Article 59 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-06-28 15:42:10
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 59
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 59
अनुच्छेद 59 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय I (कार्यपालिका) में आता है। यह राष्ट्रपति के लिए सेवा शर्तें (Conditions of President's Office) और उनके पद से संबंधित कुछ प्रतिबंधों को परिभाषित करता है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति का पद संवैधानिक गरिमा, स्वतंत्रता, और निष्पक्षता के साथ संचालित हो।
अनुच्छेद 59 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "(1) राष्ट्रपति, भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन या उक्त किसी सरकार के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
(2) राष्ट्रपति, संसद के किसी भी सदन या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि कोई व्यक्ति, जो संसद के किसी सदन या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य हो, राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होता है, तो यह समझा जाएगा कि उसने अपने निर्वाचन की तारीख से उस सदन में अपनी सीट रिक्त कर दी है।
(3) राष्ट्रपति को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में, अपने कार्यकाल के दौरान, संसद द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार वेतन और भत्ते प्राप्त होंगे।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 59 राष्ट्रपति के पद की गरिमा, स्वतंत्रता, और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए सेवा शर्तों और प्रतिबंधों को निर्धारित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति किसी अन्य लाभकारी पद या विधायी सदस्यता से प्रभावित न हो, ताकि वह संवैधानिक कर्तव्यों को निष्पक्ष रूप से निभा सके। यह राष्ट्रपति के लिए उचित वेतन, भत्ते, और विशेषाधिकार प्रदान करता है, जो उनके पद की गरिमा के अनुरूप हों।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक बहस: संविधान सभा ने राष्ट्रपति के पद को एक संवैधानिक और नाममात्र प्रमुख के रूप में परिभाषित किया, जिसके लिए स्वतंत्रता और निष्पक्षता आवश्यक थी। इसलिए, लाभ के पद और विधायी सदस्यता पर प्रतिबंध लगाए गए। प्रेरणा: यह प्रावधान ब्रिटिश संवैधानिक परंपराओं (जहाँ सम्राट अन्य पदों से मुक्त होता है) और अमेरिकी संविधान (राष्ट्रपति के लिए समान प्रतिबंध) से प्रेरित है। वेतन और भत्ते: राष्ट्रपति के लिए वेतन और विशेषाधिकारों का प्रावधान भारत की संप्रभुता और संवैधानिक ढांचे को दर्शाता है, जो औपनिवेशिक गवर्नर-जनरल की तुलना में स्वतंत्र और लोकतांत्रिक है।
3. अनुच्छेद 59 के प्रमुख उपखंड: अनुच्छेद 59 तीन मुख्य भागों में विभाजित है
खंड (1): लाभ का पद पर प्रतिबंध राष्ट्रपति किसी भी लाभ का पद (office of profit) धारण नहीं कर सकता, जो भारत सरकार, किसी राज्य सरकार, या उनके नियंत्रण में किसी स्थानीय/अन्य प्राधिकारी के अधीन हो।
लाभ का पद: यह कोई ऐसा पद है जिसमें वेतन, भत्ते, या अन्य आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं, और जो सरकारी नियंत्रण में हो। उदाहरण: सरकारी कर्मचारी, सार्वजनिक क्षेत्र descended: संवैधानिक निष्पक्षता: यह प्रावधान राष्ट्रपति को सरकारी प्रभाव या हितों के टकराव से मुक्त रखता है, जो उनकी संवैधानिक भूमिका की निष्पक्षता के लिए महत्वपूर्ण है।
तुलना: यह शर्त अनुच्छेद 58(2) के समान है, जो राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए लाभ के पद पर प्रतिबंध लगाती है। अंतर यह है कि अनुच्छेद 59 कार्यकाल के दौरान लागू होता है।
खंड (2): विधायी सदस्यता पर प्रतिबंध राष्ट्रपति संसद (लोकसभा/राज्यसभा) या किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं हो सकता। यदि कोई व्यक्ति, जो संसद या किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य है, राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होता है, तो वह पद ग्रहण की तारीख से अपनी विधायी सीट रिक्त कर देता है। उद्देश्य: यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति किसी राजनीतिक या विधायी भूमिका से प्रभावित न हो, ताकि वह संवैधानिक प्रमुख के रूप में निष्पक्ष रहे। उदाहरण: 2007 में, प्रतिभा पाटिल, जो राजस्थान विधानसभा की सदस्य थीं, राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर अपनी सीट छोड़ दी थीं। इसी तरह, 2022 में द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति बनने से पहले किसी भी लाभकारी या विधायी पद से मुक्ति सुनिश्चित की।
खंड (3): वेतन, भत्ते, और विशेषाधिकार राष्ट्रपति को उनके कर्तव्यों के निर्वहन के लिए वेतन, भत्ते, और विशेषाधिकार प्राप्त होंगे, जो संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। यदि ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया है, तो दूसरी अनुसूची में उल्लिखित वेतन और भत्ते लागू होते हैं।
वर्तमान स्थिति (2025): राष्ट्रपति का वेतन राष्ट्रपति (वेतन और भत्ते) अधिनियम, 1951 के तहत निर्धारित है, जिसे समय-समय पर संशोधित किया जाता है। 2025 में, राष्ट्रपति का मासिक वेतन लगभग 5 लाख रुपये है, साथ ही अन्य भत्ते और विशेषाधिकार (जैसे, आवास, यात्रा, चिकित्सा सुविधाएँ)। राष्ट्रपति भवन: राष्ट्रपति को दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आवास और अन्य सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
4. महत्व: निष्पक्षता और स्वतंत्रता: लाभ का पद और विधायी सदस्यता पर प्रतिबंध यह सुनिश्चित करते हैं कि राष्ट्रपति किसी भी सरकारी या राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहे। संवैधानिक गरिमा: वेतन और विशेषाधिकार राष्ट्रपति के पद की गरिमा को बनाए रखते हैं, जो देश का प्रथम नागरिक और संवैधानिक प्रमुख होता है। लोकतांत्रिक सिद्धांत: यह प्रावधान राष्ट्रपति को राजनीतिक दलों या सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र रखता है, जो उनकी संवैधानिक भूमिका के लिए महत्वपूर्ण है। संवैधानिक निरंतरता: यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति का पद अन्य जिम्मेदारियों से मुक्त हो, ताकि वह पूर्णकालिक रूप से संवैधानिक कर्तव्यों पर ध्यान दे सके।
5. लाभ का पद (Office of Profit): परिभाषा: लाभ का पद वह है जिसमें वेतन, भत्ते, या अन्य आर्थिक लाभ के साथ-साथ सरकारी नियंत्रण या प्रभाव हो सकता है। न्यायिक व्याख्या: जया बच्चन बनाम भारत संघ (2006): सर्वोच्च न्यायालय ने लाभ के पद की परिभाषा को स्पष्ट किया, जिसमें कहा गया कि यह वह पद है जो आर्थिक लाभ के साथ-साथ कार्यकारी शक्ति या प्रभाव प्रदान करता है। गुरु गोबिंद बसु बनाम संकरी प्रसाद (1964): लाभ के पद को सरकारी नियंत्रण से जोड़ा गया। उदाहरण: सरकारी विश्वविद्यालय का कुलपति, सरकारी निगम का अध्यक्ष, या कोई अन्य सरकारी नियुक्ति लाभ का पद मानी जाती है। राष्ट्रपति बनने से पहले उम्मीदवार को ऐसे सभी पदों से त्यागपत्र देना होगा।
6. चुनौतियाँ और विवाद: लाभ के पद की अस्पष्टता: लाभ के पद की परिभाषा पर कई बार बहस हुई है, क्योंकि कुछ पदों (जैसे, सलाहकार भूमिकाएँ) को लाभ का पद माना जाए या नहीं, यह स्पष्ट नहीं होता। राजनीतिक प्रभाव: यद्यपि अनुच्छेद 59 निष्पक्षता सुनिश्चित करता है, लेकिन राष्ट्रपति के चयन में राजनीतिक गठजोड़ों का प्रभाव हो सकता है। वेतन और भत्ते: राष्ट्रपति के वेतन और विशेषाधिकारों पर कभी-कभी सार्वजनिक चर्चा होती है, विशेष रूप से आर्थिक असमानता के संदर्भ में। परंपरा: भारत में राष्ट्रपति आमतौर पर किसी भी लाभकारी या विधायी पद से पहले ही मुक्त हो जाते हैं, इसलिए इस प्रावधान से संबंधित विवाद दुर्लभ हैं।
7. न्यायिक व्याख्या: शिव किरपाल सिंह बनाम वी.वी. गिरि (1970): सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति के निर्वाचन और सेवा शर्तों को संवैधानिक ढांचे का हिस्सा माना। लाभ का पद: लाभ के पद से संबंधित मामले (जैसे, जया बच्चन केस) ने इस प्रावधान की व्याख्या को स्पष्ट किया, जो राष्ट्रपति की निष्पक्षता के लिए महत्वपूर्ण है। रामस्वामी बनाम भारत संघ (1977): न्यायालय ने राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका और उनकी स्वतंत्रता पर जोर दिया।
8. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू, जो 25 जुलाई 2022 को पद ग्रहण कीं, अनुच्छेद 59 की सभी शर्तों का पालन करती हैं। उन्होंने राष्ट्रपति बनने से पहले किसी भी लाभकारी या विधायी पद से त्यागपत्र दे दिया था। वेतन और भत्ते: 2025 में, राष्ट्रपति का मासिक वेतन लगभग 5 लाख रुपये है, साथ ही अन्य विशेषाधिकार जैसे राष्ट्रपति भवन में आवास, यात्रा सुविधाएँ, और चिकित्सा देखभाल। प्रासंगिकता: अनुच्छेद 59 यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति का पद निष्पक्ष और गरिमामय रहे, जो भारत के संवैधानिक ढांचे के लिए महत्वपूर्ण है। राजनीतिक परिदृश्य: राष्ट्रपति की नियुक्ति में राजनीतिक सहमति महत्वपूर्ण होती है, लेकिन अनुच्छेद 59 की शर्तें एक न्यूनतम मानक प्रदान करती हैं।
9. संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 52: राष्ट्रपति के पद की स्थापना।
अनुच्छेद 58: राष्ट्रपति की योग्यता।
अनुच्छेद 56: कार्यकाल और समाप्ति।
अनुच्छेद 61: महाभियोग की प्रक्रिया।
दूसरी अनुसूची: राष्ट्रपति के वेतन और भत्ते।
10. विशेष तथ्य: पहला राष्ट्रपति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1950-1962) ने अनुच्छेद 59 की सभी शर्तों का पालन किया और दो कार्यकाल तक सेवा की। महिला राष्ट्रपति: प्रतिभा पाटिल (2007-2012) और द्रौपदी मुर्मू (2022-वर्तमान) ने इन शर्तों को पूरा किया। राष्ट्रपति भवन: यह राष्ट्रपति का आधिकारिक आवास है, जो उनके विशेषाधिकारों का हिस्सा है। लाभ का पद: यह शर्त राष्ट्रपति की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
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