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Employment and Development Schemes of the Indian Government in the 1960s-1970s
jp Singh 2025-06-20 18:18:03
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1960-1970 के दशक की भारत सरकार की रोजगार और विकास योजनाएँ

1960-1970 के दशक की भारत सरकार की रोजगार और विकास योजनाएँ
ग्रामीण जनशक्ति योजना (Rural Manpower Programme - RMP)
प्रारंभ तिथि: 1960
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: योजना आयोग और श्रम मंत्रालय
योजना का विस्तार: यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार और अर्ध-बेरोजगार व्यक्तियों के लिए शुरू की गई थी। इसका कार्यान्वयन मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक विकास खंडों के माध्यम से किया गया।
उद्देश्य: ग्रामीण बेरोजगारी को कम करना। ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे (जैसे सड़क, नहर, स्कूल भवन) का विकास करना। ग्रामीण श्रमिकों को अकुशल कार्यों में रोजगार प्रदान करना।
महत्व: यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन और सामुदायिक विकास के लिए एक प्रारंभिक प्रयास थी। इसने ग्रामीण बुनियादी ढांचे के विकास में योगदान दिया।
लक्ष्य: ग्रामीण बेरोजगारी को कम करना और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ाना। ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
परिणाम: ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों, स्कूलों और सिंचाई सुविधाओं का निर्माण हुआ। सीमित पैमाने पर रोजगार सृजन हुआ, लेकिन बड़े पैमाने पर बेरोजगारी की समस्या का समाधान नहीं हो सका।
योजना की प्रभावशीलता सीमित थी क्योंकि यह मुख्य रूप से अकुशल श्रम पर केंद्रित थी और दीर्घकालिक रोजगार सृजन में कमी रही।
गहन कृषि जिला कार्यक्रम (Intensive Agricultural District Programme - IADP)
प्रारंभ तिथि: 1960-61
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: कृषि मंत्रालय, भारत सरकार (फोर्ड फाउंडेशन के सहयोग से)
योजना का विस्तार: यह कार्यक्रम चुनिंदा जिलों में शुरू किया गया, जिन्हें "पैकेज प्रोग्राम" के रूप में जाना गया। प्रारंभ में 7 जिलों में लागू किया गया, बाद में इसे 15 जिलों तक विस्तारित किया गया।
उद्देश्य: कृषि उत्पादकता बढ़ाना। उन्नत कृषि तकनीकों (उच्च उपज वाली किस्में, उर्वरक, सिंचाई) को बढ़ावा देना। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
महत्व: यह योजना हरित क्रांति की आधारशिला थी, जिसने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लक्ष्य: प्रति हेक्टेयर कृषि उपज में वृद्धि। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन (कृषि और संबद्ध गतिविधियों के माध्यम से)। खाद्य संकट से निपटना।
परिणाम: गेहूं और चावल की उपज में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। हरित क्रांति की शुरुआत हुई, जिसने 1960 के दशक के अंत तक भारत को खाद्यान्न आयात पर निर्भरता कम करने में मदद की।
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े, विशेष रूप से कृषि श्रमिकों और छोटे किसानों के लिए।
खाद्य के बदले काम कार्यक्रम (Food for Work Programme)
प्रारंभ तिथि: 1960 के दशक के मध्य (अनौपचारिक रूप से शुरू, 1970 के दशक में औपचारिक रूप लिया)
शासन: लाल बहादुर शास्त्री/इंदिरा गांधी (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: ग्रामीण विकास मंत्रालय और योजना आयोग
योजना का विस्तार: यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में अकाल और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में लागू किया गया। मजदूरी के रूप में खाद्यान्न प्रदान किया जाता था।
उद्देश्य: अकाल और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भुखमरी को रोकना। ग्रामीण बुनियादी ढांचे का निर्माण (जैसे सड़क, तालाब, नहर)। गरीब ग्रामीण श्रमिकों को रोजगार प्रदान करना।
महत्व: यह योजना आपातकालीन राहत और ग्रामीण विकास को जोड़ने का एक महत्वपूर्ण प्रयास थी। इसने बाद की रोजगार गारंटी योजनाओं के लिए आधार तैयार किया।
लक्ष्य: ग्रामीण गरीबों को तत्काल राहत प्रदान करना। ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास।
परिणाम: कई क्षेत्रों में सड़क और सिंचाई सुविधाओं का निर्माण हुआ। गरीब परिवारों को खादyan प्रदान करके भुखमरी को कम करने में मदद मिली।
हालांकि, योजना का दायरा सीमित था और यह दीर्घकालिक रोजगार सृजन में पूरी तरह प्रभावी नहीं थी।
सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (Drought Prone Areas Programme - DPAP)
प्रारंभ तिथि: 1970-71 (चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान)
शासन: इंदिरा गांधी (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: ग्रामीण विकास मंत्रालय
योजना का विस्तार: यह कार्यक्रम उन क्षेत्रों में लागू किया गया जो बार-बार सूखे की चपेट में आते थे। प्रारंभ में 54 जिलों को कवर किया गया।
उद्देश्य: सूखा प्रभावित क्षेत्रों में ग्रामीण बेरोजगारी को कम करना। जल संरक्षण और मिट्टी संरक्षण को बढ़ावा देना। दीर्घकालिक ग्रामीण विकास सुनिश्चित करना।
महत्व: यह योजना पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण रोजगार को जोड़ने वाली पहली योजनाओं में से एक थी। इसने सूखा प्रभावित क्षेत्रों में स्थायी विकास पर ध्यान केंद्रित किया।
लक्ष्य: जल संरक्षण परियोजनाओं (जैसे तालाब, चेक डैम) का निर्माण।
ग्रामीण बुनियादी ढांचे का विकास।स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन।
परिणाम: जल संरक्षण और मिट्टी संरक्षण में सुधार हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े। हालांकि, योजना का प्रभाव सीमित था क्योंकि यह केवल सूखा प्रभावित क्षेत्रों तक केंद्रित थी।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम (Community Development Programme - CDP)
प्रारंभ तिथि: 2 अक्टूबर 1952
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: योजना आयोग, भारत सरकार
योजना का विस्तार: यह कार्यक्रम ग्रामीण भारत के समग्र विकास के लिए शुरू किया गया था। इसे देश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में लागू किया गया, जिसमें प्रारंभ में 55 सामुदायिक विकास खंड शामिल थे। बाद में इसका विस्तार राष्ट्रीय विस्तार सेवा (National Extension Service) के साथ हुआ।
उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना। कृषि उत्पादकता, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में सुधार करना। ग्रामीण बेरोजगारी को कम करना और स्वरोजगार के अवसर बढ़ाना।
महत्व: यह स्वतंत्र भारत की पहली प्रमुख ग्रामीण विकास योजना थी, जिसने ग्रामीण पुनर्जनन और सामुदायिक भागीदारी पर जोर दिया। इसने ग्रामीण विकास के लिए एक ढांचा प्रदान किया।
लक्ष्य: ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएँ (सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र) विकसित करना। ग्रामीण जनता को स्वावलंबी बनाना। स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर सृजित करना।
परिणाम: ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों, स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण हुआ।
कृषि उत्पादकता में सुधार हुआ, लेकिन बड़े पैमाने पर बेरोजगारी की समस्या का समाधान नहीं हो सका। प्रशासनिक और वित्तीय समस्याओं के कारण कार्यक्रम की प्रभावशीलता सीमित रही।
राष्ट्रीय विस्तार सेवा (National Extension Service - NES)
प्रारंभ तिथि: 2 अक्टूबर 1953
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: योजना आयोग और ग्रामीण विकास मंत्रालय
योजना का विस्तार: यह सामुदायिक विकास कार्यक्रम का एक हिस्सा था, जिसे कम लागत पर अधिक क्षेत्रों में लागू करने के लिए शुरू किया गया। यह ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों को बढ़ाने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण था।
उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और संबद्ध गतिविधियों को बढ़ावा देना।
ग्रामीण बेरोजगारों को प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर प्रदान करना। सामुदायिक विकास कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाना।
महत्व: यह योजना ग्रामीण विकास के लिए सामुदायिक भागीदारी और स्थानीय संसाधनों के उपयोग पर केंद्रित थी। इसने ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता और विकास को बढ़ावा दिया।
लक्ष्य: ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीकी जानकारी और प्रशिक्षण प्रदान करना।ग्रामीण बुनियादी ढांचे और सामुदायिक सुविधाओं का विकास। ग्रामीण स्तर पर रोजगार सृजन।
परिणाम: ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि तकनीकों का प्रसार हुआ। स्थानीय स्तर पर कुछ रोजगार के अवसर सृजित हुए। हालांकि, सीमित संसाधनों और प्रशिक्षण की कमी के कारण इसका प्रभाव अपेक्षाकृत कम रहा।
खादी और ग्रामोद्योग कार्यक्रम (Khadi and Village Industries Programme)
प्रारंभ तिथि: 1953 (खादी और ग्रामोद्योग आयोग की स्थापना के साथ)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC), भारत सरकार
योजना का विस्तार: यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया। खादी, हस्तशिल्प और ग्रामोद्योगों को बढ़ावा देने के लिए देशव्यापी स्तर पर लागू किया गया।
उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना। पारंपरिक उद्योगों और हस्तशिल्प को बढ़ावा देना। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना।
महत्व: यह कार्यक्रम गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित था और ग्रामीण आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण था। इसने ग्रामीण महिलाओं और कारीगरों को रोजगार प्रदान किया।
लक्ष्य: खादी और ग्रामोद्योग उत्पादों का उत्पादन और विपणन बढ़ाना। ग्रामीण कारीगरों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान करना। ग्रामीण बेरोजगारी को कम करना।
परिणाम: ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों लोगों को रोजगार मिला, विशेष रूप से खादी और हस्तशिल्प क्षेत्र में। खादी को राष्ट्रीय पहचान के रूप में प्रोत्साहन मिला।
हालांकि, आधुनिक औद्योगीकरण के कारण इसकी लोकप्रियता सीमित रही।
प्रथम और द्वितीय पंचवर्षीय योजना (First and Second Five Year Plans)
प्रारंभ तिथि:
प्रथम पंचवर्षीय योजना: 1951-1956
द्वितीय पंचवर्षीय योजना: 1956-1961
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: योजना आयोग, भारत सरकार
योजना का विस्तार: ये योजनाएँ समग्र आर्थिक विकास के लिए थीं, जिनमें कृषि, उद्योग, और बुनियादी ढांचे पर ध्यान दिया गया। प्रथम योजना ने कृषि और ग्रामीण विकास पर जोर दिया, जबकि द्वितीय योजना ने औद्योगीकरण पर।
उद्देश्य: प्रथम योजना: कृषि उत्पादकता बढ़ाना, बुनियादी ढांचे का विकास, और ग्रामीण बेरोजगारी को कम करना। द्वितीय योजना: भारी उद्योगों की स्थापना, रोजगार सृजन, और आर्थिक आत्मनिर्भरता।
महत्व: इन योजनाओं ने स्वतंत्र भारत की आर्थिक नींव रखी। प्रथम योजना ने ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि द्वितीय योजना ने औद्योगिक आधार को मजबूत किया।
परिणाम: प्रथम योजना: कृषि उत्पादन में 20% की वृद्धि हुई, सिंचाई परियोजनाओं (जैसे भाखड़ा नांगल) का विकास हुआ। द्वितीय योजना: इस्पात संयंत्रों (भिलाई, राउरकेला) की स्थापना हुई, जिससे औद्योगिक रोजगार बढ़ा। ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित रोजगार सृजन हुआ, लेकिन बेरोजगारी की समस्या पूरी तरह हल नहीं हुई।
ग्रामीण आवास योजना (Rural Housing Scheme)
प्रारंभ तिथि: 1957 (द्वितीय पंचवर्षीय योजना के दौरान)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: ग्रामीण विकास मंत्रालय और योजना आयोग
योजना का विस्तार: यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब और बेघर परिवारों के लिए किफायती आवास प्रदान करने के लिए शुरू की गई। इसका कार्यान्वयन सामुदायिक विकास खंडों के माध्यम से किया गया, जिसमें स्थानीय सामग्री और श्रम का उपयोग किया गया।
उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में बेघर परिवारों को पक्के मकान उपलब्ध कराना। स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन, विशेष रूप से निर्माण कार्यों के माध्यम से। ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार करना।
महत्व: यह योजना ग्रामीण गरीबों के लिए आवास की समस्या को हल करने का प्रारंभिक प्रयास थी। इसने ग्रामीण बुनियादी ढांचे और रोजगार सृजन को बढ़ावा दिया।
लक्ष्य: ग्रामीण क्षेत्रों में कम लागत वाले मकानों का निर्माण। स्थानीय श्रमिकों और कारीगरों को रोजगार प्रदान करना। ग्रामीण समुदायों में सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देना।
परिणाम: कई ग्रामीण क्षेत्रों में कच्चे मकानों को पक्के मकानों में बदला गया। निर्माण कार्यों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़े। हालांकि, सीमित धनराशि और प्रशासनिक बाधाओं के कारण योजना का दायरा छोटा रहा।
ग्राम पंचायत विकास योजना (Village Panchayat Development Scheme)
प्रारंभ तिथि: 1952 (सामुदायिक विकास कार्यक्रम के साथ शुरू)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: ग्रामीण विकास मंत्रालय और योजना आयोग
योजना का विस्तार: यह योजना ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाने और स्थानीय स्तर पर विकास कार्यों को लागू करने के लिए शुरू की गई। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी और स्वशासन को बढ़ावा देना था।
उद्देश्य: ग्राम पंचायतों को विकास योजनाओं के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करना। ग्रामीण स्तर पर रोजगार सृजन के लिए छोटे पैमाने की परियोजनाओं को बढ़ावा देना। ग्रामीण समुदायों में सामुदायिकता और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करना।
महत्व: यह योजना ग्राम पंचायतों को विकास प्रक्रिया का केंद्र बनाने का पहला प्रयास था। इसने पंचायती राज व्यवस्था की नींव रखी, जिसे बाद में और मजबूत किया गया।
लक्ष्य: ग्राम पंचायतों को सड़क, स्कूल, और सामुदायिक भवनों के निर्माण के लिए सशक्त करना। स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ाना। ग्रामीण समुदायों में लोकतांत्रिक जागरूकता बढ़ाना।
परिणाम: कई गांवों में पंचायत भवन, सामुदायिक केंद्र, और छोटे बुनियादी ढांचे का निर्माण हुआ। ग्रामीण स्तर पर कुछ रोजगार सृजित हुए, विशेष रूप से निर्माण और सामुदायिक कार्यों में। प्रशासनिक अक्षमता और ग्रामीण समुदायों में जागरूकता की कमी के कारण प्रभाव सीमित रहा।
सहकारी समितियों को प्रोत्साहन (Promotion of Cooperative Societies)
प्रारंभ तिथि: 1951 (प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: सहकारिता मंत्रालय और योजना आयोग
योजना का विस्तार: यह योजना कृषि और ग्रामीण समुदायों में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई। इसका उद्देश्य किसानों और ग्रामीण कारीगरों को वित्तीय सहायता, ऋण, और विपणन सुविधाएँ प्रदान करना था।
उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों के माध्यम से स्वरोजगार को बढ़ावा देना। किसानों को सस्ते ऋण और उर्वरक उपलब्ध कराना। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना।
महत्व: सहकारी आंदोलन ने ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक समावेशिता को बढ़ाया। इसने छोटे किसानों और कारीगरों को बड़े बाजारों से जोड़ा और साहूकारों पर निर्भरता को कम किया।
लक्ष्य: कृषि और गैर-कृषि सहकारी समितियों की स्थापना। ग्रामीण स्तर पर रोजगार और आय के अवसर बढ़ाना। ग्रामीण समुदायों में सामाजिक-आर्थिक एकता को बढ़ावा देना।
परिणाम: कई ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों की स्थापना हुई, विशेष रूप से कृषि और डेयरी क्षेत्र में।छोटे किसानों को ऋण और विपणन सुविधाएँ मिलीं, जिससे उनकी आय में सुधार हुआ।हालांकि, कुछ क्षेत्रों में सहकारी समितियाँ भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का शिकार हुईं।
भूमि सुधार कार्यक्रम (Land Reforms Programme)
प्रारंभ तिथि: 1950 (स्वतंत्रता के तुरंत बाद शुरू, प्रथम पंचवर्षीय योजना में औपचारिक रूप)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: ग्रामीण विकास मंत्रालय और राज्य सरकारें (केंद्र के दिशानिर्देशों के तहत)
योजना का विस्तार: यह योजना जमींदारी प्रथा को समाप्त करने और भूमिहीन किसानों को जमीन वितरित करने के लिए शुरू की गई। इसमें जमींदारी उन्मूलन, भू-सीमा निर्धारण, और किरायेदारी सुधार शामिल थे।
उद्देश्य: भूमिहीन किसानों और ग्रामीण गरीबों को जमीन का वितरण।कृषि उत्पादकता और ग्रामीण रोज़गार को बढ़ाना।ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक असमानता को कम करना।
महत्व: यह योजना ग्रामीण भारत में सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता के लिए क्रांतिकारी थी। इसने जमींदारी प्रथा को समाप्त कर ग्रामीण गरीबों को सशक्त किया।
लक्ष्य: जमींदारी प्रथा का उन्मूलन और अधिशेष भूमि का वितरण।किरायेदार किसानों को स्वामित्व अधिकार प्रदान करना।ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित रोजगार बढ़ाना।
परिणाम: कई राज्यों में जमींदारी प्रथा समाप्त हुई, और लाखों भूमिहीन किसानों को जमीन मिली।किरायेदार किसानों को कुछ हद तक स्वामित्व अधिकार प्राप्त हुए।हालांकि, कार्यान्वयन में असमानता और राज्यों की नीतियों में भिन्नता के कारण पूर्ण सफलता नहीं मिली।
राष्ट्रीय लघु बचत योजना (National Small Savings Scheme)
प्रारंभ तिथि: 1950 के दशक की शुरुआत (औपचारिक रूप से प्रथम पंचवर्षीय योजना में शामिल)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: वित्त मंत्रालय, भारत सरकार
योजना का विस्तार: इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में छोटी बचत को प्रोत्साहित करना था। डाकघरों के माध्यम से बचत योजनाएँ (जैसे डाकघर बचत खाता, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र) शुरू की गईं, जिससे ग्रामीण जनता को बचत और निवेश के अवसर मिले।
उद्देश्य: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बचत की आदत को बढ़ावा देना। विकास परियोजनाओं के लिए पूंजी जुटाना। ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक स्थिरता और स्वरोजगार को बढ़ावा देना।
महत्व: यह योजना ग्रामीण और शहरी गरीबों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली से जोड़ने का एक प्रारंभिक प्रयास थी। इसने विकास परियोजनाओं के लिए धन जुटाने में मदद की।
लक्ष्य: ग्रामीण जनता को छोटी बचत योजनाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना। डाकघरों के माध्यम से वित्तीय समावेशिता को बढ़ावा देना। बचत से जुटाए गए धन को बुनियादी ढांचे और रोजगार सृजन परियोजनाओं में निवेश करना।
परिणाम: डाकघर बचत योजनाओं ने ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रियता हासिल की। छोटी बचत योजनाओं से सरकार को विकास परियोजनाओं के लिए पूंजी प्राप्त हुई। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय साक्षरता की कमी के कारण इसका दायरा सीमित रहा।
ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम (Rural Electrification Programme)
प्रारंभ तिथि: 1951 (प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: विद्युत मंत्रालय और योजना आयोग
योजना का विस्तार: इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति को बढ़ाना था, ताकि कृषि, लघु उद्योग, और ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा मिले। यह सिंचाई पंपों और ग्रामीण उद्योगों के लिए बिजली प्रदान करने पर केंद्रित था।
उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली पहुंचाना। कृषि उत्पादकता और ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देना। ग्रामीण स्तर पर रोजगार सृजन करना।
महत्व: ग्रामीण विद्युतीकरण ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह हरित क्रांति की नींव के लिए भी आवश्यक था।
लक्ष्य: ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत कनेक्शन की संख्या बढ़ाना। सिंचाई पंपों और लघु उद्योगों के लिए बिजली उपलब्ध कराना। ग्रामीण बेरोजगारी को कम करना।
परिणाम: प्रथम और द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान हजारों गांवों में बिजली पहुंची। सिंचाई पंपों के उपयोग से कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई। ग्रामीण उद्योगों और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई, लेकिन विद्युतीकरण का दायरा सीमित रहा।
लघु सिंचाई परियोजनाएँ (Minor Irrigation Projects)
प्रारंभ तिथि: 1951 (प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: कृषि मंत्रालय और योजना आयोग
योजना का विस्तार: इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे पैमाने की सिंचाई परियोजनाएँ जैसे तालाब, कुएँ, और नलकूप विकसित किए गए। यह मुख्य रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए था।
उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करना। कृषि उत्पादकता बढ़ाना और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन करना, विशेष रूप से कृषि और निर्माण कार्यों में।
महत्व: यह योजना हरित क्रांति से पहले कृषि उत्पादकता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण कदम थी। इसने छोटे किसानों को सशक्त किया और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया।
लक्ष्य: छोटे पैमाने की सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण। वर्षा पर निर्भर खेती को कम करना। ग्रामीण श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर सृजित करना।
परिणाम: प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान 2.5 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को सिंचाई सुविधा मिली। कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई, विशेष रूप से खाद्यान्नों में। निर्माण कार्यों और कृषि गतिविधियों के माध्यम से ग्रामीण रोजगार में वृद्धि हुई।
ग्रामीण सड़क विकास कार्यक्रम (Rural Roads Development Programme)
प्रारंभ तिथि: 1951 (प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: लोक निर्माण विभाग और योजना आयोग
योजना का विस्तार: इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे पैमाने की सिंचाई परियोजनाएँ जैसे तालाब, कुएँ, और नलकूप विकसित किए गए। यह मुख्य रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए था।
उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन सुविधाओं का विकास करना। ग्रामीण उत्पादों को बाजारों तक पहुंचाना। ग्रामीण स्तर पर रोजगार सृजन करना, विशेष रूप से सड़क निर्माण में।
महत्व: ग्रामीण सड़कों ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बाजारों से जोड़ा और ग्रामीण उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा दिया। यह ग्रामीण विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
लक्ष्य: ग्रामीण क्षेत्रों में कच्ची और पक्की सड़कों का निर्माण। ग्रामीण जनता की गतिशीलता और आर्थिक अवसरों को बढ़ाना। सड़क निर्माण के माध्यम से अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार सृजन।
परिणाम: प्रथम और द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान हजारों किलोमीटर सड़कों का निर्माण हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में बाजारों तक पहुंच में सुधार हुआ, जिससे कृषि उत्पादों की बिक्री बढ़ी। सड़क निर्माण में स्थानीय श्रमिकों को रोजगार मिला।
ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम (Rural Water Supply Programme)
प्रारंभ तिथि: 1954 (प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: स्वास्थ्य मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार
योजना का विस्तार: इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना था। इसमें कुओं, हैंडपंप, और छोटे जलाशयों का निर्माण शामिल था, जो सामुदायिक विकास खंडों के माध्यम से लागू किया गया।
उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करना। जलजनित रोगों को कम करना और ग्रामीण स्वास्थ्य में सुधार करना। जल आपूर्ति परियोजनाओं के निर्माण के माध्यम से रोजगार सृजन करना।
महत्व: स्वच्छ जल की उपलब्धता ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य सुधार के लिए महत्वपूर्ण थी। इसने ग्रामीण समुदायों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में योगदान दिया और रोजगार के अवसर सृजित किए।
लक्ष्य: ग्रामीण क्षेत्रों में कुओं और हैंडपंपों की स्थापना। स्थानीय श्रमिकों को जल आपूर्ति परियोजनाओं में रोजगार प्रदान करना। ग्रामीण स्वास्थ्य और स्वच्छता को बढ़ावा देना।
परिणाम: कई ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की सुविधा उपलब्ध हुई। जल आपूर्ति परियोजनाओं के निर्माण में स्थानीय श्रमिकों को रोजगार मिला। हालांकि, सीमित संसाधनों और रखरखाव की कमी के कारण कुछ क्षेत्रों में दीर्घकालिक प्रभाव सीमित रहा।
ग्रामीण स्वास्थ्य और स्वच्छता कार्यक्रम (Rural Health and Sanitation Programme)
प्रारंभ तिथि: 1951 (प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: स्वास्थ्य मंत्रालय और सामुदायिक विकास कार्यक्रम
योजना का विस्तार: इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं और स्वच्छता सुविधाओं को बढ़ावा देना था। इसमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) की स्थापना और स्वच्छता जागरूकता अभियान शामिल थे।
उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाना। स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाना और बीमारियों को कम करना। स्वास्थ्य केंद्रों और स्वच्छता सुविधाओं के निर्माण में रोजगार सृजन करना।
महत्व: यह कार्यक्रम ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए पहला संगठित प्रयास था। इसने ग्रामीण समुदायों के जीवन स्तर को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लक्ष्य: प्रत्येक सामुदायिक विकास खंड में कम से कम एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना। ग्रामीण स्तर पर स्वच्छता सुविधाएँ (जैसे शौचालय) विकसित करना। स्वास्थ्य और स्वच्छता कार्यों में स्थानीय श्रमिकों को रोजगार प्रदान करना।
परिणाम: प्रथम और द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान सैकड़ों प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए गए। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ी, लेकिन शौचालयों का उपयोग सीमित रहा। निर्माण कार्यों और स्वास्थ्य सेवाओं में कुछ स्थानीय रोजगार सृजित हुए।
ग्रामीण कुटीर उद्योग विकास (Development of Rural Cottage Industries)
प्रारंभ तिथि: 1951 (प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) और उद्योग मंत्रालय
योजना का विस्तार: यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों, जैसे हथकरघा, चमड़ा उद्योग, और मिट्टी के बर्तन बनाने जैसे पारंपरिक शिल्पों को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई थी।
उद्देश्य: ग्रामीण कारीगरों और श्रमिकों के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना। पारंपरिक शिल्प और कुटीर उद्योगों को पुनर्जनन करना। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना।
महत्व: इसने ग्रामीण कारीगरों, विशेष रूप से महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों, को आर्थिक रूप से सशक्त किया। यह गांधीवादी आत्मनिर्भरता के सिद्धांतों पर आधारित था।
लक्ष्य: ग्रामीण कारीगरों को प्रशिक्षण, उपकरण, और वित्तीय सहायता प्रदान करना। कुटीर उद्योग उत्पादों के लिए बाजार विकसित करना। ग्रामीण बेरोजगारी को कम करना।
परिणाम: हथकरघा और अन्य कुटीर उद्योगों में हजारों ग्रामीणों को रोजगार मिला। ग्रामीण क्षेत्रों में आय के अवसर बढ़े, विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं के लिए। हालांकि, आधुनिक औद्योगीकरण और बाजार प्रतिस्पर्धा के कारण इसका प्रभाव सीमित रहा।
ग्रामीण प्रशिक्षण केंद्र (Rural Training Centres)
प्रारंभ तिथि: 1952 (सामुदायिक विकास कार्यक्रम के तहत)
शासन: जवाहरलाल नेहरू (प्रधानमंत्री, कांग्रेस सरकार)
प्रारंभकर्ता: ग्रामीण विकास मंत्रालय और योजना आयोग
योजना का विस्तार: इस योजना के तहत ग्रामीण युवाओं और किसानों को कृषि, कुटीर उद्योग, और अन्य तकनीकी कौशलों में प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए।
उद्देश्य: ग्रामीण युवाओं को तकनीकी और व्यावसायिक कौशल प्रदान करना। स्वरोजगार और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देना। ग्रामीण बेरोजगारी को कम करना और उत्पादकता बढ़ाना।
महत्व: यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल विकास और स्वरोजगार को बढ़ावा देने का प्रारंभिक प्रयास थी। इसने ग्रामीण युवाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में मदद की।
लक्ष्य: प्रत्येक सामुदायिक विकास खंड में कम से कम एक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना। ग्रामीण युवाओं को कृषि, हस्तशिल्प, और छोटे उद्योगों में प्रशिक्षण देना। प्रशिक्षित युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना।
परिणाम: कई ग्रामीण युवाओं को कृषि और कुटीर उद्योगों में प्रशिक्षण मिला। कुछ प्रशिक्षित युवाओं ने छोटे उद्यम शुरू किए, जिससे स्थानीय रोजगार बढ़ा। सीमित संसाधनों और प्रशिक्षण केंद्रों की कम संख्या के कारण प्रभाव सीमित रहा।
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