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Article 63 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-28 15:58:59
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 63

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 63
अनुच्छेद 63 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय I (कार्यपालिका) में आता है। यह भारत के उपराष्ट्रपति के पद की स्थापना (The Vice-President of India) से संबंधित है। यह प्रावधान उपराष्ट्रपति के पद को संवैधानिक रूप से स्थापित करता है, जो राष्ट्रपति के बाद देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है।
अनुच्छेद 63 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 63 भारत में उपराष्ट्रपति के पद की स्थापना करता है, जो संवैधानिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उपराष्ट्रपति का पद यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति, रिक्ति, या अक्षमता की स्थिति में संवैधानिक निरंतरता बनी रहे। यह प्रावधान उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभापति (अनुच्छेद 64) और राष्ट्रपति के कर्तव्यों के निर्वहन (अनुच्छेद 65) की जिम्मेदारी सौंपता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक बहस: संविधान सभा में उपराष्ट्रपति के पद की स्थापना पर चर्चा हुई थी। यह निर्णय लिया गया कि उपराष्ट्रपति का पद राष्ट्रपति के समान एक संवैधानिक और निष्पक्ष भूमिका होगी, जो संसदीय प्रणाली में कार्यकारी और विधायी संतुलन को बनाए रखे
प्रेरणा: यह प्रावधान अमेरिकी संविधान से प्रभावित है, जहाँ उपराष्ट्रपति का पद सीनेट का सभापति होता है और राष्ट्रपति की रिक्ति में उनकी जगह लेता है। भारत में, यह भूमिका संसदीय प्रणाली के अनुरूप अनुकूलित की गई। भारतीय संदर्भ: उपराष्ट्रपति का पद भारत की संघीय और लोकतांत्रिक संरचना को मजबूत करता है, क्योंकि यह राज्यसभा (जो राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है) और राष्ट्रपति की भूमिकाओं को जोड़ता है।
3. उपराष्ट्रपति की भूमिका और जिम्मेदारियाँ: अनुच्छेद 63 स्वयं उपराष्ट्रपति के पद की स्थापना करता है, लेकिन उनकी जिम्मेदारियाँ अन्य प्रावधानों में वर्णित हैं
राज्यसभा का सभापति (अनुच्छेद 64): उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। वह सदन की कार्यवाही का संचालन करता है, व्यवस्था बनाए रखता है, और मतदान में समानता की स्थिति में निर्णायक मत (casting vote) देता है।
राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन (अनुच्छेद 65): राष्ट्रपति की मृत्यु, त्यागपत्र, महाभियोग, या अक्षमता (जैसे, बीमारी) की स्थिति में उपराष्ट्रपति उनके कर्तव्यों का निर्वहन करता है। यह अस्थायी भूमिका है, जब तक नया राष्ट्रपति चुना नहीं जाता। संवैधानिक निष्पक्षता: उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति की तरह निष्पक्ष और संवैधानिक ढांचे के भीतर कार्य करना होता है।
4. महत्व: संवैधानिक निरंतरता: उपराष्ट्रपति का पद यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यकारी शक्ति (अनुच्छेद 53) रिक्त न रहे। संघीय ढांचा: राज्यसभा के सभापति के रूप में, उपराष्ट्रपति राज्यों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है, जो भारत के संघीय ढांचे को मजबूत करता है। लोकतांत्रिक सिद्धांत: उपराष्ट्रपति का पद विधायी और कार्यकारी शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखता है। निष्पक्षता: उपराष्ट्रपति को राजनीतिक दलों से स्वतंत्र रहना होता है, जो उनकी संवैधानिक भूमिका के लिए महत्वपूर्ण है।
5. उपराष्ट्रपति का निर्वाचन और योग्यता: अनुच्छेद 63 उपराष्ट्रपति के पद की स्थापना करता है, लेकिन निर्वाचन और योग्यता अन्य प्रावधानों में वर्णित हैं
निर्वाचन (अनुच्छेद 66): उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित और नामित सदस्यों से मिलकर बने निर्वाचक मंडल द्वारा होता है। यह राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल (अनुच्छेद 54) से भिन्न है, क्योंकि इसमें राज्य विधानसभाएँ शामिल नहीं होतीं।
योग्यता (अनुच्छेद 66): भारत का नागरिक होना। 35 वर्ष की आयु पूरी करना। राज्यसभा के सदस्य के लिए पात्र होना। कोई लाभ का पद धारण न करना। कार्यकाल: उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष होता है (अनुच्छेद 67), और वह पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र होता है।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: पहला उपराष्ट्रपति: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1952-1962), जो बाद में राष्ट्रपति बने। उल्लेखनीय उपराष्ट्रपति: वी.वी. गिरि (1967-1969): ज़ाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति बने और बाद में राष्ट्रपति चुने गए। हामिद अंसारी (2007-2017): दो कार्यकाल तक उपराष्ट्रपति रहे, जो एक दुर्लभ उदाहरण है। वर्तमान उपराष्ट्रपति (2025): जगदीप धनखड़, जो 11 अगस्त 2022 को पद ग्रहण किए, वर्तमान में उपराष्ट्रपति हैं।
7. चुनौतियाँ और विवाद: सीमित शक्तियाँ: उपराष्ट्रपति की भूमिका मुख्य रूप से प्रतीकात्मक और विधायी है, जिसके कारण इसे कभी-कभी "सजावटी पद" माना जाता है। राजनीतिक प्रभाव: यद्यपि उपराष्ट्रपति को निष्पक्ष रहना होता है, लेकिन उनके निर्वाचन में राजनीतिक गठजोड़ प्रभावी हो सकते हैं। राज्यसभा में विवाद: राज्यसभा के सभापति के रूप में, उपराष्ट्रपति को कभी-कभी पक्षपात के आरोपों का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से विधायी चर्चाओं में।
अस्थायी भूमिका: राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति की अस्थायी भूमिका जटिल हो सकती है, खासकर यदि लंबे समय तक रिक्ति बनी रहे।
8. न्यायिक व्याख्या: शिव किरपाल सिंह बनाम वी.वी. गिरि (1970): उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और उनकी भूमिका से संबंधित मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक ढांचे की पुष्टि की। किहोतो होलोहान बनाम ज़चिल्हू (1992): दसवीं अनुसूची से संबंधित मामले में, राज्यसभा के सभापति (उपराष्ट्रपति) की भूमिका की निष्पक्षता पर चर्चा हुई। न्यायिक समीक्षा: उपराष्ट्रपति के निर्णय (विशेष रूप से सभापति के रूप में) सीमित रूप से न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं।
. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान उपराष्ट्रपति: जगदीप धनखड़ 11 अगस्त 2022 से उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्यरत हैं। उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक है। प्रासंगिकता: अनुच्छेद 63 उपराष्ट्रपति के पद को संवैधानिक ढांचे का अभिन्न हिस्सा बनाता है, जो विधायी और कार्यकारी निरंतरता सुनिश्चित करता है। राजनीतिक परिदृश्य: 2025 में, उपराष्ट्रपति की भूमिका राज्यसभा में विधायी संतुलन और केंद्र-राज्य संबंधों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है।
10. संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 64: उपराष्ट्रपति का राज्यसभा के सभापति के रूप में पद।
अनुच्छेद 65: राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन।
अनुच्छेद 66: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन और योग्यता।
अनुच्छेद 67: उपराष्ट्रपति का कार्यकाल।
अनुच्छेद 71: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवाद।
11. विशेष तथ्य
पहला उपराष्ट्रपति: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जिन्होंने दो कार्यकाल (1952-1962) तक सेवा की और बाद में राष्ट्रपति बने।
दो कार्यकाल: हामिद अंसारी (2007-2017) एकमात्र उपराष्ट्रपति हैं, जिन्होंने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए।
उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति: कई उपराष्ट्रपति, जैसे वी.वी. गिरि, आर. वेंकटरमण, और शंकर दयाल शर्मा, बाद में राष्ट्रपति बने।
राज्यसभा की भूमिका: उपराष्ट्रपति की सभापति की भूमिका राज्यों के हितों को केंद्र में प्रतिनिधित्व देती है।
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