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Kopperunjolan (about 2nd century AD)
jp Singh 2025-05-22 16:55:40
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कोप्पेरुन्जोलन (लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी)

कोप्पेरुन्जोलन (लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी)
कोप्पेरुन्जोलन (लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी)
कोप्पेरुन्जोलन (लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी) प्रारंभिक चोल वंश के एक प्रसिद्ध शासक और कवि-राजा थे, जिनका उल्लेख तमिल संगम साहित्य में मिलता है, विशेष रूप से पुरनानूरु और अन्य संगम ग्रंथों में। वे अपनी वीरता, उदारता, और साहित्यिक प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं। कोप्पेरुन्जोलन को न केवल एक शक्तिशाली शासक के रूप में, बल्कि एक कवि के रूप में भी सम्मान प्राप्त था, जिन्होंने तमिल साहित्य और संस्कृति को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी राजधानी उरैयूर थी, और पुहार (कावेरीपट्टनम) उनके शासनकाल में एक प्रमुख व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र बना रहा।
1. सैन्य और प्रशासनिक उपलब्धियाँ:
कोप्पेरुन्जोलन को संगम साहित्य में एक शक्तिशाली और न्यायप्रिय शासक के रूप में वर्णित किया गया है। उन्होंने चेर और पांड्य जैसे पड़ोसी राजवंशों के साथ प्रतिस्पर्धा की और चोल साम्राज्य की स्थिति को मजबूत किया।
उनके सैन्य अभियानों के बारे में विस्तृत जानकारी सीमित है, लेकिन संगम ग्रंथों में उनके युद्ध कौशल और क्षेत्रीय प्रभाव का उल्लेख है।
उनके शासनकाल में पुहार एक समृद्ध बंदरगाह और व्यापारिक केंद्र था, जो रोम, ग्रीस, और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार करता था। उनकी प्रशासनिक नीतियों ने स्थानीय सभाओं (मनरम) के माध्यम से शासन को संगठित रखा।
2. सांस्कृतिक और साहित्यिक योगदान:
कोप्पेरुन्जोलन को एक कवि-राजा के रूप में जाना जाता है। संगम साहित्य में उनकी रचनाएँ शामिल हैं, जो उनकी साहित्यिक प्रतिभा को दर्शाती हैं।
पुरनानूरु में उनकी कविताओं और उनके दरबार में कवियों को दिए गए संरक्षण का उल्लेख है। उनके समय में तमिल काव्य, संगीत, और नृत्य फले-फूले।
उनके दरबार में कवियों और विद्वानों को विशेष सम्मान प्राप्त था, जिसने संगम साहित्य के स्वर्ण युग को और समृद्ध किया। पट्टिनप्पालै जैसे ग्रंथों में पुहार की समृद्धि और सांस्कृतिक वैभव का वर्णन है, जो उनके शासनकाल की उपलब्धियों को दर्शाता है।
3. धार्मिक योगदान:
कोप्पेरुन्जोलन ने वैदिक धर्म, जैन, और बौद्ध धर्मों को संरक्षण प्रदान किया, जो उस समय तमिल समाज में प्रचलित थे। संगम साहित्य में उनके धार्मिक सहिष्णुता और विभिन्न परंपराओं के प्रति समर्थन का उल्लेख है। उनके शासनकाल में धार्मिक उत्सव और सांस्कृतिक गतिविधियाँ आम थीं, जो तमिल समाज की एकता को दर्शाती हैं।
4. किंवदंतियाँ और मृत्यु:
कोप्पेरुन्जोलन की कहानी संगम साहित्य में एक दुखद और वीरतापूर्ण कथा के रूप में वर्णित है। एक किंवदंती के अनुसार, उनके शासनकाल के अंत में उनके एक मित्र और कवि पिसिरन्थयार के साथ उनकी गहरी मित्रता थी।
जब कोप्पेरुन्जोलन को अपने पुत्रों के बीच उत्तराधिकार के विवाद का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने अपने जीवन का अंत करने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि उन्होंने स्वयं को भूखा रखकर (उपवास द्वारा) मृत्यु को प्राप्त किया, और उनके मित्र पिसिरन्थयार ने भी उनके साथ ऐसा ही किया। यह कहानी संगम साहित्य में उनकी निष्ठा और सम्मान की भावना को दर्शाती है। पुरनानूरु में इस घटना का मार्मिक वर्णन है, जो उनकी उदारता और नैतिकता को उजागर करता है।
5. विरासत:
कोप्पेरुन्जोलन की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत तमिल परंपरा में महत्वपूर्ण है। उनकी कविताएँ और उनके दरबार में कवियों को दिया गया संरक्षण संगम साहित्य की समृद्धि का प्रतीक है।
उनके शासनकाल ने चोल वंश की सांस्कृतिक और व्यापारिक नींव को मजबूत किया, जो बाद के शासकों, जैसे करिकाल चोल और नेदुन्जेलियन, के समय में और विकसित हुई। उनकी कहानी तमिल साहित्य में एक प्रेरणादायक और दुखद कथा के रूप में जीवित है, जो उनके व्यक्तित्व की गहराई को दर्शाती है।
संगम साहित्य में उल्लेख:
पुरनानूरु: इस ग्रंथ में कोप्पेरुन्जोलन की कविताओं और उनकी मृत्यु से संबंधित कथा का उल्लेख है। उनकी उदारता, मित्रता, और काव्य प्रतिभा की प्रशंसा की गई है।
पट्टिनप्पालै: यह ग्रंथ पुहार की समृद्धि और उनके शासनकाल के वैभव को दर्शाता है।
पोरुनरारुपदै: इस काव्य में उनके दरबार में कवियों को दिए गए संरक्षण का वर्णन है।
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