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Dantivarman about 796-847 AD
jp Singh 2025-05-22 16:21:14
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दंतिवर्मन (लगभग 796-847 ईस्वी)

दंतिवर्मन (लगभग 796-847 ईस्वी)
दंतिवर्मन (लगभग 796-847 ईस्वी)
दंतिवर्मन (लगभग 796-847 ईस्वी) पल्लव वंश के शासक थे और नंदिवर्मन द्वितीय (पल्लवमल्ल) के पुत्र थे। उनका शासनकाल पल्लव साम्राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण काल था, लेकिन यह चालुक्य, पांड्य, और उभरते हुए चोल वंश की बढ़ती शक्ति के कारण चुनौतियों से भरा रहा। दंतिवर्मन का शासनकाल लगभग 50 वर्षों तक चला, जो पल्लव वंश के बाद के चरणों में अपेक्षाकृत लंबा था। हालाँकि, इस काल में पल्लव साम्राज्य की शक्ति धीरे-धीरे कमजोर होने लगी थी।
1. शासनकाल और सैन्य चुनौतियाँ:
दंतिवर्मन ने अपने पिता नंदिवर्मन द्वितीय की मृत्यु के बाद शासन संभाला। उनके शासनकाल में पल्लव साम्राज्य को चालुक्य वंश (विशेष रूप से राष्ट्रकूट प्रभाव के तहत), पांड्य, और उभरते हुए चोल वंश से निरंतर खतरे का सामना करना पड़ा। पांड्य शासक श्रीमारा श्रीवल्लभ ने पल्लव क्षेत्रों पर आक्रमण किया और काँचीपुरम पर कब्जा करने का प्रयास किया। दंतिवर्मन ने इन आक्रमणों का मुकाबला किया, लेकिन उनकी सैन्य सफलताएँ सीमित रहीं। उनके शासनकाल में पल्लव साम्राज्य का क्षेत्रीय प्रभाव धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा, क्योंकि चोल और पांड्य जैसे पड़ोसी राजवंश अपनी शक्ति बढ़ा रहे थे।
2. सांस्कृतिक और स्थापत्य योगदान:
दंतिवर्मन के शासनकाल में पल्लव वंश की द्रविड़ स्थापत्य परंपरा जारी रही, लेकिन उनके समय में कोई बड़े पैमाने पर नए मंदिरों का निर्माण दर्ज नहीं है। यह संभवतः सैन्य और राजनीतिक चुनौतियों के कारण था।
काँचीपुरम और महाबलीपुरम जैसे केंद्र उनके समय में भी धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण बने रहे।
उनके शासनकाल में पहले से निर्मित मंदिरों, जैसे कैलासनाथ मंदिर और वैकुंठ पेरुमाल मंदिर, का रखरखाव और संरक्षण जारी रहा।
3. धर्म और प्रशासन:
दंतिवर्मन ने अपने पूर्वजों की तरह शैव और वैष्णव धर्मों को संरक्षण प्रदान किया, जिससे धार्मिक सहिष्णुता की पल्लव परंपरा बनी रही। काँचीपुरम उनके शासनकाल में भी एक प्रमुख धार्मिक और बौद्धिक केंद्र बना रहा, हालाँकि इसकी राजनीतिक शक्ति कमजोर हो रही थी। तमिल और संस्कृत साहित्य को उनके दरबार में प्रोत्साहन मिला, लेकिन सांस्कृतिक गतिविधियाँ पहले की तुलना में कम प्रभावशाली थीं।
4. उत्तराधिकार और विरासत:
दंतिवर्मन की मृत्यु के बाद उनके पुत्र नंदिवर्मन तृतीय ने शासन संभाला। नंदिवर्मन तृतीय ने पल्लव साम्राज्य की स्थिति को कुछ हद तक पुनर्जनन करने का प्रयास किया।
दंतिवर्मन का शासनकाल पल्लव वंश के पतन के प्रारंभिक चरण के रूप में देखा जाता है, क्योंकि उनके बाद पल्लव साम्राज्य की शक्ति और प्रभाव में कमी आई।
उनकी लंबी शासन अवधि ने साम्राज्य को कुछ हद तक स्थिरता प्रदान की, लेकिन पड़ोसी शक्तियों के बढ़ते प्रभाव को रोकना उनके लिए संभव नहीं रहा।
महत्वपूर्ण बिंदु:
पांड्य और चोल के साथ संघर्ष: दंतिवर्मन के शासनकाल में पल्लव साम्राज्य को पड़ोसी शक्तियों से लगातार चुनौतियाँ मिलीं, जिसने उनकी स्थिति को कमजोर किया।
काँची का महत्व: काँचीपुरम धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण बना रहा, लेकिन इसकी राजनीतिक शक्ति कमजोर हुई।
पल्लव पतन का प्रारंभ: उनके शासनकाल में पल्लव साम्राज्य का क्षेत्रीय और सैन्य प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा।
Conclusion
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