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Leftist Movement in India
jp Singh 2025-05-28 17:14:53
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भारत में वामपंथ आंदोलन

भारत में वामपंथ आंदोलन
भारत में वामपंथी आंदोलन का इतिहास सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलावों के लिए संगठित संघर्षों से जुड़ा है, जो मुख्य रूप से मार्क्सवादी और समाजवादी विचारधाराओं पर आधारित है। यह आंदोलन श्रमिकों, किसानों, और अन्य शोषित वर्गों के अधिकारों के लिए लड़ता रहा है। भारत में वामपंथी आंदोलन का विकास औपनिवेशिक काल से शुरू हुआ और स्वतंत्रता के बाद भी विभिन्न रूपों में सक्रिय रहा।
प्रारंभिक चरण (1920-1940)
उद्भव: भारत में वामपंथी आंदोलन की शुरुआत 1920 के दशक में हुई, जब रूसी क्रांति (1917) और मार्क्सवादी विचारों ने भारतीय बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को प्रभावित किया। 1920 में, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की स्थापना ताशकंद (वर्तमान उज्बेकिस्तान) में हुई, जिसे एम.एन. रॉय ने नेतृत्व प्रदान किया। यह भारत में पहला संगठित वामपंथी दल था। 1925 में, CPI भारत में औपचारिक रूप से गठित हुई। शुरुआत में यह गुप्त रूप से काम करती थी क्योंकि ब्रिटिश शासन ने इसे अवैध घोषित कर दिया था। प्रमुख गतिविधियाँ: श्रमिक आंदोलन: वामपंथियों ने श्रमिकों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1920 में स्थापित ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) में वामपंथी नेताओं का प्रभाव बढ़ा। किसान आंदोलन: 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) की स्थापना हुई, जिसे स्वामी सहजानंद सरस्वती और अन्य वामपंथी नेताओं ने नेतृत्व दिया। तेभागा (1946-47) और तेलंगाना आंदोलन (1946-51) वामपंथी विचारधारा से प्रेरित थे।
स्वतंत्रता संग्राम: वामपंथी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे, लेकिन उन्होंने साम्राज्यवाद-विरोधी और पूँजीवाद-विरोधी दोनों मोर्चों पर संघर्ष किया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के कुछ नेताओं की मध्यमवर्गीय नीतियों के आलोचक थे। मेरठ षड्यंत्र केस (1929): ब्रिटिश सरकार ने वामपंथी नेताओं को दबाने के लिए 33 कम्युनिस्ट नेताओं पर मुकदमा चलाया, जिसने वामपंथी विचारों को और प्रचारित किया। स्वतंत्रता के बाद (1947-1990): वामपंथी दलों का विकास: CPI का विभाजन: 1964 में, वैचारिक मतभेदों के कारण CPI विभाजित होकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPI(M)) बनी। CPI(M) ने अधिक क्रांतिकारी रुख अपनाया। नक्सलबाड़ी आंदोलन (1967): पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में शुरू हुआ यह सशस्त्र किसान विद्रोह वामपंथी आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इससे CPI (माओवादी) और नक्सलवादी आंदोलन का जन्म हुआ, जो सशस्त्र क्रांति पर केंद्रित था।
चुनावी राजनीति: CPI और CPI(M) ने संसदीय लोकतंत्र में हिस्सा लिया। पश्चिम बंगाल (1977-2011) और केरल में वामपंथी सरकारें लंबे समय तक सत्ता में रहीं। प्रमुख योगदान: भूमि सुधार: वामपंथी सरकारों ने पश्चिम बंगाल में 'ऑपरेशन बार्गा' जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से भूमि सुधार लागू किए, जिससे बटाईदारों को अधिकार मिले। शिक्षा और सामाजिक कल्याण: केरल में वामपंथी सरकारों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक समानता पर जोर दिया, जिसने राज्य को सामाजिक विकास में अग्रणी बनाया। श्रमिक और किसान हित: वामपंथी दलों ने न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा, और MSP जैसे मुद्दों पर आंदोलन चलाए।
र्तमान परिदृश्य (1990-वर्तमान): चुनौतियाँ: वैश्वीकरण और उदारीकरण: 1991 के आर्थिक सुधारों ने वामपंथी आंदोलनों को कमजोर किया, क्योंकि पूँजीवादी नीतियों ने ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों पर दबाव बढ़ाया। नक्सलवाद: नक्सलवादी आंदोलन, जो अब भी माओवादी विचारधारा पर आधारित है, मध्य और पूर्वी भारत के आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय है, लेकिन इसे आतंकवादी गतिविधियों के रूप में देखा जाता है। चुनावी कमजोरी: वामपंथी दलों का प्रभाव पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में कम हुआ है, हालाँकि केरल में वे अभी भी मजबूत हैं।
हाल के आंदोलन: किसान आंदोलन (2020-21): वामपंथी संगठनों, विशेषकर AIKS, ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सम्युक्त किसान मोर्चा के साथ मिलकर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। श्रमिक अधिकार: नए श्रम संहिताओं (2020) के खिलाफ वामपंथी ट्रेड यूनियनों ने विरोध प्रदर्शन किए। प्रमुख संगठन: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI): संसदीय और गैर-संसदीय दोनों मोर्चों पर सक्रिय। CPI(M): वामपंथी दलों में सबसे प्रभावशाली, विशेषकर केरल और पश्चिम बंगाल में। CPI (माओवादी): सशस्त्र क्रांति पर केंद्रित, लेकिन सरकार द्वारा प्रतिबंधित।
ट्रेड यूनियन और किसान सभाएँ: AITUC, CITU, और AIKS जैसे संगठन वामपंथी आंदोलन के आधार रहे हैं। चुनौतियाँ और आलोचनाएँ: वैचारिक कठोरता: वामपंथी दलों पर आधुनिक आर्थिक और सामाजिक बदलावों के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थता का आरोप लगता है। आंतरिक विभाजन: CPI, CPI(M), और माओवादी समूहों के बीच मतभेदों ने आंदोलन को कमजोर किया। क्षेत्रीय सीमाएँ: वामपंथी प्रभाव मुख्य रूप से केरल, पश्चिम बंगाल, और त्रिपुरा तक सीमित रहा है।
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