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Article 353 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-07 14:36:14
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 353

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 353
अनुच्छेद 353 भारतीय संविधान के भाग XVIII (आपात उपबंध) में आता है। यह राष्ट्रीय आपातकाल के प्रभाव (Effect of Proclamation of Emergency) से संबंधित है। यह प्रावधान राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा के दौरान केंद्र सरकार की शक्तियों और राज्यों के साथ उसके संबंधों को स्पष्ट करता है।
"जब अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा लागू हो, तब: (क) संघ की कार्यपालिका शक्ति राज्यों को कार्यपालिका निर्देश देने तक विस्तृत होगी।
(ख) संसद को उन सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति होगी, जो सामान्यतः राज्य सूची में हैं।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 353 का उद्देश्य राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान केंद्र सरकार को असाधारण शक्तियाँ प्रदान करना है ताकि वह देश की सुरक्षा और एकता को बनाए रख सके। यह केंद्र को राज्यों पर कार्यपालिका निर्देश देने और राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति देता है। इसका लक्ष्य राष्ट्रीय सुरक्षा, संवैधानिक व्यवस्था, और संघीय ढांचे में समन्वय सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 353 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत की स्वतंत्रता के बाद की भू-राजनीतिक और आंतरिक चुनौतियों को ध्यान में रखकर बनाया गया, जैसे युद्ध और सशस्त्र विद्रोह। 44वां संवैधानिक संशोधन (1978): 1975 के आपातकाल के दुरुपयोग के बाद, इस संशोधन ने आपातकाल की शक्तियों को संतुलित करने और दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रावधानों को मजबूत किया।
भारतीय संदर्भ: राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान (1962, 1971, 1975) केंद्र ने इस प्रावधान का उपयोग कर राज्यों पर नियंत्रण बढ़ाया। उदाहरण: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान केंद्र द्वारा रक्षा से संबंधित निर्देश। प्रासंगिकता (2025): भू-राजनीतिक तनावों (जैसे, सीमा विवाद, आतंकवाद) और डिजिटल युग में यह प्रावधान राष्ट्रीय सुरक्षा और समन्वित प्रशासन के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 353 के प्रमुख तत्व
संघ की कार्यपालिका शक्ति (खंड क): राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार होता है, जिसके तहत केंद्र सरकार राज्यों को निर्देश दे सकती है।
यह सामान्य स्थिति में राज्यों की स्वायत्तता को अस्थायी रूप से सीमित करता है। उदाहरण: 1962 में चीन युद्ध के दौरान रक्षा उपायों के लिए राज्यों को निर्देश।
संसद की विधायी शक्ति (खंड ख): संसद को राज्य सूची (सातवीं अनुसूची) के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त होता है। यह केंद्र को राष्ट्रीय हित में एकरूप नीतियाँ लागू करने की शक्ति देता है। उदाहरण: आपातकाल के दौरान रक्षा और आंतरिक सुरक्षा पर कानून।
न्यायिक समीक्षा: आपातकाल के दौरान केंद्र के निर्देशों और कानूनों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि वे मनमानी या असंवैधानिक हों। 44वां संशोधन ने न्यायिक समीक्षा की संभावना को मजबूत किया। उदाहरण: मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)।
महत्व: राष्ट्रीय सुरक्षा: संकटकाल में केंद्र की सशक्त भूमिका। संघीय ढांचा: आपातकाल में केंद्र-राज्य समन्वय। प्रशासनिक एकरूपता: राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों का कार्यान्वयन। लोकतांत्रिक संतुलन: संसदीय और न्यायिक निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: शक्ति: केंद्र की कार्यपालिका और विधायी। निर्देश: राज्यों को। कानून: राज्य सूची के विषयों पर। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1962: भारत-चीन युद्ध के दौरान केंद्र द्वारा रक्षा निर्देश। 1971: भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा कानून। 1975: आपातकाल में केंद्र द्वारा राज्यों पर नियंत्रण (विवादास्पद)। 2025 स्थिति: कोई राष्ट्रीय आपातकाल लागू नहीं, लेकिन सतर्कता।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 352: राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा। अनुच्छेद 356: राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता। अनुच्छेद 358: मौलिक अधिकारों का निलंबन। अनुच्छेद 359: मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन का निलंबन।
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