Article 60 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-06-28 15:45:43
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 60
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 60
अनुच्छेद 60 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय I (कार्यपालिका) में आता है। यह राष्ट्रपति द्वारा ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान (Oath or Affirmation by the President) से संबंधित है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन निष्पक्षता और संविधान के प्रति निष्ठा के साथ करें।
अनुच्छेद 60 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "प्रत्येक राष्ट्रपति और प्रत्येक व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, अपने कर्तव्यों का निर्वहन प्रारंभ करने से पहले, भारत के मुख्य न्यायाधीश या, उनकी अनुपस्थिति में, सर्वोच्च न्यायालय के उपलब्ध वरिष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित रूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा, अर्थात्— ‘मैं, (नाम), ईश्वर की शपथ लेता हूँ/गंभीरतापूर्वक प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान का यथाशक्ति संरक्षण, संवर्धन और रक्षा करूँगा और अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करूँगा।’"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 60 यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति, जो भारत का संवैधानिक प्रमुख और देश का प्रथम नागरिक है, अपने कर्तव्यों का निर्वहन संविधान के प्रति निष्ठा और निष्पक्षता के साथ करे। शपथ या प्रतिज्ञान राष्ट्रपति को उनके कर्तव्यों, विशेष रूप से संविधान के संरक्षण और जनता की सेवा के प्रति जवाबदेह बनाता है। यह प्रावधान राष्ट्रपति के पद की गरिमा और जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: संविधान सभा ने राष्ट्रपति को संवैधानिक प्रमुख के रूप में परिभाषित किया, जिसके लिए संविधान के प्रति निष्ठा और जनता की सेवा आवश्यक थी। शपथ का प्रावधान इस नU+0938ंवैधानिक प्रतिबद्धता को औपचारिक रूप देता है। प्रेरणा: यह प्रावधान अमेरिकी संविधान (राष्ट्रपति की शपथ, अनुच्छेद II) और अन्य लोकतांत्रिक संविधानों से प्रेरित है, जहाँ शपथ कार्यकारी प्रमुख को संवैधानिक कर्तव्यों के प्रति बाध्य करती है। भारतीय संदर्भ: भारत में संसदीय प्रणाली के तहत, राष्ट्रपति की शक्तियाँ मंत्रिपरिषद की सलाह पर निर्भर हैं (अनुच्छेद 74), लेकिन शपथ यह सुनिश्चित करती है कि वह संवैधानिक ढांचे के भीतर कार्य करे।
3. शपथ की प्रमुख विशेषताएँ: शपथ/प्रतिज्ञान का रूप: शपथ में ईश्वर की शपथ (swear in the name of God) या गंभीर प्रतिज्ञान (solemnly affirm) का विकल्प है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत विश्वासों का समावेश करता है। शपथ में राष्ट्रपति यह वचन देता है कि वह: संविधान का संरक्षण, संवर्धन, और रक्षा करेगा। अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करेगा। भारत के लोगों की सेवा और कल्याण के लिए समर्पित रहेगा।
शपथ ग्रहण का समय: राष्ट्रपति को अपने पद ग्रहण से पहले शपथ लेनी होती है। यह आमतौर पर एक औपचारिक समारोह में होता है, जो संसद भवन के सेंट्रल हॉल में आयोजित किया जाता है।
शपथ दिलाने वाला व्यक्ति: शपथ भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) द्वारा दिलाई जाती है। उनकी अनुपस्थिति में, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम उपलब्ध न्यायाधीश यह कार्य करते हैं। उदाहरण: 2022 में, द्रौपदी मुर्मू ने मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना के समक्ष शपथ ली थी।
4. शपथ का महत्व: संवैधानिक जवाबदेही: शपथ राष्ट्रपति को संविधान के प्रति निष्ठा के लिए बाध्य करती है, जो उनकी भूमिका का आधार है। निष्पक्षता: यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति किसी भी राजनीतिक या व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर कार्य करे।
राष्ट्रीय एकता: शपथ में "भारत के लोगों की सेवा और कल्याण" का उल्लेख राष्ट्रपति को देश की एकता और जनता के प्रति समर्पण का प्रतीक बनाता है। प्रतीकात्मकता: शपथ समारोह एक राष्ट्रीय आयोजन होता है, जो संवैधानिक परंपराओं और लोकतांत्रिक मूल्यों को दर्शाता है।
5. शपथ की प्रक्रिया
समारोह: शपथ ग्रहण समारोह आमतौर पर संसद भवन के सेंट्रल हॉल में आयोजित किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद, सांसद, और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित होते हैं। यह समारोह राष्ट्रपति के कार्यकाल की औपचारिक शुरुआत को चिह्नित करता है।
ऐतिहासिक उदाहरण: डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1950): भारत के पहले राष्ट्रपति ने 26 जनवरी 1950 को शपथ ली, जो गणतंत्र दिवस के साथ संयोग था। द्रौपदी मुर्मू (2022): उन्होंने 25 जुलाई 2022 को मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना के समक्ष शपथ ली।
अनुपस्थिति में प्रावधान: यदि मुख्य न्यायाधीश उपलब्ध न हो, तो वरिष्ठतम न्यायाधीश शपथ दिलाता है, जो संवैधानिक निरंतरता सुनिश्चित करता है।
6. चुनौतियाँ और विवाद: शपथ का उल्लंघन: यदि कोई राष्ट्रपति संविधान का उल्लंघन करता है, तो अनुच्छेद 61 के तहत महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। हालांकि, भारत में अब तक ऐसा कोई मामला नहीं हुआ। प्रतीकात्मकता बनाम वास्तविकता: चूंकि राष्ट्रपति की शक्तियाँ मंत्रिपरिषद की सलाह पर निर्भर हैं (अनुच्छेद 74), कुछ आलोचकों का मानना है कि शपथ की प्रतिबद्धता प्रतीकात्मक है। धार्मिक स्वतंत्रता: शपथ में "ईश्वर की शपथ" और "प्रतिज्ञान" का विकल्प भारत की धर्मनिरपेक्षता को दर्शाता है, लेकिन कुछ मामलों में इसकी प्रासंगिकता पर बहस हुई है।
7. न्यायिक व्याख्या: अनुच्छेद 60 पर सीधे कोई प्रमुख न्यायिक मामले नहीं हैं, क्योंकि यह एक स्पष्ट और औपचारिक प्रावधान है। रामस्वामी बनाम भारत संघ (1977): सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका और उनकी शपथ के महत्व को रेखांकित किया, जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति का कार्य संविधान के अनुरूप होना चाहिए। शिव किरपाल सिंह बनाम वी.वी. गिरि (1970): राष्ट्रपति के निर्वाचन और कर्तव्यों से संबंधित मामलों में शपथ की संवैधानिक महत्ता पर जोर दिया गया।
8. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू, जो 25 जुलाई 2022 को पद ग्रहण कीं, ने अनुच्छेद 60 के तहत शपथ ली थी। उनकी शपथ ने उनकी संवैधानिक प्रतिबद्धता और भारत के लोगों की सेवा के प्रति समर्पण को दर्शाया। शपथ समारोह: द्रौपदी मुर्मू की शपथ एक राष्ट्रीय आयोजन था, जिसमें उनकी आदिवासी पृष्ठभूमि और सामाजिक समावेशन की प्रतीकात्मकता को व्यापक रूप से सराहा गया। प्रासंगिकता: 2025 में, शपथ का महत्व राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका और देश की एकता को मजबूत करने में स्पष्ट है। राजनीतिक परिदृश्य: शपथ समारोह एक राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है, जो राजनीतिक गठजोड़ों से परे देश की संवैधानिक परंपराओं को दर्शाता है।
9. संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 52: राष्ट्रपति के पद की स्थापना।
अनुच्छेद 53: संघ की कार्यकारी शक्ति।
अनुच्छेद 58: राष्ट्रपति की योग्यता।
अनुच्छेद 61: महाभियोग की प्रक्रिया।
अनुच्छेद 74: मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य।
10. विशेष तथ्य: पहला राष्ट्रपति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को पहली बार शपथ ली, जो गणतंत्र भारत की स्थापना का प्रतीक था। महिला राष्ट्रपति: प्रतिभा पाटिल (2007) और द्रौपदी मुर्मू (2022) ने इस शपथ को लेकर अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता को दर्शाया। शपथ की भाषा: शपथ हिंदी या अंग्रेजी में ली जा सकती है, और यह धर्मनिरपेक्षता को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है। मुख्य न्यायाधीश की भूमिका: शपथ समारोह में मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संवैधानिक संतुलन को दर्शाती है।
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