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Gilukund
jp Singh 2025-05-20 13:52:55
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गिलुंड सभ्यता

गिलुंड सभ्यता, जिसे बनास संस्कृति या आहड़-बनास परिसर का हिस्सा माना जाता है, भारत के राजस्थान के राजसमंद जिले में बनास नदी के तट पर स्थित एक ताम्रयुगीन (Chalcolithic) पुरातात्विक स्थल है। यह सभ्यता लगभग 1900 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व तक अपने चरम पर थी और हड़प्पा सभ्यता की समकालीन थी। गिलुंड, आहड़-बनास परिसर के 111 कथित स्थलों में सबसे बड़ा है, और इसे स्थानीय रूप से
1. स्थान और भौगोलिक महत्व
गिलुंड, राजस्थान के राजसमंद जिले में, बनास नदी के दक्षिण में लगभग 1.2 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मेवाड़ के मैदान के मध्य में, अरावली पर्वत और दक्कन पठार के बीच बसा है। इसके निकट कोठारी और बेड़च नदियां भी हैं, जो इसे जल संसाधनों के लिए उपयुक्त बनाती थीं। पुरातात्विक शोधों के अनुसार, गिलुंड का क्षेत्र प्राचीन काल में वर्तमान की तुलना में अधिक नम था, जिसने कृषि और बस्ती विकास को बढ़ावा दिया। यह स्थान व्यापारिक मार्गों के लिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह हड़प्पा सभ्यता के स्थलों और अन्य क्षेत्रीय संस्कृतियों से जुड़ा था।
2. खोज और उत्खनन
गिलुंड की खोज 1957-58 में बी. बी. लाल के नेतृत्व में हुई, जिन्होंने प्रारंभिक उत्खनन किया। बाद में, 1998 से 2003 तक, डॉ. वी. एस. शिंदे (पुणे विश्वविद्यालय) और प्रो. ग्रेगरी पोशल (पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय) के निर्देशन में व्यापक उत्खनन किया गया। उत्खनन में दो प्रमुख टीले मिले, जिन्हें
3. नगरीय संरचना और वास्तुकला
बस्ती की संरचना: गिलुंड की बस्ती में दो टीले थे, जो आसपास के खेतों से ऊंचे थे। ये टीले 500 x 250 गज के क्षेत्र में फैले थे।
आवासीय संरचना: मकान मुख्य रूप से धूप में सुखाई गई कच्ची ईंटों और पक्की ईंटों से बने थे। गिलुंड में पक्की ईंटों का उपयोग आहड़ सभ्यता की तुलना में अधिक प्रचलित था।
अनाज भंडारण: दीवारों के बीच अनाज भंडारण के लिए कोठियां और चूल्हों के अवशेष मिले हैं, जो सामुदायिक जीवन और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था को दर्शाते हैं।
सुरक्षा संरचना: कुछ साक्ष्य बताते हैं कि बस्ती के चारों ओर सुरक्षात्मक दीवारें थीं, हालांकि ये हड़प्पा सभ्यता की तरह जटिल नहीं थीं।
जल प्रबंधन: बनास नदी और अन्य जल स्रोतों ने जल आपूर्ति को सुगम बनाया, लेकिन हड़प्पा जैसे उन्नत जल निकासी साक्ष्य नहीं मिले।
4. आर्थिक गतिविधियां
कृषि: गिलुंडवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। उत्खनन में एक मटके में गेहूं के दाने मिले हैं, जो अनाज उत्पादन को दर्शाते हैं।
पशुपालन: गाय, भैंस, और अन्य पशुओं के अवशेष मिले हैं, जो पशुपालन की प्रचलन को दर्शाते हैं।
धातु कार्य: तांबे के बने हथियार, जैसे तीर, छेनी, और कुल्हाड़ियां, उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। तांबे की खानों की निकटता ने गिलुंड को धातु कार्य का केंद्र बनाया।
व्यापार: गिलुंड का हड़प्पा सभ्यता के स्थलों (जैसे कालीबंगा), मध्य भारत, और संभवतः विदेशी क्षेत्रों (ईरान) के साथ व्यापारिक संबंध था। माप और बाट के साक्ष्य व्यापार की उन्नति को दर्शाते हैं।
शिल्प: मनके निर्माण, मृदभांड निर्माण, और हाथी दांत की वस्तुओं (जैसे चूड़ियां) का उत्पादन होता था।
5. सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन
मृदभांड: गिलुंड के मृदभांड लाल और काले रंग के थे, जिन पर ज्यामितीय और प्राकृतिक चित्रांकन (जैसे चिकतेदार हरिण, नृत्य मुद्राएं) थे। उच्च स्तरीय जमाव में क्रीम और काले रंग से चित्रित पात्र मिले हैं।
मूर्तियां: मिट्टी की पशु आकृतियां और मानव मूर्तियां मिली हैं, जो धार्मिक या सांस्कृतिक प्रतीक हो सकती हैं।
अंतिम संस्कार: शव दफनाने की प्रथा प्रचलित थी, जैसा कि आहड़ सभ्यता में देखा गया। कोई बड़ा मंदिर या पूजा स्थल नहीं मिला।
सामाजिक संरचना: सामूहिक चूल्हे और अनाज भंडारण कोठियां संयुक्त परिवार प्रथा और सामुदायिक जीवन को दर्शाती हैं। समाज में कारीगर, किसान, और पशुपालक प्रमुख वर्ग थे।
6. वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियां
तांबे की तकनीक: तांबा गलाने की भट्टियां और उपकरण निर्माण में गिलुंडवासी कुशल थे। तांबे के हथियार और औजार इसकी तकनीकी प्रगति को दर्शाते हैं।
मृदभांड निर्माण: ज्यामितीय और प्राकृतिक डिजाइनों के साथ मृदभांडों की उन्नत तकनीक उनकी शिल्प कला को दर्शाती है।
पक्की ईंटें: गिलुंड में पक्की ईंटों का उपयोग निर्माण में एक महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि थी, जो आहड़ सभ्यता से भिन्न थी।
लौह उपयोग: कुछ साक्ष्य प्रारंभिक लौह उपयोग की ओर इशारा करते हैं, जो ताम्रपाषाणकाल से लौह युग के संक्रमण को दर्शाता है।
7. हड़प्पा सभ्यता से संबंध और अंतर
समानताएं: गिलुंड और हड़प्पा सभ्यता दोनों ताम्रयुगीन थीं, और दोनों में तांबे का उपयोग, कृषि, और व्यापार प्रचलित था। गिलुंड का हड़प्पा के साथ व्यापारिक संबंध भी था।
अंतर: हड़प्पा सभ्यता शहरी थी, जिसमें उन्नत नगर नियोजन, जल निकासी प्रणाली, और दुर्ग थे, जबकि गिलुंड ग्रामीण थी, जिसमें ऐसी शहरी विशेषताएं नहीं थीं। गिलुंड के मृदभांड हड़प्पा के बर्तनों से डिजाइन और रंग में भिन्न थे।
8. प्रमुख पुरातात्विक साक्ष्य
मृदभांड: लाल-काले और क्रीम रंग के बर्तन, ज्यामितीय और प्राकृतिक चित्रांकन (हरिण, नृत्य मुद्राएं)।
तांबे की वस्तुएं: तीर, छेनी, कुल्हाड़ियां। निर्माण सामग्री: पक्की और कच्ची ईंटों की दीवारें, अनाज कोठियां, चूल्हे।
9. पतन के कारण
प्राकृतिक आपदाएं: बनास नदी के मार्ग में परिवर्तन या सूखे ने कृषि और जल आपूर्ति को प्रभावित किया।
संसाधन कमी: तांबे की खानों का अत्यधिक दोहन या व्यापारिक मार्गों का कमजोर होना।
सांस्कृतिक परिवर्तन: अन्य समूहों के आगमन या क्षेत्रीय सांस्कृतिक परिवर्तनों ने पतन को तेज किया। पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि गिलुंड में बस्ती कई बार बसी और उजड़ी, जो पर्यावरणीय या सामाजिक अस्थिरता को दर्शाता है।
10. आधुनिक महत्व
गिलुंड सभ्यता राजस्थान की ताम्रयुगीन संस्कृति और बनास परिसर को समझने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह प्राचीन भारत में ग्रामीण जीवनशैली और तकनीकी प्रगति को दर्शाती है। यह स्थल पुरातत्वविदों और इतिहासकारों के लिए ताम्रपाषाणकाल और लौह युग के बीच के संक्रमण को समझने में सहायक है। गिलुंड का अध्ययन क्षेत्रीय संस्कृतियों और हड़प्पा सभ्यता के साथ उनके व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंधों को उजागर करता है।
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