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Revolt of Farayji
jp Singh 2025-05-28 12:37:50
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फरायजी का विद्रोह

फरायजी का विद्रोह
फरायजी विद्रोह (1838-1857) भारत के पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से) में फरायजी समुदाय द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ किया गया एक धार्मिक-सामाजिक विद्रोह था। यह विद्रोह मुख्य रूप से मुस्लिम किसानों और मजदूरों के शोषण के खिलाफ था और फरायजी संप्रदाय के धार्मिक सुधारों से प्रेरित था।
प्रमुख बिंदु: पृष्ठभूमि: फरायजी संप्रदाय: इसकी स्थापना हाजी शरीअतुल्लाह ने 1818 के आसपास की थी। यह संप्रदाय इस्लाम के शुद्धिकरण और सामाजिक समानता पर जोर देता था। फरायजियों ने गैर-इस्लामी प्रथाओं का विरोध किया और सामाजिक-आर्थिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। शोषण: ब्रिटिश शासन और हिंदू-मुस्लिम जमींदारों द्वारा भारी कर, बेगार, और भूमि हड़पने की नीतियों ने किसानों, विशेष रूप से मुस्लिम किसानों, में असंतोष पैदा किया। आर्थिक दबाव: साहूकारों और जमींदारों द्वारा अत्यधिक ब्याज और शोषण ने फरायजी समुदाय को विद्रोह के लिए प्रेरित किया।
नेतृत्व और प्रारंभ: हाजी शरीअतुल्लाह की मृत्यु (1840) के बाद, उनके पुत्र दुधु मियाँ ने फरायजी आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया और इसे और अधिक संगठित और उग्र रूप दिया। दुधु मियाँ ने फरायजी समुदाय को एकजुट किया और जमींदारों व ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध शुरू किया। विद्रोह का केंद्र फरीदपुर, ढाका, बारीसाल, और मैमनसिंह जैसे क्षेत्र थे। विद्रोह का स्वरूप: फरायजी विद्रोह धार्मिक और सामाजिक सुधारों के साथ-साथ आर्थिक शोषण के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन था। फरायजियों ने जमींदारों की हवेलियों, गोदामों, और ब्रिटिश प्रशासनिक केंद्रों पर हमले किए। उन्होंने कर वसूली का विरोध किया और स्वशासन की मांग की। फरायजियों ने अपने समुदाय को संगठित करने के लिए एक समानांतर प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जिसमें गाँव-स्तर पर "खलीफा" नियुक्त किए गए। विद्रोह ने विशेष रूप से हिंदू और मुस्लिम जमींदारों के खिलाफ मुस्लिम किसानों को एकजुट किया।
दमन और परिणाम: ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को कुचलने के लिए सैन्य बल का उपयोग किया। दुधु मियाँ को 1847 में गिरफ्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया। 1862 में दुधु मियाँ की मृत्यु के बाद उनके अनुयायी नूर मियाँ ने विद्रोह को जारी रखा, लेकिन यह धीरे-धीरे कमजोर पड़ गया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान फरायजी आंदोलन ने कुछ हद तक समर्थन प्रदान किया, लेकिन ब्रिटिशों ने इसे पूरी तरह दबा दिया। विद्रोह के बाद, ब्रिटिशों ने कुछ प्रशासनिक सुधार किए, जैसे कर प्रणाली में बदलाव, लेकिन फरायजी आंदोलन का प्रभाव सीमित रहा। महत्व: फरायजी विद्रोह ने बंगाल के मुस्लिम किसानों में सामाजिक और धार्मिक जागरूकता पैदा की। इसने जमींदारी शोषण और औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रतिरोध की भावना को मजबूत किया।
फरायजी आंदोलन ने बाद के धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों, जैसे वहाबी आंदोलन, को प्रभावित किया। यह विद्रोह बंगाल में किसान अस्मिता और स्वायत्तता के संघर्ष का प्रतीक बना। वर्तमान प्रासंगिकता: फरायजी विद्रोह को बंगाल और बांग्लादेश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण किसान आंदोलन के रूप में देखा जाता है।
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