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Santhal Rebellion
jp Singh 2025-05-28 12:33:34
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संथाल विद्रोह (1855-1856)

संथाल विद्रोह (1855-1856)
संथाल विद्रोह (1855-1856), जिसे संथाल हूल (Santhal Hool) के नाम से भी जाना जाता है, भारत के छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्र (वर्तमान झारखंड, बिहार, और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों) में संथाल आदिवासियों द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन, जमींदारी व्यवस्था और आर्थिक शोषण के खिलाफ एक प्रमुख विद्रोह था। यह भारत में आदिवासी विद्रोहों में सबसे संगठित और व्यापक आंदोलनों में से एक था।
प्रमुख बिंदु: पृष्ठभूमि: भूमि शोषण: ब्रिटिश शासन ने संथाल आदिवासियों की जमीन पर जमींदारी प्रथा लागू की, जिससे उनकी पारंपरिक भूमि व्यवस्था नष्ट हो गई। बाहरी जमींदारों और साहूकारों ने उनकी जमीन हड़प ली। आर्थिक शोषण: संथालों पर भारी कर, बेगार (मजबूरी में मुफ्त श्रम), और सूदखोरी का बोझ था। साहूकार और व्यापारी (महाजन) अत्यधिक ब्याज वसूलते थे। सांस्कृतिक दबाव: ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्म परिवर्तन और आदिवासी संस्कृति का दमन।
दामिन-इ-कोह: संथालों को बसाने के लिए ब्रिटिशों ने 1832 में "दामिन-इ-कोह" (पहाड़ी क्षेत्र) बनाया, लेकिन यहाँ भी जमींदारों और साहूकारों का शोषण बढ़ गया। नेतृत्व और प्रारंभ: विद्रोह का नेतृत्व सिदो मुर्मू और कान्हु मुर्मू (दो भाइयों) के साथ-साथ उनके भाई चाँद और भैरव ने किया। 30 जून 1855 को, सिदो और कान्हु ने भागनाडीह गाँव में हूल (विद्रोह) की घोषणा की, जिसमें हजारों संथाल एकत्र हुए। सिदो ने दावा किया कि उन्हें थाकुर (ईश्वर) का दैवीय संदेश मिला है, जिसने उन्हें शोषण के खिलाफ लड़ने का आदेश दिया।
विद्रोह का स्वरूप: संथाल विद्रोह एक सशस्त्र विद्रोह था, जिसमें संथालों ने तीर-कमान, भाले और अन्य पारंपरिक हथियारों का उपयोग किया। विद्रोह का उद्देश्य था जमींदारों, साहूकारों और ब्रिटिश अधिकारियों को क्षेत्र से खदेड़ना और स्वशासन स्थापित करना। संथालों ने जमींदारों की हवेलियों, साहूकारों के गोदामों, और ब्रिटिश प्रशासनिक केंद्रों पर हमले किए। यह विद्रोह संथाल परगना, भागलपुर, और आसपास के क्षेत्रों में फैल गया।
मन और परिणाम: ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को कुचलने के लिए भारी सैन्य बल का उपयोग किया। सैन्य अभियानों में तोपों और आधुनिक हथियारों का प्रयोग हुआ। 1856 तक विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया गया। सिदो और कान्हु को गिरफ्तार कर फाँसी दे दी गई। अनुमानित रूप से 15,000-20,000 संथाल मारे गए, और कई गाँव नष्ट कर दिए गए।
विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने कुछ सुधार किए, जैसे संथाल परगना क्षेत्र को विशेष प्रशासनिक इकाई बनाना और संथालों के लिए कुछ भूमि अधिकारों की रक्षा करना (संथाल परगना टेनेंसी एक्ट, 1876)।
महत्व: संथाल विद्रोह भारत में आदिवासी प्रतिरोध का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जिसने अन्य आदिवासी आंदोलनों को प्रेरित किया, जैसे मुंडा विद्रोह (1899-1900)। इसने ब्रिटिश शासन को आदिवासी क्षेत्रों में अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया। संथाल हूल ने आदिवासी अस्मिता, एकता और स्वायत्तता की भावना को मजबूत किया।
संथाल विद्रोह को झारखंड और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में गौरव के साथ याद किया जाता है। हूल दिवस (30 जून) को संथाल समुदाय में उत्सव के रूप में मनाया जाता है। सिदो और कान्हु को आदिवासी नायकों के रूप में सम्मान दिया जाता है।
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