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Article 145 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 13:57:15
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 145

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 145
अनुच्छेद 145 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह सर्वोच्च न्यायालय के नियम और प्रक्रिया (Rules of procedure of Supreme Court) से संबंधित है। यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को अपनी कार्यवाही को विनियमित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति देता है, जो संसद के कानूनों और राष्ट्रपति की स्वीकृति के अधीन है।
अनुच्छेद 145 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून और इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सर्वोच्च न्यायालय समय-समय पर, राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से, अपनी कार्यवाही को विनियमित करने के लिए नियम बना सकता है, और विशेष रूप से निम्नलिखित मामलों के लिए:
(क) वे नियम और शर्तें जिनके अधीन व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय में अभ्यास और वकालत कर सकते हैं;
(ख) सर्वोच्च न्यायालय में अपीलों और याचिकाओं की सुनवाई और निर्णय की प्रक्रिया, जिसमें सुनवाई के लिए व्यक्तियों की उपस्थिति और सुनवाई की तारीखें शामिल हैं;
(ग) सर्वोच्च न्यायालय में लंबित कार्यवाहियों के लिए शुल्क और अन्य प्रभार;
(घ) दीवानी और फौजदारी अपीलों और विशेष अनुमति याचिकाओं की सुनवाई के लिए नियम;
(ङ) इस संविधान के उपबंधों के तहत किए गए किसी आदेश, डिक्री या निर्णय को लागू करने के लिए प्रक्रिया;
(च) किसी मामले को एकल न्यायाधीश या खंडपीठ को भेजने के लिए नियम;
(छ) किसी मामले को उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने के लिए नियम;
(ज) समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई के लिए नियम।
(2) सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए नियम, राष्ट्रपति की स्वीकृति के अधीन, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अभ्यास करने के लिए व्यक्तियों को अधिकृत करने और उनके कदाचार के लिए दंडित करने की शक्ति प्रदान कर सकते हैं।
(3) किसी संवैधानिक प्रश्न को शामिल करने वाले मामले की सुनवाई के लिए न्यूनतम न्यायाधीशों की संख्या पाँच होगी।
(4) कोई भी निर्णय या राय जो इस अनुच्छेद के खंड (3) के तहत दी जाती है, वह लिखित रूप में होगी और यदि एक से अधिक राय हों, तो बहुमत की राय प्रबल होगी।
(5) इस अनुच्छेद के खंड (3) के तहत कोई भी सुनवाई तब तक नहीं होगी जब तक कि सभी पक्षों को सुनने का अवसर न दिया जाए।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 145 सर्वोच्च न्यायालय को अपनी कार्यवाही को विनियमित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति देता है, ताकि न्यायिक प्रक्रियाएँ सुचारु और प्रभावी हों। यह सुनिश्चित करता है कि सर्वोच्च न्यायालय की प्रक्रियाएँ पारदर्शी, निष्पक्ष, और न्यायिक अनुशासन के अनुरूप हों। इसका लक्ष्य न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए कानूनी प्रक्रियाओं की एकरूपता सुनिश्चित करना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान सामान्य कानून प्रणालियों से प्रेरित है, जहाँ उच्चतम न्यायालय अपनी प्रक्रियाओं को स्वयं विनियमित करते हैं। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 की भावना को दर्शाता है, जो संघीय न्यायालय के लिए समान प्रावधान करता था। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, सर्वोच्च न्यायालय को एक स्वतंत्र और शक्तिशाली संस्था के रूप में स्थापित किया गया। अनुच्छेद 145 इसकी कार्यप्रणाली को सुव्यवस्थित करता है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान डिजिटल युग में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ सुनवाई, दस्तावेज प्रस्तुति, और अन्य प्रक्रियाएँ डिजिटल हो रही हैं।
3. अनुच्छेद 145 के प्रमुख तत्व: खंड (1): नियम बनाने की शक्ति: सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रपति की स्वीकृति और संसद के कानूनों के अधीन, अपनी कार्यवाही के लिए नियम बना सकता है। नियमों का दायरा: (क) वकालत और अभ्यास की शर्तें। (ख) अपीलों और याचिकाओं की सुनवाई की प्रक्रिया। (ग) शुल्क और प्रभार। (घ) दीवानी, फौजदारी, और विशेष अनुमति याचिकाओं के नियम। (ङ) आदेशों और डिक्रियों का कार्यान्वयन। (च) मामलों को एकल न्यायाधीश या खंडपीठ को भेजना। (छ) उच्च न्यायालय से स्थानांतरण। (ज) समीक्षा याचिकाएँ। उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय नियम, 1966 इस अनुच्छेद के तहत बनाए गए हैं।
खंड (2): वकीलों का नियमन: सर्वोच्च न्यायालय नियम बना सकता है जो वकीलों को अभ्यास की अनुमति देता है और उनके कदाचार के लिए दंडित करने की शक्ति प्रदान करता है। उदाहरण: अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए बार काउंसिल के साथ समन्वय।
खंड (3): संवैधानिक मामलों में न्यूनतम न्यायाधीश: संवैधानिक प्रश्न वाले मामलों की सुनवाई के लिए न्यूनतम पाँच न्यायाधीशों की पीठ आवश्यक है। उदाहरण: केशवानंद भारती (1973) में 13 न्यायाधीशों की पीठ।
खंड (4): लिखित निर्णय: संवैधानिक मामलों में निर्णय या राय लिखित रूप में होगी। यदि एक से अधिक राय हैं, तो बहुमत की राय प्रबल होगी।
खंड (5): निष्पक्ष सुनवाई: संवैधानिक मामलों में सभी पक्षों को सुनने का अवसर देना अनिवार्य है।
4. महत्व: न्यायिक स्वायत्तता: सर्वोच्च न्यायालय अपनी प्रक्रियाओं को स्वयं नियंत्रित करता है। पारदर्शिता: लिखित नियमों और प्रक्रियाओं से निष्पक्षता। संवैधानिक महत्व: पाँच न्यायाधीशों की पीठ से संवैधानिक मामलों में विश्वसनीयता। नागरिकों के अधिकार: निष्पक्ष और सुव्यवस्थित प्रक्रिया से न्याय तक पहुंच।
5. प्रमुख विशेषताएँ: नियम बनाने की शक्ति: राष्ट्रपति की स्वीकृति। संवैधानिक पीठ: न्यूनतम पाँच न्यायाधीश। लिखित निर्णय: बहुमत की राय। निष्पक्षता: सभी पक्षों को सुनना।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: केशवानंद भारती (1973): मूल ढांचे की अवधारणा पाँच से अधिक न्यायाधीशों की पीठ द्वारा। NJAC मामला (2015): संवैधानिक पीठ द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को रद्द करना। 2025 स्थिति: डिजिटल सुनवाई और पर्यावरण मामलों के लिए नियम।
7. चुनौतियाँ और विवाद: प्रक्रियात्मक जटिलता: नियमों के कारण देरी की आशंका। न्यायिक कार्यभार: संवैधानिक पीठों से बोझ। नियमों का दुरुपयोग: कदाचार नियमों की असंगति की आशंका।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संवैधानिक पीठ की आवश्यकता। सर्वोच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ (1998): प्रक्रियात्मक नियमों की व्याख्या।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, डिजिटल सुनवाई और साइबर कानूनों के लिए नए नियम। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत प्रक्रियाओं का डिजिटल रिकॉर्ड। साइबर और पर्यावरण मामलों पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक सुधारों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 142: पूर्ण न्याय। अनुच्छेद 141: बाध्यकारी नजीरें। अनुच्छेद 136: विशेष अनुमति याचिका।
11. विशेष तथ्य: सर्वोच्च न्यायालय नियम, 1966: इस अनुच्छेद के तहत। 2025 नियम: डिजिटल सुनवाई। संवैधानिक पीठ: पाँच न्यायाधीश। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
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