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Article 61 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-28 15:50:15
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 61

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 61
अनुच्छेद 61 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय I (कार्यपालिका) में आता है। यह राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया (Procedure for Impeachment of the President) से संबंधित है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि यदि राष्ट्रपति संविधान का उल्लंघन करता है, तो उसे संवैधानिक रूप से हटाया जा सकता है, जिससे उनकी जवाबदेही बनी रहे।
अनुच्छेद 61 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "जब राष्ट्रपति पर संविधान के उल्लंघन का अभियोग लगाया जाए, तब निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाएगी—
(क) संसद का कोई भी सदन ऐसा अभियोग प्रस्तुत कर सकता है।
(ख) ऐसा अभियोग तभी प्रस्तुत किया जाएगा, जब वह उस सदन के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित हो और उस सदन को कम से कम चौदह दिन का नोटिस दिया गया हो।
(ग) जब ऐसा अभियोग उस सदन के कम से कम दो-तिहाई कुल सदस्यों द्वारा पारित कर दिया जाए, तब दूसरा सदन उस अभियोग की जाँच करेगा या करवाएगा और राष्ट्रपति को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा।
(घ) यदि जाँच करने वाला सदन भी उस अभियोग को कम से कम दो-तिहाई कुल सदस्यों द्वारा समर्थन देता है, तो ऐसा अभियोग पारित होने की तारीख से राष्ट्रपति को अपने पद से हटा देगा।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति को संवैधानिक जवाबदेही के दायरे में रखता है, ताकि वह संविधान का उल्लंघन करने पर हटाया जा सके। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति, जो देश का संवैधानिक प्रमुख है, संवैधानिक ढांचे के भीतर कार्य करे। महाभियोग की प्रक्रिया को जटिल और कठिन बनाया गया है, ताकि इसका दुरुपयोग न हो और केवल गंभीर परिस्थितियों में ही लागू हो।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक बहस: संविधान सभा ने राष्ट्रपति को संवैधानिक जवाबदेही के अधीन रखने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया को शामिल किया। यह विचार अमेरिकी संविधान (अनुच्छेद II, धारा 4) से प्रेरित था, जहाँ राष्ट्रपति को "देशद्रोह, रिश्वत, या अन्य उच्च अपराधों और दुष्कर्मों" के लिए महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है। भारतीय संदर्भ: भारत में, महाभियोग केवल संविधान के उल्लंघन के लिए लागू होता है, न कि सामान्य अपराधों या नीतिगत असहमति के लिए, जो राष्ट्रपति की नाममात्र भूमिका (अनुच्छेद 74) के अनुरूप है। सुरक्षा उपाय: दो-तिहाई बहुमत और दोनों सदनों की भागीदारी जैसे कठिन मानदंड यह सुनिश्चित करते हैं कि महाभियोग का उपयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में हो।
3. महाभियोग की प्रक्रिया: अनुच्छेद 61 चार चरणों में महाभियोग की प्रक्रिया को परिभाषित करता है
(क) अभियोग प्रस्तुत करना: संसद का कोई भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) महाभियोग का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता है। यह प्रस्ताव केवल संविधान के उल्लंघन के आधार पर हो सकता है। संविधान का उल्लंघन: इसका अर्थ है कि राष्ट्रपति ने संवैधानिक कर्तव्यों या शपथ (अनुच्छेद 60) का पालन नहीं किया। उदाहरण: मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना कार्य करना या संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन।
(ख) प्रस्ताव के लिए शर्तें: प्रस्ताव को कम से कम एक-चौथाई सदस्यों (सदन की कुल सदस्यता का 25%) द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए। प्रस्ताव पर विचार से पहले 14 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है। प्रस्ताव को उस सदन के दो-तिहाई कुल सदस्यों (total membership, न कि उपस्थित और मतदान करने वालों) के बहुमत से पारित करना होगा। उदाहरण: लोकसभा में कुल सदस्यता 543 है, इसलिए प्रस्ताव के लिए कम से कम 136 सदस्यों (543 का 1/4) के हस्ताक्षर और 362 सदस्यों (543 का 2/3) का समर्थन आवश्यक है।
(ग) जाँच प्रक्रिया: यदि एक सदन प्रस्ताव पारित करता है, तो दूसरा सदन (लोकसभा या राज्यसभा) अभियोग की जाँच करता है या करवाता है। राष्ट्रपति को जाँच के दौरान अपना पक्ष रखने और प्रतिनिधित्व (वकील के माध्यम से) का अधिकार है। यह जाँच निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए, ताकि संवैधानिक प्रक्रिया का पालन हो।
(घ) अभियोग का पारित होना और हटाना: यदि जाँच करने वाला सदन भी प्रस्ताव को दो-तिहाई कुल सदस्यों के बहुमत से पारित करता है, तो अभियोग स्वीकार हो जाता है। इस स्थिति में, राष्ट्रपति को उसी तारीख से पद से हटा दिया जाता है, जब दूसरा सदन प्रस्ताव पारित करता है।
4. महत्व: संवैधानिक जवाबदेही: महाभियोग की प्रक्रिया राष्ट्रपति को संवैधानिक सीमाओं के भीतर कार्य करने के लिए बाध्य करती है। शक्ति संतुलन: यह कार्यपालिका (राष्ट्रपति) और विधायिका (संसद) के बीच संवैधानिक संतुलन बनाए रखता है। लोकतांत्रिक सिद्धांत: यह सुनिश्चित करता है कि देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद भी जवाबदेही से मुक्त नहीं है। दुर्लभता: प्रक्रिया को जटिल बनाया गया है, ताकि इसका दुरुपयोग न हो और केवल गंभीर संवैधानिक उल्लंघन के मामलों में ही लागू हो।
5. भारत में महाभियोग का उपयोग: कोई उदाहरण नहीं: भारत में अब तक किसी भी राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है।
कारण: राष्ट्रपति की शक्तियाँ नाममात्र हैं और मंत्रिपरिषद की सलाह पर निर्भर हैं (अनुच्छेद 74), जिससे संविधान के उल्लंघन की संभावना कम है। संवैधानिक परंपराएँ और राष्ट्रपति की निष्पक्ष भूमिका ने इस प्रक्रिया की आवश्यकता को दुर्लभ बनाया है।
संभावित परिदृश्य: यदि कोई राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह को बार-बार अस्वीकार करता है या संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। उदाहरण: अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के दुरुपयोग या विधेयकों को अनुचित रूप से रोकने पर विवाद हो सकता है।
6. चुनौतियाँ और विवाद: अस्पष्टता: "संविधान का उल्लंघन" की परिभाषा अस्पष्ट है, क्योंकि यह विशिष्ट अपराधों को परिभाषित नहीं करता। यह व्याख्या पर निर्भर करता है। राजनीतिक दुरुपयोग: दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता के बावजूद, राजनीतिक गठजोड़ों के कारण महाभियोग का दुरुपयोग होने की आशंका रहती है। जटिल प्रक्रिया: प्रक्रिया इतनी कठिन है कि यह केवल असाधारण परिस्थितियों में ही लागू हो सकती है, जिससे इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं। न्यायिक समीक्षा: यदि महाभियोग प्रक्रिया में अनियमितता होती है, तो यह सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा के अधीन हो सकती है।
7. न्यायिक व्याख्या: रामस्वामी बनाम भारत संघ (1977): सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति की संवैधानिक जवाबदेही और महाभियोग की प्रक्रिया को संवैधानिक ढांचे का हिस्सा माना। बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग के संदर्भ में, न्यायालय ने राष्ट्रपति की भूमिका की समीक्षा की, जो महाभियोग के लिए आधार बन सकता है। न्यायिक हस्तक्षेप: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि महाभियोग की प्रक्रिया विधायी है, लेकिन यह संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए।
8. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू, जो 25 जुलाई 2022 को पद ग्रहण कीं, ने अपनी संवैधानिक भूमिका का पालन किया है, और उनके खिलाफ महाभियोग का कोई प्रश्न नहीं उठा है। प्रासंगिकता: अनुच्छेद 61 यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति संवैधानिक सीमाओं के भीतर कार्य करें, जो भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए महत्वपूर्ण है। राजनीतिक परिदृश्य: 2025 में, मजबूत राजनीतिक गठजोड़ (जैसे, NDA) और संवैधानिक परंपराएँ महाभियोग जैसे कदमों को असंभव बनाती हैं, जब तक कि कोई गंभीर संवैधानिक उल्लंघन न हो।
9. संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 56: राष्ट्रपति का कार्यकाल और समाप्ति।
अनुच्छेद 58: राष्ट्रपति की योग्यता।
अनुच्छेद 60: राष्ट्रपति की शपथ।
अनुच्छेद 74: मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य।
10. विशेष तथ्य: कोई महाभियोग नहीं: भारत के 75 साल के संवैधानिक इतिहास में किसी भी राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई। अमेरिकी तुलना: अमेरिका में चार राष्ट्रपतियों (एंड्रयू जॉनसन, बिल क्लिंटन, डोनाल्ड ट्रम्प-दो बार) के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाए गए, लेकिन भारत में यह प्रक्रिया अब तक अप्रयुक्त रही। जटिल प्रक्रिया: दो-तिहाई बहुमत और दोनों सदनों की भागीदारी महाभियोग को अत्यंत कठिन बनाती है।
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