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Article 52of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-28 12:36:27
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 52

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 52
अनुच्छेद 52 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत आता है, जो अध्याय I (कार्यपालिका) से संबंधित है। यह प्रावधान भारत के राष्ट्रपति के पद की स्थापना करता है। यह संविधान का एक संक्षिप्त लेकिन मूलभूत प्रावधान है, जो भारत के शासन-प्रणाली में राष्ट्रपति की स्थिति को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 52 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"भारत का राष्ट्रपति होगा।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 52 भारत में राष्ट्रपति के पद को औपचारिक रूप से स्थापित करता है, जो भारत का संवैधानिक प्रमुख (Head of State) होता है। यह प्रावधान भारत की संसदीय प्रणाली में राष्ट्रपति की भूमिका को आधार प्रदान करता है, जहाँ राष्ट्रपति एक नाममात्र (nominal) कार्यकारी प्रमुख होता है, जबकि वास्तविक कार्यकारी शक्तियाँ प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होती हैं। यह संवैधानिक ढांचे में निरंतरता और स्थिरता सुनिश्चित करता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: औपनिवेशिक संदर्भ: ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में कोई संवैधानिक प्रमुख नहीं था; गवर्नर-जनरल ब्रिटिश क्राउन का प्रतिनिधि था। स्वतंत्रता के बाद, संविधान निर्माताओं ने एक स्वतंत्र और संप्रभु गणराज्य के लिए एक संवैधानिक प्रमुख की आवश्यकता महसूस की। संवैधानिक बहस: संविधान सभा में राष्ट्रपति की भूमिका पर व्यापक चर्चा हुई। कुछ सदस्य (जैसे, डॉ. बी.आर. आंबेडकर) चाहते थे कि राष्ट्रपति की शक्तियाँ सीमित हों, ताकि भारत की संसदीय प्रणाली ब्रिटिश मॉडल (जहाँ सम्राट नाममात्र प्रमुख होता है) के अनुरूप हो।
प्रेरणा: अनुच्छेद 52 और राष्ट्रपति की भूमिका ब्रिटिश सम्राट और आयरलैंड के संविधान (1922) से प्रेरित थी, जहाँ राष्ट्रपति एक संवैधानिक प्रमुख होता है।
3. राष्ट्रपति की भूमिका और स्थिति: संवैधानिक प्रमुख: अनुच्छेद 52 के तहत स्थापित राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक और संवैधानिक प्रमुख होता है। वह देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है। नाममात्र शक्तियाँ: अनुच्छेद 53 के अनुसार, संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है, लेकिन वह इसका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है (अनुच्छेद 74)। प्रतिनिधित्व: राष्ट्रपति भारत का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रतिनिधित्व करता है और संधियों, राजदूतों की नियुक्ति आदि में औपचारिक भूमिका निभाता है।
4. राष्ट्रपति का निर्वाचन और योग्यता: अनुच्छेद 52 स्वयं राष्ट्रपति के निर्वाचन या योग्यता का उल्लेख नहीं करता, लेकिन ये विवरण अन्य प्रावधानों में हैं
निर्वाचन (अनुच्छेद 54): राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल (Electoral College) द्वारा होता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) और राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।
योग्यता (अनुच्छेद 58): भारत का नागरिक होना। 35 वर्ष की आयु पूरी करना। लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखना। कोई लाभ का पद धारण न करना।
कार्यकाल (अनुच्छेद 56): राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन वह पुनर्निर्वाचन के लिए पात्र है।
महाभियोग (अनुच्छेद 61): राष्ट्रपति को संविधान के उल्लंघन के लिए महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है।
5. राष्ट्रपति की शक्तियाँ और कर्तव्य
अनुच्छेद 52 राष्ट्रपति की शक्तियों का उल्लेख नहीं करता, लेकिन ये अन्य अनुच्छेदों (53, 74, 75, आदि) में वर्णित हैं। ये शक्तियाँ तीन श्रेणियों में बाँटी जा सकती हैं:
कार्यकारी शक्तियाँ
प्रधानमंत्री, अन्य मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक आदि की नियुक्ति। राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति। अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों की पुष्टि।
विधायी शक्तियाँ: संसद को बुलाने, सत्रावसान करने, और विघटित करने की शक्ति। विधेयकों पर हस्ताक्षर करना या उन्हें पुनर्विचार के लिए लौटाना (वेटो शक्ति, विशेष रूप से गैर-वित्त विधेयकों पर)। अध्यादेश जारी करना (अनुच्छेद 123) जब संसद सत्र में न हो।
आपातकालीन शक्तियाँ: राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 356), वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360), और राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता (अनुच्छेद 356) की घोषणा।
विवेकाधीन शक्तियाँ: कुछ परिस्थितियों में, जैसे कोई स्पष्ट बहुमत न होने पर प्रधानमंत्री की नियुक्ति, विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाना, या राष्ट्रपति शासन की सिफारिश को अस्वीकार करना।
6. नाममात्र बनाम वास्तविक शक्ति
भारत में संसदीय प्रणाली के तहत, राष्ट्रपति की अधिकांश शक्तियाँ मंत्रिपरिषद की सलाह पर प्रयोग की जाती हैं (अनुच्छेद 74)।
हालांकि, कुछ परिस्थितियों में राष्ट्रपति के पास विवेकाधीन शक्तियाँ होती हैं, जैसे: जब कोई दल संसद में स्पष्ट बहुमत न प्राप्त करे। विधेयक को रोकना या पुनर्विचार के लिए लौटाना (पॉकेट वेटो या सस्पेंसिव वेटो)। आपातकाल घोषणा से पहले स्थिति का आकलन।
उदाहरण: राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह (1980 के दशक) ने कुछ विधेयकों पर पुनर्विचार के लिए सवाल उठाए। राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने 2006 में कार्यालय लाभ विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाया।
7. महत्व
संवैधानिक संतुलन: राष्ट्रपति संविधान का संरक्षक होता है और कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका के बीच संतुलन बनाए रखता है।
राष्ट्रीय एकता का प्रतीक: वह विभिन्न क्षेत्रों, धर्मों, और समुदायों के बीच एकता का प्रतीक है।
आपातकालीन भूमिका: संकट के समय (जैसे, संवैधानिक संकट) राष्ट्रपति की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
नैतिक प्राधिकार: राष्ट्रपति अपने संदेशों और भाषणों के माध्यम से देश को नैतिक दिशा प्रदान करता है।
8. चुनौतियाँ और विवाद
विवेकाधीन शक्तियों का दुरुपयोग: कुछ मामलों में राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियों पर विवाद हुआ, जैसे 1970-80 के दशक में आपातकाल के दौरान।
रबर स्टैंप की धारणा: कुछ आलोचकों का मानना है कि राष्ट्रपति केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है, जिससे उसकी भूमिका औपचारिक हो जाती है।
राजनीतिक प्रभाव: राष्ट्रपति की नियुक्ति और कार्यकाल पर कभी-कभी राजनीतिक प्रभाव की आलोचना होती है।
9. न्यायिक व्याख्या
रामस्वामी बनाम भारत संघ (1977): सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होती है, सिवाय कुछ असाधारण परिस्थितियों के।
42वाँ और 44वाँ संशोधन: 42वें संशोधन (1976) ने राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य किया, लेकिन 44वें संशोधन (1978) ने कुछ हद तक विवेकाधीन शक्तियों को बहाल किया।
बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) के दुरुपयोग पर न्यायालय ने राष्ट्रपति की भूमिका की समीक्षा की।
10. वर्तमान संदर्भ (2025)
वर्तमान राष्ट्रपति (2025 तक) द्रौपदी मुर्मू हैं, जो 2022 में भारत की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति बनीं। उनकी भूमिका राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण रही है।
विवाद: हाल के वर्षों में, राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) के उपयोग और विधेयकों पर हस्ताक्षर में देरी जैसे मुद्दों पर चर्चा होती रही है।
सांकेतिक भूमिका: राष्ट्रपति मुर्मू ने शिक्षा, आदिवासी कल्याण, और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर अपने संदेशों के माध्यम से नागरिकों को प्रेरित किया है।
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