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Article 316 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 16:48:15
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 316

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 316
अनुच्छेद 316 भारतीय संविधान के भाग XIV (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) में आता है। यह लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल (Appointment and term of office of members) से संबंधित है। यह प्रावधान संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति, कार्यकाल, और संबंधित नियमों को नियंत्रित करता है।
"(1) संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी, और संयुक्त लोक सेवा आयोग के मामले में, राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार।
(2) आयोग के कम से कम आधे सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे, जिन्होंने दस वर्ष से अधिक समय तक सरकार के अधीन या किसी विश्वविद्यालय में कोई पद संभाला हो।
(3) अध्यक्ष या सदस्य का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु (UPSC के लिए) और 62 वर्ष (SPSC के लिए) तक होगा, जो भी पहले हो।
(4) यदि कोई रिक्ति अस्थायी रूप से हो, तो राष्ट्रपति किसी अन्य व्यक्ति को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त कर सकते हैं।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 316 का उद्देश्य UPSC और SPSC के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति, कार्यकाल, और योग्यता को विनियमित करना है ताकि लोक सेवा आयोग स्वतंत्र, निष्पक्ष, और सक्षम रहें। यह सुनिश्चित करता है कि आयोगों में अनुभवी और योग्य व्यक्ति नियुक्त हों, जो सिविल सेवाओं की भर्ती में निष्पक्षता बनाए रखें। इसका लक्ष्य प्रशासनिक निष्पक्षता, स्वतंत्रता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 316 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 (धारा 264) से प्रेरित था, जिसमें पब्लिक सर्विस कमीशन के लिए समान व्यवस्था थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को सिविल सेवाओं की भर्ती के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष आयोगों की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 316 ने UPSC और SPSC को मजबूत संवैधानिक आधार दिया। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान UPSC और SPSC की स्वतंत्रता और निष्पक्ष भर्ती प्रक्रिया (जैसे, IAS, IPS, PCS) के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर डिजिटल प्रशासन और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में।
अनुच्छेद 316 के प्रमुख तत्व: खंड (1): नियुक्ति: UPSC और SPSC के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। संयुक्त लोक सेवा आयोग के लिए भी राष्ट्रपति प्रक्रिया निर्धारित करते हैं। उदाहरण: 2025 में, UPSC अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा।
खंड (2): योग्यता: आयोग के कम से कम आधे सदस्य ऐसे होने चाहिए, जिन्होंने 10 वर्ष से अधिक समय तक सरकार के अधीन (केंद्र या राज्य) या किसी विश्वविद्यालय में पद संभाला हो। यह अनुभव और विशेषज्ञता सुनिश्चित करता है। उदाहरण: पूर्व IAS या प्रोफेसर को UPSC सदस्य बनाना।
खंड (3): कार्यकाल: UPSC के अध्यक्ष/सदस्य: 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो पहले हो। SPSC के अध्यक्ष/सदस्य: 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु, जो पहले हो। यह स्वतंत्रता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है। उदाहरण: SPSC सदस्य का कार्यकाल 62 वर्ष की आयु पर समाप्त।
खंड (4): कार्यवाहक अध्यक्ष: यदि अध्यक्ष की रिक्ति अस्थायी हो, तो राष्ट्रपति किसी अन्य व्यक्ति को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त कर सकते हैं। उदाहरण: UPSC में अस्थायी रिक्ति पर कार्यवाहक अध्यक्ष।
न्यायिक समीक्षा: नियुक्तियों और कार्यकाल से संबंधित निर्णयों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि नियुक्तियाँ निष्पक्ष और संवैधानिक हों। उदाहरण: UPSC सदस्य की नियुक्ति पर विवाद।
महत्व: स्वतंत्रता: लोक सेवा आयोगों की स्वायत्तता। निष्पक्ष भर्ती: योग्यता आधारित सिविल सेवा चयन। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन। न्यायिक समीक्षा: नियुक्तियों की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: नियुक्ति: राष्ट्रपति द्वारा। योग्यता: अनुभव की शर्त। कार्यकाल: 6 वर्ष या आयु सीमा। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: UPSC और SPSC की स्थापना और नियुक्तियाँ। 2000 के दशक: SPSC में विवादास्पद नियुक्तियाँ। 2025 स्थिति: डिजिटल भर्ती के लिए UPSC/SPSC की भूमिका।
चुनौतियाँ और विवाद: राजनीतिक प्रभाव: नियुक्तियों में कथित हस्तक्षेप। न्यायिक समीक्षा: नियुक्तियों की वैधता पर कोर्ट की जाँच। सुधार की माँग: आयोगों की स्वतंत्रता को मजबूत करना।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 315: लोक सेवा आयोग की स्थापना। अनुच्छेद 317: सदस्यों की बर्खास्तगी। अनुच्छेद 318: नियम बनाने की शक्ति। अनुच्छेद 319: सदस्यों की अयोग्यता।
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