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Article 208 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 11:07:30
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 208

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 208
अनुच्छेद 208 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय III(राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह प्रक्रिया के नियम(Rules of procedure) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन को अपनी प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम बनाने का अधिकार देता है।
"(1) कोई विधानमंडल का सदन अपने कार्य संचालन को विनियमित करने के लिए नियम बना सकता है और विशेष रूप से, किंतु इसके द्वारा सीमित न होकर, निम्नलिखित विषयों के लिए नियम बना सकता है:
(क) अपने सभापति, उपसभापति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का निर्वाचन;
(ख) अपने सदस्यों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ;
(ग) अपने कार्य की प्रक्रिया और संचालन।
(2) जब तक विधानमंडल का कोई सदन अपने कार्य संचालन के लिए नियम नहीं बनाता, तब तक वह अपने कार्य संचालन को उसी प्रकार विनियमित करेगा, जैसा कि तत्काल पूर्ववर्ती नियमों के अधीन था।
(3) इस अनुच्छेद के अधीन बनाए गए नियमों को लागू करने के लिए राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक होगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 208 राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन(विधानसभा और विधान परिषद, यदि हो) को अपनी प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम बनाने का अधिकार देता है। यह सुनिश्चित करता है कि विधानमंडल स्वायत्त रूप से अपनी कार्यवाही को व्यवस्थित कर सके। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में विधानमंडल की स्वायत्तता और कार्यकुशलता को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडलों को प्रक्रिया के नियम बनाने का अधिकार देता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में हाउस ऑफ कॉमन्स और हाउस ऑफ लॉर्ड्स की प्रक्रिया नियमों की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, विधानमंडल की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 118(संसद के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विधानमंडल को अपनी कार्यवाही को सुचारु और अनुशासित रूप से संचालित करने में सक्षम बनाता है।
अनुच्छेद 208 के प्रमुख तत्व
खंड(1): नियम बनाने की शक्ति: विधानमंडल का प्रत्येक सदन अपने कार्य संचालन के लिए नियम बना सकता है, जिसमें शामिल हैं
(क) सभापति, उपसभापति, अध्यक्ष, या उपाध्यक्ष का निर्वाचन।
(ख) सदस्यों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार, और उन्मुक्तियाँ।
(ग) कार्य की प्रक्रिया और संचालन। उदाहरण: 2025 में, उत्तर प्रदेश विधानसभा ने अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए नए नियम बनाए।
खंड(2): अंतरिम व्यवस्था: जब तक नए नियम नहीं बनते, सदन पूर्ववर्ती नियमों के अनुसार कार्य संचालित करेगा। उदाहरण: नए नियम बनने से पहले, विधानसभा ने पुराने नियमों का पालन किया।
खंड(3): राज्यपाल की स्वीकृति: बनाए गए नियमों को लागू करने के लिए राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक होगी। उदाहरण: विधान परिषद के नियमों को राज्यपाल ने स्वीकृत किया।
महत्व: विधायी स्वायत्तता: विधानमंडल को अपनी प्रक्रिया निर्धारित करने की स्वतंत्रता। लोकतांत्रिक शासन: अनुशासित और व्यवस्थित कार्यवाही। संघीय ढांचा: राज्यों की विधायी स्वायत्तता। पारदर्शिता: नियमों के माध्यम से प्रक्रिया में स्पष्टता।
प्रमुख विशेषताएँ: नियम: कार्य संचालन के लिए। सदन: स्वायत्त नियम निर्माण। राज्यपाल: स्वीकृति अनिवार्य। अंतरिम: पुराने नियम लागू।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यों ने अपने विधानमंडलों के लिए नियम बनाए। 1990 के दशक: विशेषाधिकार नियमों पर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में नियमों का डिजिटल प्रकाशन।
चुनौतियाँ और विवाद: राज्यपाल की स्वीकृति: देरी या पक्षपात के आरोप। विशेषाधिकार: सदस्यों के विशेषाधिकार पर विवाद।न्यायिक समीक्षा: नियमों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 118: संसद के लिए प्रक्रिया नियम। अनुच्छेद 194: विधानमंडल के विशेषाधिकार। अनुच्छेद 200: विधेयकों पर सहमति।
Conclusion
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