Article 66 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-06-28 16:17:25
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 66
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 66
अनुच्छेद 66 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय I (कार्यपालिका) में आता है। यह उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और योग्यता (Election of Vice-President) से संबंधित है। यह प्रावधान उपराष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया और उनके लिए आवश्यक योग्यताओं को परिभाषित करता है, ताकि यह पद योग्य और निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा धारण किया जाए।
अनुच्छेद 66 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "(1) उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बने निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाएगा।
(2) उपराष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा होगा, जैसा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून में उपबंधित हो।
(3) कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति के लिए निर्वाचन के लिए तभी पात्र होगा, जब वह—
(क) भारत का नागरिक हो;
(ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो; और
(ग) राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए पात्र हो।
(4) कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति के लिए निर्वाचन के लिए पात्र नहीं होगा, यदि वह भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन या उक्त किसी सरकार के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता हो।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 66 यह सुनिश्चित करता है कि उपराष्ट्रपति का चयन एक लोकतांत्रिक और संवैधानिक प्रक्रिया के माध्यम से हो। यह उपराष्ट्रपति के लिए न्यूनतम योग्यता मानदंड निर्धारित करता है, ताकि केवल उपयुक्त व्यक्ति ही इस संवैधानिक पद को धारण कर सकें। यह उपराष्ट्रपति को सरकारी प्रभाव या हितों के टकराव से मुक्त रखने के लिए लाभ के पद पर प्रतिबंध लगाता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक बहस: संविधान सभा ने उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को संसद के दोनों सदनों तक सीमित रखने का निर्णय लिया, ताकि यह प्रक्रिया सरल और केंद्रित रहे। यह राष्ट्रपति के निर्वाचन (अनुच्छेद 54) से भिन्न है, जिसमें राज्य विधानसभाएँ भी शामिल हैं। प्रेरणा: यह प्रावधान अमेरिकी संविधान से प्रभावित है, जहाँ उपराष्ट्रपति का निर्वाचन सीनेट द्वारा होता है। भारत में, यह संसदीय प्रणाली और संघीय ढांचे के अनुरूप है।
संघीय संतुलन: उपराष्ट्रपति की राज्यसभा के सभापति की भूमिका (अनुच्छेद 64) को ध्यान में रखते हुए, उनका निर्वाचन संसद तक सीमित रखा गया, क्योंकि राज्यसभा पहले से ही राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है।
3. अनुच्छेद 66 के प्रमुख उपखंड: अनुच्छेद 66 चार मुख्य भागों में विभाजित है
खंड (1): निर्वाचक मंडल उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सदस्यों से मिलकर बने निर्वाचक मंडल द्वारा होता है। इसमें निर्वाचित और नामित दोनों प्रकार के सदस्य शामिल होते हैं।
लोकसभा: अधिकतम 543 निर्वाचित + 2 नामित (आंग्ल-भारतीय, यदि नियुक्त हों)। राज्यसभा: अधिकतम 233 निर्वाचित + 12 नामित।
तुलना: यह राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल (अनुच्छेद 54) से भिन्न है, जिसमें राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भी शामिल हैं।
उद्देश्य: संसद तक सीमित निर्वाचक मंडल उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को केंद्रित और कुशल बनाता है।
खंड (2): निर्वाचन की प्रक्रिया उपराष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के आधार पर एकल हस्तांतरणीय मत (Single Transferable Vote) द्वारा होता है। मतदान गुप्त मतपत्र (secret ballot) के माध्यम से होता है।
प्रक्रिया: मतदाता अपनी पसंद के क्रम में उम्मीदवारों को वोट देते हैं। यदि कोई उम्मीदवार पहली गिनती में आवश्यक कोटा (कुल वैध मतों का आधा + 1) प्राप्त नहीं करता, तो सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को हटाकर उनके वोटों की दूसरी प्राथमिकता को स्थानांतरित किया जाता है।
कानूनी आधार: यह प्रक्रिया राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम, 1952 और संबंधित नियमों द्वारा शासित होती है।
उदाहरण: 2022 में, जगदीप धनखड़ ने विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराकर उपराष्ट्रपति का निर्वाचन जीता।
खंड (3): योग्यता कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति के लिए तभी पात्र होगा, जब वह:
(क) भारत का नागरिक: उम्मीदवार को जन्म से या अन्य वैध तरीके से भारत का नागरिक होना चाहिए। यह राष्ट्रीय निष्ठा और संप्रभुता को सुनिश्चित करता है।
(ख) 35 वर्ष की आयु: उम्मीदवार को कम से कम 35 वर्ष की आयु पूरी करनी होगी। यह परिपक्वता और अनुभव की आवश्यकता को दर्शाता है। तुलना: यह आयु सीमा राष्ट्रपति (अनुच्छेद 58) के समान है, लेकिन लोकसभा (25 वर्ष) और राज्यसभा (30 वर्ष) से अधिक है।
(ग) राज्यसभा के लिए पात्रता: उम्मीदवार को राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखनी होगी, जैसा कि अनुच्छेद 84 में वर्णित है। राज्यसभा की योग्यता (अनुच्छेद 84): भारत का नागरिक होना। 30 वर्ष की आयु पूरी करना। मानसिक रूप से स्वस्थ होना। दिवालिया न होना। किसी कानून के तहत अयोग्य न होना। इसका मतलब है कि उम्मीदवार को विधायी प्रक्रिया के लिए उपयुक्त होना चाहिए।
खंड (4): लाभ का पद पर प्रतिबंध कोई व्यक्ति जो लाभ का पद धारण करता हो, वह उपराष्ट्रपति के लिए पात्र नहीं होगा।
लाभ का पद: यह कोई ऐसा पद है जो भारत सरकार, किसी राज्य सरकार, या उनके नियंत्रण में किसी स्थानीय/अन्य प्राधिकारी के अधीन हो और जिसमें वेतन, भत्ते, या अन्य आर्थिक लाभ हों। उदाहरण: सरकारी कर्मचारी, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के अधिकारी, या सरकारी नियंत्रण वाले संगठनों के पदाधिकारी।
अपवाद: संसद या विधानमंडल के सदस्यों को इस प्रतिबंध से छूट दी जा सकती है, जैसा कि राष्ट्रपति के लिए अनुच्छेद 58(2) में है। उद्देश्य: यह उपराष्ट्रपति को सरकारी प्रभाव या हितों के टकराव से मुक्त रखता है।
4. महत्व: लोकतांत्रिक प्रक्रिया: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के सदस्यों द्वारा होता है, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों को दर्शाता है। निष्पक्षता: योग्यता मानदंड और लाभ के पद पर प्रतिबंध उपराष्ट्रपति की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं।
संघीय ढांचा: चूंकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है (अनुच्छेद 64), उसका निर्वाचन संसद तक सीमित रखना राज्यों के प्रतिनिधित्व को संतुलित करता है। संवैधानिक जवाबदेही: यह प्रावधान उपराष्ट्रपति के चयन को पारदर्शी और संवैधानिक बनाता है।
5. निर्वाचन की प्रक्रिया: निर्वाचक मंडल: लोकसभा और राज्यसभा के सभी सदस्य (निर्वाचित और नामित)। 2025 में, निर्वाचक मंडल में लगभग 776 सदस्य हैं (लोकसभा: 543 + राज्यसभा: 233)।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व: एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि विजेता को व्यापक समर्थन प्राप्त हो। प्रत्येक मतदाता की प्राथमिकता गिनी जाती है, जिससे अल्पसंख्यक मतों का भी प्रतिनिधित्व हो।
गुप्त मतदान: यह मतदाताओं को स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान की सुविधा देता है। निर्वाचन आयोग: भारत निर्वाचन आयोग इस प्रक्रिया का प्रबंधन करता है।
6. चुनौतियाँ और विवाद: राजनीतिक प्रभाव: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन अक्सर राजनीतिक गठजोड़ों पर निर्भर करता है, जिससे पक्षपात के आरोप लग सकते हैं। उदाहरण: 2022 में, जगदीप धनखड़ के निर्वाचन में NDA के समर्थन ने निर्णायक भूमिका निभाई। लाभ का पद की अस्पष्टता: लाभ के पद की परिभाषा पर विवाद हो सकता है, जैसा कि अन्य संवैधानिक पदों के लिए हुआ है।
सीमित निर्वाचक मंडल: केवल संसद के सदस्यों तक सीमित निर्वाचक मंडल को कुछ आलोचक संकीर्ण मानते हैं, क्योंकि इसमें राज्यों की प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होती। नामित सदस्यों की भूमिका: नामित सदस्यों (विशेषकर राज्यसभा के 12 नामित सदस्य) को वोट देने का अधिकार विवादास्पद रहा है।
7. न्यायिक व्याख्या: शिव किरपाल सिंह बनाम वी.वी. गिरि (1970): राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 66 की प्रक्रिया को संवैधानिक माना। किहोतो होलोहान बनाम ज़चिल्हू (1992): दसवीं अनुसूची से संबंधित मामले में, उपराष्ट्रपति की भूमिका और उनके निर्वाचन की निष्पक्षता पर चर्चा हुई।
न्यायिक समीक्षा: उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवाद अनुच्छेद 71 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा के अधीन हो सकते हैं।
8. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान उपराष्ट्रपति: जगदीप धनखड़, जो 11 अगस्त 2022 को निर्वाचित हुए, अनुच्छेद 66 की सभी योग्यताओं को पूरा करते हैं। 2022 का निर्वाचन: धनखड़ ने NDA के समर्थन से विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराया। प्रासंगिकता: 2025 में, अनुच्छेद 66 यह सुनिश्चित करता है कि उपराष्ट्रपति का चयन निष्पक्ष और संवैधानिक हो, जो उनकी राज्यसभा के सभापति और कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिकाओं के लिए महत्वपूर्ण है।
राजनीतिक परिदृश्य: मजबूत गठबंधन (जैसे, NDA) और विपक्षी एकता के बीच तनाव के कारण, उपराष्ट्रपति का निर्वाचन भविष्य में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो सकता है।
9. संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 63: उपराष्ट्रपति के पद की स्थापना।
अनुच्छेद 64: उपराष्ट्रपति का राज्यसभा का सभापति होना।
अनुच्छेद 65: राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन।
अनुच्छेद 67: उपराष्ट्रपति का कार्यकाल।
अनुच्छेद 71: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवाद।
अनुच्छेद 84: राज्यसभा की योग्यता।
10. विशेष तथ्य: पहला उपराष्ट्रपति: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1952-1962), जिन्होंने दो कार्यकाल पूरे किए और बाद में राष्ट्रपति बने। उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति: वी.वी. गिरि, आर. वेंकटरमण, और शंकर दयाल शर्मा जैसे उपराष्ट्रपति बाद में राष्ट्रपति बने।
दो कार्यकाल: हामिद अंसारी (2007-2017) एकमात्र उपराष्ट्रपति हैं, जिन्होंने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए। निष्पक्षता: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन उनकी निष्पक्ष भूमिका (राज्यसभा के सभापति और कार्यवाहक राष्ट्रपति) को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया गया है।
Conclusion
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jp Singh
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