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Article 67 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-28 16:25:03
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 67

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 67
अनुच्छेद 67 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय I (कार्यपालिका) में आता है। यह उपराष्ट्रपति के कार्यकाल और रिक्ति की पूर्ति (Term of Office of Vice-President) से संबंधित है। यह प्रावधान उपराष्ट्रपति के कार्यकाल की अवधि, उनके त्यागपत्र, हटाने की प्रक्रिया, और रिक्ति की पूर्ति के लिए निर्वाचन को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 67 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक अपने पद पर बना रहेगा, परंतु—
(क) वह अपने हस्ताक्षर द्वारा लिखित त्यागपत्र भारत के राष्ट्रपति को संबोधित करके अपने पद को त्याग सकता है;
(ख) उसे संसद के दोनों सदनों के कुल सदस्यों की संख्या के बहुमत द्वारा पारित संकल्प द्वारा, जिसे कम से कम चौदह दिन का नोटिस देकर प्रस्तावित किया गया हो, हटाया जा सकता है, परंतु यह तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि राज्य सभा द्वारा पारित न हो जाए;
(ग) वह इस संविधान के अधीन पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र होगा।
परंतु यह कि उपराष्ट्रपति उस अवधि तक अपने पद पर बना रहेगा, जब तक कि उसका उत्तराधिकारी अपने पद पर प्रवेश न कर ले।
जब उपराष्ट्रपति के पद में रिक्ति होती है, जो उसकी मृत्यु, त्यागपत्र या हटाए जाने, या अन्य कारण से हो, तब उस रिक्ति की पूर्ति के लिए यथाशीघ्र निर्वाचन किया जाएगा।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 67 उपराष्ट्रपति के कार्यकाल की अवधि, त्यागपत्र, हटाने की प्रक्रिया, और रिक्ति की पूर्ति के लिए नियम निर्धारित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि उपराष्ट्रपति का पद लंबे समय तक रिक्त न रहे, जिससे संवैधानिक निरंतरता (विशेष रूप से राज्यसभा के सभापति और कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका) बनी रहे। यह उपराष्ट्रपति को संवैधानिक जवाबदेही के दायरे में रखता है, ताकि वह संवैधानिक ढांचे के भीतर कार्य करे।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक बहस: संविधान सभा ने उपराष्ट्रपति के कार्यकाल को राष्ट्रपति (अनुच्छेद 56) के समान 5 वर्ष रखने का निर्णय लिया, ताकि संवैधानिक पदों में एकरूपता रहे। प्रेरणा: यह प्रावधान अमेरिकी संविधान से प्रभावित है, जहाँ उपराष्ट्रपति का कार्यकाल और हटाने की प्रक्रिया (महाभियोग के माध्यम से) को परिभाषित किया गया है। भारत में, उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया सरल लेकिन संवैधानिक है। संघीय ढांचा: उपराष्ट्रपति की राज्यसभा के सभापति की भूमिका (अनुच्छेद 64) को ध्यान में रखते हुए, उनका कार्यकाल और रिक्ति की पूर्ति राज्यों के प्रतिनिधित्व को प्रभावित करती है।
3. अनुच्छेद 67 के प्रमुख उपखंड: अनुच्छेद 67 कई महत्वपूर्ण पहलुओं को कवर करता है
मुख्य प्रावधान: कार्यकाल उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पद ग्रहण की तारीख से 5 वर्ष का होता है। परंतुक: कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी उपराष्ट्रपति तब तक पद पर बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले। यह संवैधानिक निरंतरता सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से राज्यसभा की कार्यवाही और कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका के लिए।
उदाहरण: 2022 में, वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हुआ, लेकिन नए उपराष्ट्रपति (जगदीप धनखड़) के 11 अगस्त को पद ग्रहण करने तक वे पद पर बने रहे।
खंड (क): त्यागपत्र उपराष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर द्वारा लिखित त्यागपत्र राष्ट्रपति को संबोधित करके अपने पद को छोड़ सकता है।
प्रक्रिया: त्यागपत्र तत्काल प्रभावी हो सकता है, जब तक कि राष्ट्रपति इसे स्वीकार न कर ले। यह प्रक्रिया सरल है और राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर नहीं है।
उदाहरण: 1969 में, वी.वी. गिरि ने उपराष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दिया, ताकि वे राष्ट्रपति चुनाव लड़ सकें।
खंड (ख): हटाने की प्रक्रिया उपराष्ट्रपति को राज्यसभा द्वारा कुल सदस्यों के बहुमत (यानी, 50% से अधिक) से पारित संकल्प द्वारा हटाया जा सकता है। इस संकल्प को लोकसभा द्वारा सहमति दी जानी चाहिए।
शर्तें: संकल्प प्रस्तुत करने से पहले 14 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है। यह प्रक्रिया राष्ट्रपति के महाभियोग (अनुच्छेद 61) से सरल है, क्योंकि इसमें दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता नहीं है।
कारण: संविधान हटाने के लिए विशिष्ट कारण (जैसे, संविधान का उल्लंघन) का उल्लेख नहीं करता, लेकिन यह आमतौर पर गंभीर अनुशासनहीनता या अक्षमता के लिए माना जाता है।
उदाहरण: भारत में अब तक किसी उपराष्ट्रपति को इस प्रक्रिया द्वारा हटाया नहीं गया है।
खंड (ग): पुनर्निर्वाचन उपराष्ट्रपति पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र होता है, यानी वह एक से अधिक कार्यकाल के लिए चुना जा सकता है। उदाहरण: हामिद अंसारी (2007-2017) एकमात्र उपराष्ट्रपति हैं, जिन्होंने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1952-1962) ने भी दो कार्यकाल पूरे किए।
रिक्ति की पूर्ति: यदि उपराष्ट्रपति के पद में रिक्ति होती है, जो मृत्यु, त्यागपत्र, हटाने, या अन्य कारण से हो, तो उस रिक्ति को यथाशीघ्र भरा जाएगा। निर्वाचन प्रक्रिया: अनुच्छेद 66 के तहत निर्वाचक मंडल (संसद के दोनों सदनों के सदस्य) द्वारा नया उपराष्ट्रपति चुना जाता है। समय सीमा: संविधान छह महीने की स्पष्ट समय सीमा नहीं देता (जैसा कि राष्ट्रपति के लिए अनुच्छेद 62 में है), लेकिन "यथाशीघ्र" शब्द त्वरित कार्रवाई का संकेत देता है।
उदाहरण: 1969 में, वी.वी. गिरि के त्यागपत्र के बाद, गोपाल स्वरूप पाठक को जल्दी ही उपराष्ट्रपति चुना गया।
4. महत्व: संवैधानिक निरंतरता: कार्यकाल की निरंतरता और रिक्ति की त्वरित पूर्ति यह सुनिश्चित करती है कि राज्यसभा का सभापति (अनुच्छेद 64) और कार्यवाहक राष्ट्रपति (अनुच्छेद 65) का पद रिक्त न रहे।
लोकतांत्रिक जवाबदेही: हटाने की प्रक्रिया उपराष्ट्रपति को संसद के प्रति जवाबदेह बनाती है। संघीय ढांचा: उपराष्ट्रपति की राज्यसभा के सभापति की भूमिका को देखते हुए, उनका कार्यकाल और रिक्ति की पूर्ति राज्यों के प्रतिनिधित्व को प्रभावित करती है।
पुनर्निर्वाचन: पुनर्निर्वाचन की अनुमति अनुभवी नेताओं को पद पर बने रहने का अवसर देती है।
5. ऐतिहासिक उदाहरण
त्यागपत्र: वी.वी. गिरि (1969): उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दिया।
पुनर्निर्वाचन: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1952-1962): दो कार्यकाल। हामिद अंसारी (2007-2017): दो कार्यकाल।
मृत्यु: कृष्ण कांत (1997-2002): कार्यकाल के दौरान उनकी मृत्यु हुई, और भैरों सिंह शेखावत को जल्दी ही चुना गया।
हटाना: भारत में अब तक किसी उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई।
6. चुनौतियाँ और विवाद: हटाने की प्रक्रिया की अस्पष्टता: संविधान हटाने के लिए विशिष्ट कारणों (जैसे, संविधान का उल्लंघन) का उल्लेख नहीं करता, जिससे व्याख्या पर विवाद हो सकता है। राजनीतिक दबाव: हटाने का संकल्प शुरू करने में राजनीतिक गठजोड़ प्रभावी हो सकते हैं, जिससे दुरुपयोग की आशंका रहती है। रिक्ति में देरी: यद्यपि "यथाशीघ्र" कहा गया है, लेकिन रिक्ति की पूर्ति में राजनीतिक असहमति के कारण देरी हो सकती है। सभापति की अनुपस्थिति: उपराष्ट्रपति की रिक्ति की स्थिति में, राज्यसभा का उपसभापति (अनुच्छेद 89) कार्यवाही संचालित करता है, लेकिन यह अस्थायी समाधान है।
7. न्यायिक व्याख्या: शिव किरपाल सिंह बनाम वी.वी. गिरि (1970): उपराष्ट्रपति के त्यागपत्र और रिक्ति की पूर्ति से संबंधित मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 67 की संवैधानिक वैधता की पुष्टि की। किहोतो होलोहान बनाम ज़चिल्हू (1992): दसवीं अनुसूची से संबंधित मामले में, उपराष्ट्रपति की भूमिका और उनके कार्यकाल की स्थिरता पर चर्चा हुई।
न्यायिक समीक्षा: उपराष्ट्रपति के हटाने या निर्वाचन से संबंधित विवाद अनुच्छेद 71 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा के अधीन हो सकते हैं।
8. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान उपराष्ट्रपति: जगदीप धनखड़, जो 11 अगस्त 2022 को पद ग्रहण किए, 2027 तक कार्यकाल पूरा करेंगे।
प्रासंगिकता: अनुच्छेद 67 यह सुनिश्चित करता है कि उपराष्ट्रपति का कार्यकाल और रिक्ति की पूर्ति संवैधानिक ढांचे के अनुरूप हो, जो राज्यसभा की कार्यवाही और कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका के लिए महत्वपूर्ण है।
राजनीतिक परिदृश्य: 2025 में, मजबूत गठबंधन (जैसे, NDA) और विपक्षी गतिशीलता के कारण, उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और कार्यकाल की प्रक्रिया पर ध्यान बना रहता है।
9. संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 63: उपराष्ट्रपति के पद की स्थापना।
अनुच्छेद 64: उपराष्ट्रपति का राज्यसभा का सभापति होना।
अनुच्छेद 65: राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन।
अनुच्छेद 66: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन और योग्यता।
अनुच्छेद 71: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवाद।
10. विशेष तथ्य: पहला उपराष्ट्रपति: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1952-1962), जिन्होंने दो कार्यकाल पूरे किए।
त्यागपत्र का उदाहरण: वी.वी. गिरि (1969) ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए त्यागपत्र दिया। मृत्यु का उदाहरण: कृष्ण कांत (2002) की कार्यकाल के दौरान मृत्यु हुई। हटाने का अभाव: भारत में अब तक किसी उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई।
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