Article 57 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-06-28 14:19:56
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 57
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 57
अनुच्छेद 57 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय I (कार्यपालिका) में आता है। यह राष्ट्रपति के पुनर्निर्वाचन की पात्रता (Eligibility for Re-election) से संबंधित है। यह एक संक्षिप्त प्रावधान है, जो स्पष्ट करता है कि राष्ट्रपति का पद धारण करने वाला व्यक्ति पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र है। यह अनुच्छेद 56(2) के समान है, लेकिन इसे अलग से उल्लेख करके संवैधानिक ढांचे में स्पष्टता प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 57 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "कोई व्यक्ति जो राष्ट्रपति का पद धारण करता है, वह उस पद के लिए पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र होगा।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 57 स्पष्ट रूप से यह स्थापित करता है कि कोई व्यक्ति जो राष्ट्रपति का पद धारण कर रहा है या कर चुका है, वह पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र है। यह प्रावधान भारत के संवैधानिक ढांचे में लचीलापन प्रदान करता है, ताकि योग्य और अनुभवी व्यक्ति राष्ट्रपति के रूप में दोबारा चुने जा सकें। यह सुनिश्चित करता है कि संवैधानिक प्रमुख के रूप में राष्ट्रपति की निरंतरता और अनुभव का लाभ देश को मिल सके।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक बहस: संविधान सभा में राष्ट्रपति के कार्यकाल और पुनर्निर्वाचन पर चर्चा हुई थी। कुछ सदस्यों ने सुझाव दिया कि राष्ट्रपति का कार्यकाल एक बार तक सीमित होना चाहिए, ताकि सत्ता का केंद्रीकरण न हो। हालांकि, डॉ. बी.आर. आंबेडकर और अन्य ने तर्क दिया कि पुनर्निर्वाचन की अनुमति से योग्य व्यक्तियों को सेवा का अवसर मिलेगा, और संसदीय प्रणाली में राष्ट्रपति की नाममात्र भूमिका के कारण सत्ता दुरुपयोग की संभावना कम है।
प्रेरणा: यह प्रावधान अमेरिकी संविधान से प्रभावित है, जहाँ शुरू में राष्ट्रपति के पुनर्निर्वाचन की कोई सीमा नहीं थी (22वें संशोधन, 1951 तक, जिसने दो कार्यकाल की सीमा लागू की)। भारत में ऐसी कोई सीमा नहीं रखी गई। भारतीय संदर्भ: भारत में संसदीय प्रणाली के कारण, राष्ट्रपति की शक्तियाँ सीमित और मंत्रिपरिषद की सलाह पर निर्भर होती हैं (अनुच्छेद 74), इसलिए पुनर्निर्वाचन से सत्ता दुरुपयोग का जोखिम न्यूनतम है।
3. प्रमुख बिंदु: पुनर्निर्वाचन की पात्रता: कोई भी व्यक्ति जो वर्तमान में राष्ट्रपति है या पहले राष्ट्रपति रह चुका है, वह पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र है। इसमें कोई सीमा नहीं है कि कोई व्यक्ति कितनी बार राष्ट्रपति बन सकता है, बशर्ते वह अन्य संवैधानिक योग्यताएँ (अनुच्छेद 58) पूरी करता हो।
अन्य संवैधानिक उपबंधों के अधीन: पुनर्निर्वाचन की पात्रता संविधान के अन्य प्रावधानों पर निर्भर है, जैसे: अनुच्छेद 58: राष्ट्रपति की योग्यता (भारत का नागरिक, 35 वर्ष की आयु, लोकसभा के लिए पात्र, कोई लाभ का पद न धारण करना)। अनुच्छेद 54 और 55: निर्वाचक मंडल और निर्वाचन प्रक्र]
प्रक्रिया: निर्वाचन प्रक्रिया आनुपातिक प्रतिनिधित्व और एकल हस्तांतरणीय मत के आधार पर होती है। मतदाता अपनी पसंद के क्रम में उम्मीदवारों को वोट दे सकते हैं। यदि कोई उम्मीदवार पहली गिनती में आवश्यक कोटा प्राप्त नहीं करता, तो सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को हटाकर उनके वोटों की दूसरी प्राथमिकता को स्थानांतरित किया जाता है।
4. ऐतिहासिक उदाहरण: डॉ. राजेंद्र प्रसाद: भारत के पहले राष्ट्रपति (1950-1962) एकमात्र राष्ट्रपति हैं, जो दो कार्यकाल के लिए चुने गए। उन्होंने 1952 और 1957 में चुनाव जीता। इसके बाद, परंपरा बन गई कि राष्ट्रपति आमतौर पर एक ही कार्यकाल तक सीमित रहते हैं। आधुनिक परंपरा: हाल के दशकों में, पुनर्निर्वाचन दुर्लभ हो गया है, क्योंकि यह एक परंपरा बन गई है कि राष्ट्रपति एक कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
5. महत्व: लचीलापन: अनुच्छेद 57 यह सुनिश्चित करता है कि यदि कोई योग्य और लोकप्रिय राष्ट्रपति है, तो उसे दोबारा चुना जा सकता है। संवैधानिक संतुलन: यह प्रावधान राष्ट्रपति के कार्यकाल को सीमित करने के बजाय संवैधानिक जवाबदेही (महाभियोग, अनुच्छेद 61) पर निर्भर करता है।
लोकतांत्रिक सिद्धांत: पुनर्निर्वाचन की अनुमति लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बढ़ावा देती है, क्योंकि यह निर्वाचक मंडल की पसंद पर निर्भर करता है। निरंतरता: यह प्रावधान संवैधानिक नेतृत्व में अनुभव और निरंतरता को प्रोत्साहित करता है।
6. चुनौतियाँ और विवाद: पुनर्निर्वाचन की परंपरा: यद्यपि संवैधानिक रूप से पुनर्निर्वाचन की अनुमति है, लेकिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बाद यह परंपरा बन गई है कि राष्ट्रपति एक कार्यकाल तक सीमित रहें। इसका कारण राजनीतिक दलों की सहमति और संवैधानिक परंपराएँ हैं।
राजनीतिक प्रभाव: पुनर्निर्वाचन की संभावना राजनीतिक गठजोड़ों और दबावों से प्रभावित हो सकती है, जिससे यह विवादास्पद हो सकता है। सीमित शक्तियाँ: चूंकि राष्ट्रपति की शक्तियाँ नाममात्र हैं (अनुच्छेद 74), पुनर्निर्वाचन का प्रभाव सत्ता केंद्रीकरण की तुलना में प्रतीकात्मक अधिक है।
7. न्यायिक व्याख्या: अनुच्छेद 57 पर सीधे कोई प्रमुख न्यायिक मामले नहीं हैं, क्योंकि यह एक स्पष्ट प्रावधान है। हालांकि, शिव किरपाल सिंह बनाम वी.वी. गिरि (1970) जैसे मामलों में राष्ट्रपति के निर्वाचन और कार्यकाल से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की वैधता की पुष्टि की गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति की भूमिका संवैधानिक ढांचे के भीतर होनी चाहिए, जो पुनर्निर्वाचन की प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है।
8. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू, जो 25 जुलाई 2022 को पद ग्रहण कीं, वर्तमान में भारत की राष्ट्रपति हैं। उनका कार्यकाल 24 जुलाई 2027 तक चलेगा। पुनर्निर्वाचन की संभावना: वर्तमान में, पुनर्निर्वाचन दुर्लभ माना जाता है, क्योंकि एकल कार्यकाल की परंपरा मजबूत हो चुकी है। हालांकि, अनुच्छेद 57 के तहत द्रौपदी मुर्मू या कोई अन्य राष्ट्रपति पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र हैं, बशर्ते वे संवैधानिक योग्यताएँ पूरी करें।
राजनीतिक परिदृश्य: 2025 में, राष्ट्रपति का निर्वाचन और पुनर्निर्वाचन राजनीतिक गठजोड़ों पर निर्भर करता है, विशेष रूप से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी गठबंधनों के बीच।
9. संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 54: राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल की संरचना।
अनुच्छेद 55: राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया और मतों की गणना।
अनुच्छेद 56: राष्ट्रपति का कार्यकाल और समाप्ति।
अनुच्छेद 58: राष्ट्रपति की योग्यता।
अनुच्छेद 61: महाभियोग की प्रक्रिया।
10. विशेष तथ्य
डॉ. राजेंद्र प्रसाद: भारत के पहले और एकमात्र राष्ट्रपति, जो दो कार्यकाल (1950-1962) के लिए चुने गए।
परंपरा: डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बाद, कोई भी राष्ट्रपति दोबारा निर्वाचित नहीं हुआ, जिससे एकल कार्यकाल एक अनौपचारिक परंपरा बन गई है।
संवैधानिक लचीलापन: अनुच्छेद 57 की खुली नीति यह सुनिश्चित करती है कि कोई योग्य व्यक्ति, यदि निर्वाचक मंडल द्वारा चुना जाता है, तो बार-बार राष्ट्रपति बन सकता है।
Conclusion
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