Article 53 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-06-28 12:41:41
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 53
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 53
अनुच्छेद 53 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय I (कार्यपालिका) में आता है। यह भारत के राष्ट्रपति के माध्यम से संघ की कार्यकारी शक्ति (Executive Power of the Union) को परिभाषित करता है। यह प्रावधान भारत की संसदीय प्रणाली में कार्यकारी शक्ति की प्रकृति और प्रयोग के तरीके को स्पष्ट करता है।
अनुच्छेद 53 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"(1) संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से, इस संविधान के अनुसार करेगा।
(2) खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, उसमें निहित कुछ भी इस संविधान के उपबंधों के अधीन संसद को संघ के लिए या उसके किसी भाग के लिए कार्यकारी शक्ति के प्रयोग के लिए विधि द्वारा उपबंध करने की शक्ति प्रदान करने से निषेध नहीं करेगा।
(3) इस अनुच्छेद में निहित कुछ भी यह समझा नहीं जाएगा कि वह उन कार्यों को, जो इस संविधान के किसी उपबंध के अधीन राष्ट्रपति द्वारा अपने विवेक से किए जाने हैं, मंत्रिपरिषद की सलाह पर करने के लिए बाध्य करता है।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 53 संघ की कार्यकारी शक्ति को औपचारिक रूप से राष्ट्रपति में निहित करता है, जो भारत का संवैधानिक प्रमुख होता है। यह भारत की संसदीय प्रणाली में कार्यकारी शक्ति के प्रयोग की रूपरेखा प्रदान करता है, जहाँ राष्ट्रपति नाममात्र (nominal) प्रमुख होता है, और वास्तविक शक्तियाँ मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) के पास होती हैं। यह प्रावधान संवैधानिक शासन में कार्यकारी शक्ति की निरंतरता और वैधता सुनिश्चित करता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: औपनिवेशिक संदर्भ: ब्रिटिश शासन के दौरान, कार्यकारी शक्ति गवर्नर-जनरल में निहित थी, जो ब्रिटिश क्राउन का प्रतिनिधि था। स्वतंत्रता के बाद, संविधान निर्माताओं ने एक स्वतंत्र गणराज्य के लिए कार्यकारी शक्ति को एक संवैधानिक ढांचे में स्थापित करने की आवश्यकता महसूस की। संवैधानिक बहस: संविधान सभा में यह तय किया गया कि भारत एक संसदीय प्रणाली अपनाएगा, जहाँ कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी, लेकिन इसका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर होगा (अनुच्छेद 74)। यह ब्रिटिश मॉडल से प्रेरित था, जहाँ सम्राट नाममात्र प्रमुख होता है। प्रेरणा: अनुच्छेद 53 का ढांचा ब्रिटिश संवैधानिक परंपराओं और आयरलैंड के संविधान (1937) से प्रभावित है।
3. अनुच्छेद 53 के प्रमुख उपखंड: अनुच्छेद 53 में तीन खंड हैं, जिनका विस्तार निम्नलिखित है
खंड (1): संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित यह खंड स्पष्ट करता है कि संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित है। कार्यकारी शक्ति में सरकार के दैनिक प्रशासन, नीति निर्माण, और कानूनों का कार्यान्वयन शामिल है। राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग स्वयं या अधीनस्थ अधिकारियों (जैसे, मंत्रियों, नौकरशाहों) के माध्यम से करता है। यह प्रयोग संविधान के अनुसार होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि यह संवैधानिक सीमाओं और प्रक्रियाओं के अधीन है। वास्तविकता: अनुच्छेद 74 के तहत, राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होती है, जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री करता है।
खंड (2): संसद द्वारा कार्यकारी शक्ति का प्रत्यायोजन यह खंड संसद को अधिकार देता है कि वह कानून बनाकर कार्यकारी शक्ति के कुछ कार्यों को राष्ट्रपति के अलावा अन्य प्राधिकारियों (जैसे, मंत्रालय, आयोग) को सौंप सकती है।
यह प्रावधान प्रशासनिक लचीलापन प्रदान करता है, ताकि कार्यकारी शक्ति का प्रभावी ढंग से प्रबंधन हो सके।
उदाहरण: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को मौद्रिक नीति के लिए कुछ कार्यकारी शक्तियाँ दी गई हैं। विभिन्न आयोगों (जैसे, UPSC, EC) को विशिष्ट कार्य सौंपे गए हैं।
खंड (3): राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियाँ यह खंड स्पष्ट करता है कि कुछ मामलों में, जहाँ संविधान राष्ट्रपति को विवेकाधीन शक्ति (discretionary power) देता है, उसे मंत्रिपरिषद की सलाह मानने की बाध्यता नहीं है। हालांकि, भारत के संविधान में ऐसी विवेकाधीन शक्तियाँ बहुत सीमित हैं।
उदाहरण: जब कोई दल संसद में स्पष्ट बहुमत न प्राप्त करे, तो राष्ट्रपति अपने विवेक से प्रधानमंत्री की नियुक्ति कर सकता है। कुछ विधेयकों को पुनर्विचार के लिए लौटाना (वेटो शक्ति)। अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश को अस्वीकार करना।
4. संघ की कार्यकारी शक्ति का दायरा
कार्यकारी शक्ति में शामिल हैं: कानूनों का कार्यान्वयन और प्रशासन। नीति निर्माण और योजनाओं का क्रियान्वयन। रक्षा, विदेश नीति, और वित्तीय प्रबंधन। नियुक्तियाँ (जैसे, न्यायाधीश, राज्यपाल, आयोगों के अध्यक्ष)। संधियों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों का समापन।
यह शक्ति संविधान की सीमाओं और कानून के शासन के अधीन है। सीमाएँ: कार्यकारी शक्ति विधायिका (संसद) और न्यायपालिका की शक्तियों से संतुलित होती है। यह मौलिक अधिकारों (भाग III) का उल्लंघन नहीं कर सकती। मंत्रिपरिषद की सलाह (अनुच्छेद 74) इसे बाध्य करती है।
5. राष्ट्रपति की भूमिका
नाममात्र प्रमुख: अनुच्छेद 53 के तहत, राष्ट्रपति कार्यकारी शक्ति का प्रतीक है, लेकिन इसका वास्तविक प्रयोग मंत्रिपरिषद करती है।
संवैधानिक संरक्षक: राष्ट्रपति संविधान का पालन सुनिश्चित करता है और संकटकाल में संवैधानिक संतुलन बनाए रखता है।
प्रतिनिधित्व: वह भारत का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रतिनिधित्व करता है।
विवेकाधीन शक्तियाँ: सीमित परिस्थितियों में, जैसे:
सरकार गठन में असमंजस (हंग पार्लियामेंट)। विधेयकों पर पुनर्विचार या पॉकेट वेटो। अनुच्छेद 356 के तहत सिफारिशों की समीक्षा।
6. महत्व
संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 53 कार्यकारी शक्ति की वैधता और संवैधानिक आधार प्रदान करता है।
संसदीय प्रणाली: यह भारत की संसदीय प्रणाली को मजबूत करता है, जहाँ निर्वाचित प्रतिनिधियों (मंत्रिपरिषद) के माध्यम से शासन होता है।
शक्ति संतुलन: यह कार्यकारी, विधायी, और न्यायिक शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखता है।
राष्ट्रीय एकता: राष्ट्रपति के माध्यम से कार्यकारी शक्ति देश की एकता का प्रतीक है।
7. चुनौतियाँ और विवाद
विवेकाधीन शक्तियों का दुरुपयोग: कुछ मामलों में, राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियों पर सवाल उठे, जैसे 1975 के आपातकाल के दौरान।
रबर स्टैंप की आलोचना: कुछ आलोचकों का मानना है कि राष्ट्रपति केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है, जिससे उसकी स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
42वाँ और 44वाँ संशोधन
42वाँ संशोधन (1976): इसने अनुच्छेद 74 में संशोधन कर राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए स्पष्ट रूप से बाध्य किया।
44वाँ संशोधन (1978): इसने कुछ हद तक विवेकाधीन शक्तियों को बहाल किया, जैसे सलाह पर पुनर्विचार के लिए कहने का अधिकार।
8. न्यायिक व्याख्या
रामस्वामी बनाम भारत संघ (1977): सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति को सामान्य रूप से मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होती है, सिवाय विवेकाधीन मामलों के।
संसद बनाम भारत संघ (1977): न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति की शक्तियाँ संवैधानिक सीमाओं के अधीन हैं।
बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन के दुरुपयोग पर न्यायालय ने राष्ट्रपति की भूमिका की समीक्षा की, जिससे अनुच्छेद 53 की व्याख्या को बल मिला।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष (2016): न्यायालय ने कार्यकारी शक्ति की संवैधानिक प्रकृति पर चर्चा की।
9. वर्तमान संदर्भ (2025)
वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (2022 से) हैं, जिन्होंने संवैधानिक प्रमुख के रूप में अपनी भूमिका को राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समावेशन के प्रतीक के रूप में निभाया है।
विवाद: हाल के वर्षों में, राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) के उपयोग, विधेयकों पर देरी, और केंद्र-राज्य संबंधों में राष्ट्रपति की भूमिका पर चर्चा होती रही है।
उदाहरण: राष्ट्रपति ने कुछ विवादास्पद विधेयकों (जैसे, कृषि कानून, 2020) पर सलाह और समीक्षा की प्रक्रिया को अपनाया, जो अनुच्छेद 53 की भावना को दर्शाता है।
वैश्विक भूमिका: राष्ट्रपति विदेश नीति में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे G20 शिखर सम्मेलनों में औपचारिक उपस्थिति।
10. संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 74: मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति का कार्य।
अनुच्छेद 75: मंत्रिपरिषद की नियुक्ति और उत्तरदायित्व।
अनुच्छेद 123: अध्यादेश जारी करने की शक्ति।
अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन।
Conclusion
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