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Article 56 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-28 13:04:09
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 56

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 56
अनुच्छेद 56 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय I (कार्यपालिका) में आता है। यह राष्ट्रपति के कार्यकाल (Term of Office of President) और उसकी समाप्ति की प्रक्रिया से संबंधित है। यह प्रावधान राष्ट्रपति के कार्यकाल की अवधि, पुनर्निर्वाचन की पात्रता, और पद छोड़ने या हटाने की प्रक्रिया को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 56 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"(1) राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा:
परंतु— (क) राष्ट्रपति, संसद के दोनों सदनों को संबोधित पत्र द्वारा अपना त्यागपत्र दे सकता है;
(ख) राष्ट्रपति को, इस संविधान के उपबंधों का उल्लंघन करने के लिए, संसद द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया के माध्यम से हटाया जा सकता है;
(ग) राष्ट्रपति, अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी, अपने उत्तराधिकारी के पद ग्रहण करने तक पद पर बना रहेगा।
(2) कोई व्यक्ति जो राष्ट्रपति का पद धारण करता है, वह पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र होगा।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 56 राष्ट्रपति के कार्यकाल की अवधि और समाप्ति की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है। यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति का पद निरंतर बना रहे, और कार्यकाल की समाप्ति या अन्य परिस्थितियों में संवैधानिक संकट उत्पन्न न हो। यह प्रावधान राष्ट्रपति को पुनर्निर्वाचन की पात्रता प्रदान करता है और त्यागपत्र या महाभियोग के माध्यम से पद छोड़ने की प्रक्रिया को परिभाषित करता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: संविधान सभा ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि राष्ट्रपति का कार्यकाल निश्चित हो, ताकि शासन में स्थिरता बनी रहे। साथ ही, महाभियोग जैसी प्रक्रिया को शामिल करके संवैधानिक जवाबदेही सुनिश्चित की गई। प्रेरणा: यह प्रावधान अमेरिकी संविधान (राष्ट्रपति का 4-वर्षीय कार्यकाल और महाभियोग) और आयरलैंड के संविधान (1937) से प्रभावित है, लेकिन भारत की संसदीय प्रणाली के अनुरूप बनाया गया। पुनर्निर्वाचन: पुनर्निर्वाचन की अनुमति देने का निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि योग्य और अनुभवी व्यक्ति फिर से राष्ट्रपति बन सकें, जैसा कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद के मामले में देखा गया।
3. अनुच्छेद 56 के प्रमुख उपखंड: अनुच्छेद 56 दो मुख्य भागों में विभाजित है
खंड (1): कार्यकाल और समाप्ति कार्यकाल की अवधि: राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, जो उनके पद ग्रहण की तारीख से शुरू होता है। उदाहरण: यदि कोई राष्ट्रपति 25 जुलाई 2022 को पद ग्रहण करता है, तो उनका कार्यकाल 24 जुलाई 2027 तक होगा।
परंतुक (Provisos)
(क) त्यागपत्र: राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) को संबोधित पत्र द्वारा अपना त्यागपत्र दे सकता है। यह पत्र लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरण: कोई राष्ट्रपति स्वास्थ्य, व्यक्तिगत, या अन्य कारणों से त्यागपत्र दे सकता है, हालांकि भारत में अब तक ऐसा कोई मामला नहीं हुआ।
(ख) महाभियोग: राष्ट्रपति को संविधान के उल्लंघन के लिए महाभियोग (Impeachment) के माध्यम से हटाया जा सकता है, जैसा कि अनुच्छेद 61 में वर्णित है। यह एक कठिन प्रक्रिया है, जिसमें संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। उदाहरण: भारत में अब तक किसी राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई।
(ग) उत्तराधिकारी तक पद पर बने रहना: यदि कार्यकाल समाप्त होने के बाद नया राष्ट्रपति पद ग्रहण नहीं करता, तो वर्तमान राष्ट्रपति तब तक पद पर बना रहता है, जब तक उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले। यह प्रावधान संवैधानिक निरंतरता सुनिश्चित करता है, ताकि राष्ट्रपति का पद कभी रिक्त न रहे। उदाहरण: यदि निर्वाचन में देरी होती है या कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो यह प्रावधान लागू होता है।
खंड (2): पुनर्निर्वाचन की पात्रता कोई भी व्यक्ति जो राष्ट्रपति का पद धारण करता है, पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र है। कोई सीमा नहीं है कि कितनी बार कोई व्यक्ति राष्ट्रपति बन सकता है। उदाहरण: डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1950-1962) भारत के एकमात्र राष्ट्रपति हैं, जो दो बार (1952 और 1957 में) निर्वाचित हुए। इसके बाद, परंपरा के रूप में, राष्ट्रपति आमतौर पर एक ही कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं।
4. महत्व
संवैधानिक निरंतरता: यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति का पद कभी रिक्त न रहे, जो शासन में स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
जवाबदेही: महाभियोग का प्रावधान राष्ट्रपति को संवैधानिक सीमाओं के भीतर कार्य करने के लिए जवाबदेह बनाता है।
लचीलापन: पुनर्निर्वाचन की अनुमति योग्य नेताओं को फिर से सेवा करने का अवसर देता है।
संघीय ढांचा: राष्ट्रपति, जो केंद्र और राज्यों की एकता का प्रतीक है, इस प्रावधान के माध्यम से अपनी भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाता है।
5. महाभियोग की प्रक्रिया (अनुच्छेद 61 के संदर्भ में)
प्रक्रिया: महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रस्ताव को कम से कम एक-चौथाई सदस्यों द्वारा समर्थित होना चाहिए। प्रस्ताव पर विचार से पहले 14 दिन का नोटिस देना होता है। प्रस्ताव को विशेष बहुमत (सदन की कुल सदस्यता का दो-तिहाई) से पारित करना होता है। दूसरा सदन प्रस्ताव की जाँच करता है और राष्ट्रपति को अपना पक्ष रखने का अवसर देता है।
यदि दूसरा सदन भी दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करता है, तो राष्ट्रपति को पद से हटा दिया जाता है। भारत में स्थिति: अब तक किसी भी राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई, जो इस प्रावधान की दुर्लभता को दर्शाता है।
6. चुनौतियाँ और विवाद
त्यागपत्र की दुर्लभता: भारत में अब तक किसी राष्ट्रपति ने त्यागपत्र नहीं दिया, लेकिन यह प्रावधान संकटकालीन परिस्थितियों के लिए मौजूद है।
महाभियोग की जटिलता: महाभियोग प्रक्रिया बहुत जटिल और कठिन है, जिससे यह केवल गंभीर संवैधानिक उल्लंघन के मामलों में ही लागू हो सकता है।
पुनर्निर्वाचन की परंपरा: यद्यपि पुनर्निर्वाचन की अनुमति है, लेकिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बाद यह परंपरा बन गई है कि राष्ट्रपति एक ही कार्यकाल तक सीमित रहें।
संवैधानिक संकट: यदि कोई राष्ट्रपति कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी उत्तराधिकारी के अभाव में पद पर बना रहे, तो यह संवैधानिक जटिलताएँ पैदा कर सकता है।
7. न्यायिक व्याख्या
अनुच्छेद 56 पर सीधे बहुत कम मामले आए हैं, क्योंकि यह कार्यकाल से संबंधित एक स्पष्ट प्रावधान है।
शिव किरपाल सिंह बनाम वी.वी. गिरि (1970): 1969 के राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित एक मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति के निर्वाचन और कार्यकाल की संवैधानिक प्रकृति पर प्रकाश डाला।
रामस्वामी बनाम भारत संघ (1977): न्यायालय ने राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका और जवाबदेही पर टिप्पणी की, जिसमें महाभियोग की प्रक्रिया को संवैधानिक संतुलन का हिस्सा माना गया।
8. वर्तमान संदर्भ (2025)
वर्तमान राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू, जो 25 जुलाई 2022 को पद ग्रहण कीं, वर्तमान में भारत की राष्ट्रपति हैं। उनका कार्यकाल 24 जुलाई 2027 तक चलेगा, जब तक कि कोई असाधारण परिस्थिति (जैसे, त्यागपत्र या महाभियोग) न हो।
प्रासंगिकता: अनुच्छेद 56 यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति का कार्यकाल निश्चित और संवैधानिक ढांचे के भीतर हो, जो राष्ट्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
पुनर्निर्वाचन: वर्तमान में, पुनर्निर्वाचन की संभावना दुर्लभ मानी जाती है, क्योंकि एकल कार्यकाल की परंपरा मजबूत हो चुकी है।
महाभियोग का अभाव: भारत में अब तक किसी राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई, जो इस प्रावधान की प्रभावशीलता और संवैधानिक अनुशासन को दर्शाता है।
9. संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 52: राष्ट्रपति के पद की स्थापना।
अनुच्छेद 53: संघ की कार्यकारी शक्ति।
अनुच्छेद 54: निर्वाचक मंडल की संरचना।
अनुच्छेद 55: निर्वाचन की प्रक्रिया और मतों की गणना।
अनुच्छेद 61: महाभियोग की प्रक्रिया।
अनुच्छेद 62: रिक्ति की पूर्ति के लिए निर्वाचन।
10. विशेष तथ्य
पहला राष्ट्रपति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1950-1962) भारत के एकमात्र राष्ट्रपति हैं, जो दो कार्यकाल के लिए चुने गए।
वर्तमान राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू, भारत की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति, जिनका कार्यकाल 2022 से चल रहा है।
महाभियोग का अभाव: भारत में अब तक किसी राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई, जो संवैधानिक जवाबदेही और अनुशासन को दर्शाता है।
निरंतरता: अनुच्छेद 56(1)(ग) यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रपति का पद कभी रिक्त न रहे, जो संवैधानिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
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