर्वाचन प्रक्रिया को नियंत्रित करती है।
ऐतिहासिक उदाहरण
1969: उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि ने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी के कारण त्यागपत्र दिया, जिसके बाद रिक्ति हुई। गोपाल स्वरूप पाठक को छह महीने के भीतर उपराष्ट्रपति चुना गया।
कार्यवाहक उपराष्ट्रपति: उपराष्ट्रपति के कार्यालय में रिक्ति के दौरान, राज्य सभा का उपसभापति (अनुच्छेद 89) सामान्यतः संसदीय कार्यवाही का संचालन करता है। हालांकि, कार्यवाहक उपराष्ट्रपति की नियुक्ति का कोई प्रमुख उदाहरण नहीं है, क्योंकि रिक्तियाँ कम रही हैं।
निरंतरता: उपराष्ट्रपति के कार्यकाल समाप्ति पर, मौजूदा उपराष्ट्रपति तब तक पद पर रहते हैं जब तक नया उपराष्ट्रपति कार्यभार ग्रहण न कर ले, जैसे श्री हामिद अंसारी के कार्यकाल (2017) के बाद।
संबंधित मुकदमे
इन रे: प्रेसिडेंशियल इलेक्शन (1974)
पृष्ठभूमि: 1974 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और रिक्ति पूर्ति से संबंधित प्रश्नों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी गई।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 68 के तहत उपराष्ट्रपति के कार्यालय में रिक्ति पूर्ति की प्रक्रिया संवैधानिक है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 68 की रिक्ति पूर्ति और कार्यवाहक व्यवस्था संवैधानिक है और शासन की निरंतरता सुनिश्चित करती है। महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 68 की संवैधानिक वैधता को पुष्ट किया।
शिव किरण बनाम भारत संघ (1971) पृष्ठभूमि: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में कथित अनियमितताओं को चुनौती दी गई, जिसमें रिक्ति पूर्ति की प्रक्रिया पर अप्रत्यक्ष सवाल उठे।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 68 के तहत रिक्ति पूर्ति की प्रक्रिया निर्वाचन की वैधता को प्रभावित करती है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 68 की प्रक्रिया संवैधानिक है और अनुच्छेद 71 के तहत विवादों का समाधान सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया जाता है। याचिका को खारिज किया गया।
महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 68 को संवैधानिक ढांचे और निर्वाचन प्रक्रिया के साथ जोड़ा।
मिथिलेश कुमार बनाम भारत संघ (1997) पृष्ठभूमि: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और रिक्ति पूर्ति की प्रक्रिया को चुनौती दी गई। मुद्दा: क्या अनुच्छेद 68 के तहत रिक्ति पूर्ति की प्रक्रिया संवैधानिक है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 68 की रिक्ति पूर्ति प्रक्रिया संवैधानिक है और शासन की निरंतरता सुनिश्चित करती है। महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 68 की संके निर्वाचन और रिक्ति पूर्ति में प्रक्रियात्मक मुद्दों को चुनौती दी गई।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 68 के तहत रिक्ति पूर्ति की प्रक्रिया संवैधानिक है? निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 68 की प्रक्रिया संवैधानिक है और उपराष्ट्रपति के कार्यालय की निरंतरता सुनिश्चित करती है। याचिका को खारिज किया गया।
महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 68 की वैधता और प्रक्रिया की अखंडता को पुष्ट किया।
चारण सिंह बनाम भारत संघ (1979) पृष्ठभूमि: उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और रिक्ति पूर्ति की प्रक्रिया को लेकर याचिका दायर की गई। मुद्दा: क्या अनुच्छेद 68 के तहत रिक्ति पूर्ति की प्रक्रिया संवैधानिक है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 68 की रिक्ति पूर्ति प्रक्रिया संवैधानिक है और लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुरूप है। महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 68 की रिक्ति पूर्ति की प्रक्रिया की वैधता को रेखांकित किया।
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