Article 51 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-06-28 12:21:33
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51
अनुच्छेद 51 भारतीय संविधान के भाग IV (राज्य के नीति निदेशक तत्व) के अंतर्गत आता है। यह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने से संबंधित है और भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांतों को रेखांकित करता है। यह राज्य को अंतरराष्ट्रीय संबंधों में कुछ आदर्शों और लक्ष्यों को अपनाने का निर्देश देता है। जैसे अन्य नीति निदेशक तत्व, यह भी न्यायिक रूप से प्रवर्तनीय नहीं है, लेकिन शासन के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 51 का पाठ
संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "राज्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा; राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को प्रोत्साहन देगा; अंतरराष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति सम्मान को प्रोत्साहन देगा और सभी राष्ट्रों के बीच मध्यस्थता द्वारा विवादों के निपटारे को प्रोत्साहन देगा।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 51 भारत की विदेश नीति के लिए एक संवैधानिक ढांचा प्रदान करता है। यह भारत को एक जिम्मेदार वैश्विक नागरिक के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है, जो विश्व शांति, सहयोग और न्याय पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में योगदान देता है। यह प्रावधान भारत के अहिंसा, सह-अस्तित्व, और समानता के सिद्धांतों को दर्शाता है, जो महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं के दर्शन से प्रेरित हैं।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: औपनिवेशिक अनुभव: भारत ने औपनिवेशिक शासन के दौरान साम्राज्यवादी नीतियों का दमन देखा था। स्वतंत्रता के बाद, संविधान निर्माताओं ने एक ऐसी विदेश नीति की कल्पना की जो शोषण और युद्ध के खिलाफ हो।
शीत युद्ध का दौर: 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय, विश्व दो गुटों (अमेरिका और सोवियत संघ) में बँट रहा था। भारत ने गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) की नीति अपनाई, जो अनुच्छेद 51 की भावना के अनुरूप थी।
संयुक्त राष्ट्र: भारत संयुक्त राष्ट्र (UN) का संस्थापक सदस्य था और इसकी चार्टर की भावना (विश्व शांति और सहयोग) को अनुच्छेद 51 में शामिल किया गया।
पंचशील सिद्धांत: 1954 में भारत और चीन के बीच पंचशील समझौते के सिद्धांत (जैसे, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व) अनुच्छेद 51 के लक्ष्यों को प्रतिबिंबित करते हैं।
3. प्रावधान के चार मुख्य भाग
अनुच्छेद 51 में चार उपखंड हैं, जिनका विस्तार निम्नलिखित है
(a) अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना
भारत को विश्व शांति बनाए रखने और युद्ध या संघर्ष को रोकने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
उदाहरण: भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों (UN Peacekeeping Missions) में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जैसे कांगो, सूडान और लेबनान में। कोरियाई युद्ध (1950-53) के दौरान भारत ने तटस्थ भूमिका निभाई और युद्धविराम में मध्यस्थता की।
वर्तमान संदर्भ: भारत वैश्विक आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों पर शांति और स्थिरता के लिए काम करता है।
(b) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंध बनाए रखना: भारत को सभी देशों, चाहे वे छोटे हों या बड़े, के साथ समानता और सम्मान पर आधारित संबंध स्थापित करने चाहिए।
उदाहरण: गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM): भारत ने 1961 में NAM की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई, जो विकासशील देशों के हितों और संप्रभुता की रक्षा करता है। भारत की "पड़ोसी पहले" नीति (Neighbourhood First Policy) और "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" जैसे दृष्टिकोण इस सिद्धांत को दर्शाते हैं।
चुनौतियाँ: भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन जैसे क्षेत्रीय तनाव इस लक्ष्य को जटिल बनाते हैं।
(c) अंतरराष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति सम्मान को प्रोत्साहन देना: भारत को अंतरराष्ट्रीय कानून (जैसे, संयुक्त राष्ट्र चार्टर, जेनेवा कन्वेंशन) और संधियों का पालन करना चाहिए।
उदाहरण: भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO), पेरिस जलवायु समझौता (2015), और परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से संबंधित मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय नियमों का सम्मान किया है, हालांकि NPT पर हस्ताक्षर नहीं किए। भारत ने 1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान युद्धबंदियों के लिए जेनेवा कन्वेंशन का पालन किया।
वर्तमान संदर्भ: भारत ने समुद्री कानून (UNCLOS) के तहत दक्षिण चीन सागर में नौवहन की स्वतंत्रता का समर्थन किया है।
(d) मध्यस्थता द्वारा अंतरराष्ट्रीय विवादों के निपटारे को प्रोत्साहन देना: भारत को युद्ध के बजाय बातचीत, मध्यस्थता, और शांतिपूर्ण साधनों से विवादों को सुलझाने की वकालत करनी चाहिए। उदाहरण: भारत ने 1947-48 के कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर मध्यस्थता का समर्थन किया। 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद ताशकंद समझौता (1966) मध्यस्थता का उदाहरण है।
वर्तमान संदर्भ: भारत ने कुलभूषण जाधव मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) का रुख किया, जो मध्यस्थता के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाता है।
4. भारत की विदेश नीति पर प्रभाव
गुटनिरपेक्षता: अनुच्छेद 51 ने भारत को शीत युद्ध के दौरान किसी भी गुट में शामिल होने से बचने और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने की प्रेरणा दी।
पंचशील: 1954 में भारत और चीन के बीच पंचशील के पाँच सिद्धांत (पारस्परिक सम्मान, अहिंसा, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, आदि) अनुच्छेद 51 की भावना को दर्शाते हैं।
वैश्विक नेतृत्व: आज भारत G20, BRICS, SCO, और QUAD जैसे मंचों पर सक्रिय है, जो वैश्विक शांति और सहयोग को बढ़ावा देता है।
वसुधैव कुटुंबकम: भारत का "विश्व एक परिवार है" का दर्शन अनुच्छेद 51 के लक्ष्यों के अनुरूप है।
5. महत्व
वैश्विक छवि: अनुच्छेद 51 ने भारत को शांति, सहयोग, और अहिंसा के समर्थक के रूप में स्थापित किया।
संवैधानिक आदर्श: यह भारत के संवैधानिक मूल्यों (न्याय, समानता, स्वतंत्रता) को अंतरराष्ट्रीय मंच पर विस्तारित करता है।
क्षेत्रीय स्थिरता: दक्षिण एशिया में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका इस अनुच्छेद की भावना से प्रेरित है।
नैतिक विदेश नीति: यह भारत को नैतिक और सिद्धांत-आधारित विदेश नीति अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
6. चुनौतियाँ
क्षेत्रीय तनाव: पाकिस्तान और चीन के साथ सीमा विवाद और आतंकवाद जैसे मुद्दे शांतिपूर्ण समाधान को जटिल बनाते हैं।
वैश्विक ध्रुवीकरण: अमेरिका-चीन जैसे महाशक्ति संघर्ष में भारत को संतुलन बनाए रखना पड़ता है।
आर्थिक हित: व्यापार और ऊर्जा जैसे आर्थिक हितों के कारण कभी-कभी नैतिक सिद्धांतों से समझौता करना पड़ता है।
सीमित संसाधन: वैश्विक शांति मिशनों में योगदान के लिए भारत के पास संसाधनों की कमी एक बाधा है।
7. न्यायिक व्याख्या
अनुच्छेद 51 पर सीधे बहुत कम मामले आए हैं, क्योंकि यह नीति निदेशक तत्व है। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ मामलों में विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय संधियों के संदर्भ में अनुच्छेद 51 का उल्लेख किया है।
उदाहरण: विशाखा बनाम राजस्थान (1997): न्यायालय ने अंतरराष्ट्रीय संधियों (जैसे CEDAW) को लागू करने में अनुच्छेद 51 का हवाला दिया। कुलभूषण जाधव मामले में भारत ने ICJ में अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान दिखाया।
8. वर्तमान संदर्भ (2025)
वैश्विक मंच: भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता की माँग कर रहा है, जो अनुच्छेद 51 के तहत वैश्विक शांति में योगदान की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है।
जलवायु कूटनीति: भारत ने पेरिस समझौते और सौर गठबंधन (ISA) जैसे पहलों के माध्यम से वैश्विक सहयोग को बढ़ावा दिया।
रीय भूमिका: भारत अफगानिस्तान, मालदीव, और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में स्थिरता और विकास के लिए काम कर रहा है।
आतंकवाद विरोध: भारत वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ UN में व्यापक आतंकवाद विरोधी संधि (CCIT) का समर्थन करता है।
Conclusion
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