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Article 124A of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 12:58:00
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 124 A.png

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 124 A.png
अनुच्छेद 124A भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission NJAC) से संबंधित है। यह प्रावधान 99वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 द्वारा जोड़ा गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2015 में असंवैधानिक घोषित किए जाने के कारण वर्तमान में यह प्रभावी नहीं है। फिर भी, इसका ऐतिहासिक और संवैधानिक महत्व है, इसलिए मैं इसका विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत कर रहा हूँ।
अनुच्छेद 124A का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"(1) राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग में निम्नलिखित व्यक्ति शामिल होंगे—
(क) भारत के मुख्य न्यायाधीश, जो आयोग के पदेन अध्यक्ष होंगे;
(ख) सर्वोच्च न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश, जो भारत के मुख्य न्यायाधीश के बाद वरिष्ठता में अगले हों—पदेन सदस्य;
(ग) केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री—पदेन सदस्य;
(घ) दो प्रख्यात व्यक्ति, जिन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश, भारत के प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता की समिति द्वारा नामित किया जाएगा—सदस्य:
परंतु यह कि ऐसे प्रख्यात व्यक्तियों में से कम से कम एक व्यक्ति अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों या महिलाओं में से होगा, और वे तीन वर्ष की अवधि के लिए नामित किए जाएंगे और पुनर्नामांकन के पात्र नहीं होंगे।
(2) इस संविधान के अधीन सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए आयोग की प्रक्रिया को विधि द्वारा विनियमित किया जाएगा।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 124A का उद्देश्य राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की स्थापना करना था, जो सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण को नियंत्रित करता। यह कोलेजियम प्रणाली (जो अनुच्छेद 124(2) के तहत विकसित हुई) को बदलने के लिए लाया गया था, ताकि नियुक्ति प्रक्रिया में कार्यपालिका की अधिक भागीदारी हो। इसका लक्ष्य पारदर्शिता, जवाबदेही, और समावेशिता को बढ़ाना था।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: NJAC कोलेजियम प्रणाली की आलोचनाओं (जैसे, अपारदर्शिता, जवाबदेही की कमी) के जवाब में लाया गया। कोलेजियम प्रणाली दूसरा न्यायाधीश मामला (1993) और तीसरा न्यायाधीश मामला (1998) के माध्यम से विकसित हुई थी। 99वाँ संशोधन (2014): संसद ने NJAC को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन किया और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 पारित किया। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (2015): सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने NJAC को असंवैधानिक घोषित किया, क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता (संविधान का मूल ढांचा) का उल्लंघन करता था।
3. अनुच्छेद 124A के प्रमुख उपखंड: खंड (1): NJAC का गठन NJAC में निम्नलिखित सदस्य शामिल थे: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) अध्यक्ष। सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश सदस्य। केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री सदस्य। दो प्रख्यात व्यक्ति CJI, प्रधानमंत्री, और लोकसभा में विपक्ष के नेता द्वारा नामित। परंतुक: प्रख्यात व्यक्तियों में से एक SC, ST, OBC, अल्पसंख्यक, या महिला होना चाहिए। प्रख्यात व्यक्तियों का कार्यकाल 3 वर्ष, पुनर्नामांकन नहीं। उद्देश्य: कार्यपालिका और न्यायपालिका का संतुलन। सामाजिक विविधता को प्रतिनिधित्व।
खंड (2): प्रक्रिया का विनियमन NJAC द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रक्रिया को संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा विनियमित किया जाना था। उदाहरण: NJAC अधिनियम, 2014 ने प्रक्रिया को परिभाषित किया था।
4. महत्व (ऐतिहासिक संदर्भ में): पारदर्शिता की कोशिश: NJAC का उद्देश्य कोलेजियम की अपारदर्शिता को दूर करना था। कार्यपालिका की भूमिका: विधि मंत्री और प्रख्यात व्यक्तियों के शामिल होने से कार्यपालिका की भागीदारी बढ़ी। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि NJAC इस स्वतंत्रता को कमजोर करता है। सामाजिक समावेशिता: प्रख्यात व्यक्तियों के लिए आरक्षण प्रावधान।
5. प्रमुख विशेषताएँ: NJAC का गठन: 6 सदस्य (3 न्यायपालिका, 3 कार्यपालिका/सामाजिक)। कोलेजियम का विकल्प: नियुक्ति में संतुलन। असंवैधानिक घोषणा: 2015 में रद्द। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचे का हिस्सा।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 2014: NJAC की स्थापना: 99वाँ संशोधन और NJAC अधिनियम पारित। 2015: NJAC असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से NJAC को रद्द किया। कोलेजियम की वापसी: NJAC के बाद कोलेजियम प्रणाली पुनर्स्थापित।
7. चुनौतियाँ और विवाद: न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका: NJAC ने कार्यपालिका को नियुक्तियों में अधिक शक्ति दी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्रता के लिए खतरा माना। पारदर्शिता बनाम स्वतंत्रता: कोलेजियम की अपारदर्शिता की आलोचना, लेकिन NJAC को असंवैधानिक ठहराया गया। सामाजिक प्रतिनिधित्व: प्रख्यात व्यक्तियों के लिए आरक्षण पर सवाल।
8. न्यायिक व्याख्या: सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015): NJAC को असंवैधानिक घोषित, क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता था। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचे का हिस्सा। दूसरा न्यायाधीश मामला (1993): कोलेजियम प्रणाली की स्थापना।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, कोलेजियम प्रणाली के तहत नियुक्तियाँ जारी। प्रासंगिकता: NJAC के बाद कोलेजियम में सुधार की माँग, जैसे पारदर्शिता और रिकॉर्डिंग। डिजिटल संसद पहल के तहत नियुक्ति प्रक्रिया डिजिटल रिकॉर्ड। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच नियुक्ति प्रक्रिया पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय का गठन। अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश। अनुच्छेद 121: वेतन पर चर्चा प्रतिबंध।
11. विशेष तथ्य: 2015 NJAC रद्द: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय। कोलेजियम प्रणाली: वर्तमान में प्रभावी। 2025 नियुक्तियाँ: कोलेजियम के तहत। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
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