Article 48A of the Indian Constitution
jp Singh
2025-06-28 12:06:33
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 48A
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 48A
अनुच्छेद 48A का पाठ
अनुच्छेद 48A का शीर्षक है "पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन"। यह संविधान के भाग IV (नीति निदेशक तत्व) में शामिल है और 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़ा गया।
"राज्य पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन का प्रयास करेगा और देश के वन और वन्य जीवों की रक्षा करेगा।"
उद्देश्य
पर्यावरण संरक्षण: अनुच्छेद 48A राज्य को पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार के लिए कदम उठाने का निर्देश देता है, जिसमें वायु, जल, और मिट्टी की गुणवत्ता शामिल है।
वन और वन्य जीव संरक्षण: यह विशेष रूप से वनों और वन्य जीवों की रक्षा पर जोर देता है, जो जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन के लिए आवश्यक हैं।
स्थायी विकास: यह पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से स्थायी विकास को बढ़ावा देता है, ताकि वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधन सुरक्षित रहें।
सार्वजनिक हित: यह पर्यावरणीय स्थिरता को सार्वजनिक कल्याण का हिस्सा मानता है, जो स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता से जुड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: यह भारत को स्टॉकहोम सम्मेलन (1972) जैसे अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण समझौतों के अनुरूप बनाता है।
ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि
औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन में वनों का बड़े पैमाने पर दोहन हुआ, जिससे जैव विविधता और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा। वन्य जीवों की भी उपेक्षा की गई।
स्वतंत्रता के बाद: स्वतंत्रता के बाद औद्योगीकरण और शहरीकरण ने पर्यावरणीय समस्याओं, जैसे प्रदूषण और वन कटाई, को बढ़ाया। 1970 के दशक में पर्यावरण संरक्षण वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख मुद्दा बन गया।
42वां संशोधन (1976): स्टॉकहोम सम्मेलन (1972) के बाद, भारत ने पर्यावरण संरक्षण को संवैधानिक महत्व देने के लिए अनुच्छेद 48A और अनुच्छेद 51A(g) (मौलिक कर्तव्य) जोड़े। यह पर्यावरणीय जागरूकता का परिणाम था।
संविधान सभा: मूल संविधान में पर्यावरण संरक्षण का स्पष्ट उल्लेख नहीं था, लेकिन नीति निदेशक तत्वों (जैसे अनुच्छेद 47, जन स्वास्थ्य) ने अप्रत्यक्ष रूप से इसे समर्थन दिया। 42वें संशोधन ने इसे स्पष्ट रूप से शामिल किया।
सामाजिक संदर्भ: भारत की जैव विविधता, वन, और नदियाँ देश की सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान का हिस्सा हैं। पर्यावरणीय क्षरण ने ग्रामीण और आदिवासी समुदायों को सबसे अधिक प्रभावित किया, जिससे संरक्षण की आवश्यकता बढ़ी।
प्रमुख प्रावधान
पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन:
राज्य को प्रदूषण नियंत्रण, जल संरक्षण, और मिट्टी संरक्षण जैसे उपाय करने का निर्देश।
इसमें स्वच्छ ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन, और पर्यावरणीय जागरूकता शामिल है।
वन संरक्षण
वनों की कटाई को रोकने और वन क्षेत्र को बढ़ाने के लिए उपाय। इसमें वन रोपण, संरक्षित क्षेत्र, और वन प्रबंधन शामिल हैं।
वन्य जीव संरक्षण:
लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा और वन्य जीव आवासों का संरक्षण। इसमें राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, और वन्य जीव गलियारे शामिल हैं।
गैर-बाध्यकारी प्रकृति:
नीति निदेशक तत्व के रूप में, अनुच्छेद 48A कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, लेकिन यह राज्य नीतियों को मार्गदर्शन प्रदान करता है और न्यायिक व्याख्या में उपयोग होता है।
लागू होने का दायरा
यह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होता है। यह केंद्र और राज्य सरकारों दोनों की जिम्मेदारी है।
संबंधित कानून
अनुच्छेद 48A के सिद्धांतों को लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई कानून और नीतियाँ बनाई हैं:
वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980: वन कटाई को नियंत्रित करने और वन भूमि के गैर-वन उपयोग को रोकने के लिए।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972: वन्य जीवों और उनके आवासों की रक्षा के लिए।
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यापक कानून।
वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981: वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए।
जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974: जल प्रदूषण को रोकने के लिए।
राष्ट्रीय वन नीति, 1988: वन क्षेत्र को 33% तक बढ़ाने और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए।
राष्ट्रीय जैव विविधता अधिनियम, 2002: जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए।
स्वच्छ भारत मिशन, 2014: अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छता के लिए।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, 2014: गंगा नदी की सफाई और संरक्षण के लिए।
संबंधित मुकदमे
एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (1987) (गंगा प्रदूषण मामला)
पृष्ठभूमि: याचिकाकर्ता ने गंगा नदी में औद्योगिक और घरेलू प्रदूषण को रोकने के लिए जनहित याचिका दायर की। यह अनुच्छेद 48A और 51A(g) के तहत पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा था।
मुद्दा: क्या गंगा नदी का प्रदूषण अनुच्छेद 48A और 21 का उल्लंघन करता है?
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि स्वच्छ पर्यावरण अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का हिस्सा है, और अनुच्छेद 48A राज्य को पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठाने का निर्देश देता है।
कोर्ट ने प्रदूषणकारी उद्योगों को बंद करने और गंगा सफाई के लिए उपाय करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने "प्रदूषक भुगतान" सिद्धांत को लागू किया।
महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 48A को अनुच्छेद 21 के साथ जोड़ा और पर्यावरण संरक्षण को मौलिक अधिकार का हिस्सा बनाया।
वेल्लोर सिटिजन्स वेलफेयर फोरम बनाम भारत संघ (1996)
पृष्ठभूमि: तमिलनाडु के चमड़ा उद्योगों द्वारा जल और मिट्टी प्रदूषण को अनुच्छेद 48A और 21 के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी गई।
मुद्दा: क्या औद्योगिक प्रदूषण अनुच्छेद 48A और 21 का उल्लंघन करता है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 48A और 51A(g) पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी को रेखांकित करते हैं। कोर्ट ने "स्थायी विकास" और "सावधानी का सिद्धांत" को भारतीय कानून का हिस्सा माना।
प्रदूषणकारी इकाइयों को बंद करने और प्रदूषण नियंत्रण उपाय लागू करने का निर्देश दिया गया।
महत्व: इस मामले ने अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सिद्धांतों को भारतीय संदर्भ में लागू किया और अनुच्छेद 48A की व्याख्या को विस्तारित किया।
टी.एन. गोदावर्मन तिरुमलपद बनाम भारत संघ (1997) (वन संरक्षण मामला)
पृष्ठभूमि: अवैध वन कटाई और वन भूमि के गैर-वन उपयोग को अनुच्छेद 48A के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी गई।
मुद्दा: क्या वन कटाई अनुच्छेद 48A और 21 का उल्लंघन करती है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 48A वनों के संरक्षण और संवर्धन का निर्देश देता है, जो जीवन के अधिकार का हिस्सा है। कोर्ट ने वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 को सख्ती से लागू करने और अवैध कटाई रोकने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने "वन" की व्यापक परिभाषा दी, जिसमें सभी प्रकार की वन भूमि शामिल थी। महत्व: इस मामले ने वन संरक्षण को अनुच्छेद 48A के केंद्र में रखा और सतत वन प्रबंधन को बढ़ावा दिया।
एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (2002) (दिल्ली वायु प्रदूषण मामला)
पृष्ठभूमि: दिल्ली में वाहनों और उद्योगों से होने वाले वायु प्रदूषण को अनुच्छेद 48A और 21 के आधार पर चुनौती दी गई। मुद्दा: क्या वायु प्रदूषण अनुच्छेद 48A और 21 का उल्लंघन करता है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि स्वच्छ वायु अनुच्छेद 21 और 48A के तहत संरक्षित है।
कोर्ट ने दिल्ली में सीएनजी वाहनों को अनिवार्य करने, प्रदूषणकारी उद्योगों को स्थानांतरित करने, और वायु गुणवत्ता निगरानी बढ़ाने का निर्देश दिया।
महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 48A को शहरी पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा और वायु प्रदूषण नियंत्रण को प्राथमिकता दी।
रूरल लिटिगेशन एंड एंटाइटलमेंट केंद्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1985) (देहरादून खनन मामला)
पृष्ठभूमि: देहरादून में अवैध खनन गतिविधियों से पर्यावरण और वनों को नुकसान पहुंचा। इसे अनुच्छेद 48A और 21 के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी गई।
मुद्दा: क्या अवैध खनन अनुच्छेद 48A और 21 का उल्लंघन करता है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 48A पर्यावरण और वनों के संरक्षण का निर्देश देता है, जो जन स्वास्थ्य और जीवन के अधिकार से जुड़ा है।
कोर्ट ने अवैध खनन पर रोक लगाई और पुनर्वनीकरण के लिए उपाय करने का निर्देश दिया।
महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 48A को खनन और पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा और जनहित याचिकाओं की भूमिका को मजबूत किया।
Conclusion
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