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Lord Curzon Viceroy of India
jp Singh 2025-05-27 17:06:58
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लॉर्ड कर्जन का शासन (1899-1905)

लॉर्ड कर्जन का शासन (1899-1905):
लॉर्ड कर्जन (जॉर्ज नथानिएल कर्जन, प्रथम मार्क्वेस कर्जन ऑफ केडलस्टन) का भारत में वायसराय और गवर्नर-जनरल के रूप में शासन 1899 से 1905 तक रहा। उनका कार्यकाल ब्रिटिश भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद कार्यकालों में से एक माना जाता है। लॉर्ड कर्जन एक दृढ़ प्रशासक, सुधारक, और साम्राज्यवादी थे, जिन्होंने भारत में कई दीर्घकालिक सुधार लागू किए, लेकिन उनकी नीतियाँ भारतीय जनता और राष्ट्रीय नेताओं के बीच विवाद का कारण भी बनीं। नीचे उनके शासन का संक्षिप्त और व्यापक विवरण दिया गया है
1. पृष्ठभूमि
लॉर्ड कर्जन को 6 जनवरी 1899 में भारत का वायसराय नियुक्त किया गया। वह एक ऊर्जावान और महत्वाकांक्षी प्रशासक थे, जिनका मानना था कि भारत ब्रिटिश साम्राज्य का
2. प्रमुख नीतियाँ और सुधार
लॉर्ड कर्जन ने भारत में प्रशासनिक, आर्थिक, शैक्षिक, और सैन्य क्षेत्रों में कई सुधार लागू किए। उनके कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं
प्रशासनिक सुधार: प्रशासन को केंद्रीकृत करना: कर्जन ने ब्रिटिश प्रशासन को और अधिक कुशल बनाने के लिए केंद्रीकरण पर जोर दिया। उन्होंने स्थानीय प्रशासन को मजबूत किया और नौकरशाही को और अधिक व्यवस्थित किया। पुलिस सुधार: 1902 में, उन्होंने पुलिस व्यवस्था में सुधार के लिए एक आयोग नियुक्त किया, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस प्रशिक्षण और संगठन में सुधार हुआ। सिंचाई और रेलवे: कर्जन ने सिंचाई परियोजनाओं (जैसे पंजाब में नहरों का निर्माण) और रेलवे नेटवर्क के विस्तार को बढ़ावा दिया, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण था।
प्राच्यवादी नीति: कर्जन ने भारतीय संस्कृति और स्मारकों के संरक्षण पर ध्यान दिया। उन्होंने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को मजबूत किया और ताजमहल जैसे स्मारकों के संरक्षण के लिए कदम उठाए। बंगाल विभाजन (1905): कर्जन की सबसे विवादास्पद नीति बंगाल का विभाजन था। 1905 में, उन्होंने प्रशासनिक सुविधा के नाम पर बंगाल प्रांत को दो भागों में विभाजित किया: पश्चिमी बंगाल (हिंदू-बहुल) और पूर्वी बंगाल व असम (मुस्लिम-बहुल)। इस विभाजन को भारतीय नेताओं ने
शैक्षिक सुधार: कर्जन ने 1901 में विश्वविद्यालय आयोग की स्थापना की, जिसके आधार पर 1904 का भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम का उद्देश्य उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना था, लेकिन इसे भारतीयों ने शिक्षा पर ब्रिटिश नियंत्रण बढ़ाने के प्रयास के रूप में देखा। उन्होंने तकनीकी और वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भी कदम उठाए। आर्थिक और कृषि सुधार: कर्जन ने भूमि राजस्व प्रणाली में सुधार किए और सहकारी समितियों (कॉपरेटिव सोसाइटीज) को बढ़ावा दिया, जिससे किसानों को कर्ज में राहत मिली। उन्होंने कृषि अनुसंधान संस्थानों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया, जैसे पूसा (दिल्ली) में कृषि अनुसंधान संस्थान। सैन्य और सीमा नीतियाँ: कर्जन ने उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत में सैन्य अभियानों को मजबूत किया और रूस के बढ़ते प्रभाव (
1903-1904 में, उन्होंने तिब्बत में यंगहसबैंड अभियान को मंजूरी दी, जिसका उद्देश्य तिब्बत में ब्रिटिश प्रभाव स्थापित करना और रूसी प्रभाव को रोकना था। अकाल प्रबंधन: 1899-1900 में भारत में भीषण अकाल पड़ा। कर्जन ने अकाल राहत के लिए कई उपाय किए, जैसे राहत शिविर और खाद्य वितरण। हालांकि, उनकी नीतियाँ पूरी तरह प्रभावी नहीं थीं, और कई क्षेत्रों में राहत कार्यों की कमी की आलोचना हुई।
3. विवाद और भारतीय प्रतिक्रिया
बंगाल विभाजन का विरोध: बंगाल विभाजन ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को एक नया मोड़ दिया। स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन ने ब्रिटिश वस्तुओं और संस्थानों का बहिष्कार किया, जिससे राष्ट्रीय चेतना बढ़ी। भारतीय नेताओं के साथ तनाव: कर्जन का रवैया भारतीय नेताओं के प्रति रूढ़िगत और तानाशाही था। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को
4. कार्यकाल का अंत
लॉर्ड कर्जन का कार्यकाल दो चरणों में था: 1899-1904 और 1904-1905। 1905 में, उन्होंने किचनर विवाद (भारत में ब्रिटिश सेना के कमांडर-इन-चीफ लॉर्ड किचनर के साथ सैन्य प्रशासन को लेकर मतभेद) के कारण इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद लॉर्ड मिंटो भारत के वायसराय बने। कर्जन 1905 में भारत से ब्रिटेन लौट गए और बाद में ब्रिटिश राजनीति में सक्रिय रहे।5. महत्व और विरासत: लॉर्ड कर्जन का शासन भारत में ब्रिटिश प्रशासन के लिए एक महत्वपूर्ण दौर था। उनके सुधारों ने ब्रिटिश शासन को मजबूत किया, लेकिन साथ ही भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को भी गति दी।
बंगाल विभाजन ने स्वदेशी आंदोलन को जन्म दिया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था। यह विभाजन 1911 में लॉर्ड हार्डिंग के शासनकाल में रद्द कर दिया गया।
कर्जन की नीतियों ने भारत में आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया, जैसे रेलवे, सिंचाई, और शिक्षा, लेकिन उनकी साम्राज्यवादी नीतियों ने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष को और बढ़ाया।
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