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Devaluation of Rupee
jp Singh 2025-06-03 17:41:26
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रूपये का अवमूलयन/Devaluation of Rupee

रूपये का अवमूलयन/Devaluation of Rupee
रुपये का अवमूल्यन (Devaluation of Rupee) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी देश की सरकार या केंद्रीय बैंक (भारत में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया - RBI) अपनी मुद्रा की कीमत को विदेशी मुद्राओं (जैसे अमेरिकी डॉलर) के मुकाबले आधिकारिक तौर पर कम कर देता है। यह निश्चित विनिमय दर व्यवस्था (Fixed Exchange Rate Regime) में होता है। हालाँकि, भारत में 1991 के बाद से फ्लोटिंग विनिमय दर व्यवस्था लागू है, जिसमें रुपये की कीमत बाजार की माँग और आपूर्ति पर निर्भर करती है। इस संदर्भ में, रुपये की कीमत में कमी को आमतौर पर अवमूल्यन के बजाय अवमूल्यन (Depreciation) कहा जाता है, क्योंकि यह बाजार-प्रेरित प्रक्रिया है।
रुपये का अवमूल्यन (Devaluation) बनाम अवमूल्यन (Depreciation)
अवमूल्यन (Devaluation): सरकार द्वारा निश्चित विनिमय दर को कम करना। भारत में यह 1949, 1966, और 1991 में हुआ। उदाहरण: 1966 में रुपये का 36.5% अवमूल्यन हुआ, जब 1 USD = ₹4.75 से बढ़कर ₹7.50 हो गया। अवमूल्यन (Depreciation): फ्लोटिंग विनिमय दर में बाजार की ताकतों (माँग-आपूर्ति) के कारण रुपये की कीमत में कमी। भारत में 1991 के बाद से यही लागू है। उदाहरण: 2025 में 1 USD = ₹84-85 (लगभग), जो 2020 में ₹74-75 से कम हुआ। रुपये के अवमूल्यन/अवमूल्यन के कारण: चालू खाता घाटा (CAD): आयात निर्यात से अधिक होने पर विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ती है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ता है।
2023-24 में भारत का CAD GDP का 1.2% था, जो 2022-23 के 2% से कम है। मुद्रास्फीति: भारत में उच्च मुद्रास्फीति (2022-23 में ~6%) रुपये की क्रय शक्ति को कम करती है। विदेशी पूंजी प्रवाह: FII (Foreign Institutional Investors) द्वारा पूंजी निकासी रुपये को कमजोर करती है। उदाहरण: 2022 में FII ने ₹1.21 लाख करोड़ की बिकवाली की। वैश्विक कारक: अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की ब्याज दरों में वृद्धि (2022-23 में 5-5.25%) से डॉलर मजबूत हुआ, जिसने रुपये को प्रभावित किया।
कच्चा तेल आयात: भारत 85% कच्चे तेल का आयात करता है, जिससे डॉलर की माँग बढ़ती है। काला धन: विदेशी टैक्स हेवन्स में काला धन (आपके पिछले प्रश्न से) रुपये की माँग-आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है। भारत में रुपये का अवमूल्यन: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: 1949: भारत ने ब्रिटिश पाउंड के साथ रुपये का अवमूल्यन किया। 1966: 36.5% अवमूल्यन, 1 USD = ₹4.75 से ₹7.50। 1991: आर्थिक संकट के दौरान दो चरणों में 18-20% अवमूल्यन, 1 USD = ₹17.90 से ₹25.92। इसके बाद फ्लोटिंग विनिमय दर लागू।
2011-2025: रुपये में लगातार अवमूल्यन (Depreciation)
2011: 1 USD = ₹44.70
2016: 1 USD = ₹67.20
2020: 1 USD = ₹74.10
2025 (जून): 1 USD = ₹84-85 (अनुमानित, वेब सर्च और RBI डेटा पर आधारित)। पिछले 5 वर्षों में रुपये में ~14-15% की गिरावट। रुपये के अवमूल्यन के प्रभाव: सकारात्मक प्रभाव: निर्यात में वृद्धि: रुपये की कम कीमत से भारतीय निर्यात (जैसे कपड़ा, सॉफ्टवेयर, मछली-EEZ से संबंधित) सस्ते हो जाते हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। प्रवासी भारतीयों (NRI) के लिए लाभ: विदेशी मुद्रा में भेजा गया धन (रेमिटेंस) भारत में अधिक मूल्य का होता है। 2023 में रेमिटेंस $125 बिलियन था। पर्यटन: भारत में विदेशी पर्यटकों के लिए यात्रा सस्ती होती है।
नकारात्मक प्रभाव
आयात महँगा: कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, और अन्य आयातित वस्तुएँ महँगी, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ती है। विदेशी ऋण: विदेशी मुद्रा में लिए गए ऋण (जैसे ECB) चुकाने की लागत बढ़ती है। 2024 में भारत का बाह्य ऋण $663 बिलियन था। मुद्रास्फीति: आयातित वस्तुओं की कीमत बढ़ने से उपभोक्ता कीमतें बढ़ती हैं, जो गिनी गुणांक (आय असमानता) को प्रभावित कर सकती हैं। काला धन: रुपये की कम कीमत विदेशी टैक्स हेवन्स में काले धन को और आकर्षक बना सकती है।
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