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Article 216 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 11:25:20
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 216

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 216
अनुच्छेद 216 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह उच्च न्यायालयों का गठन(Constitution of High Courts) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालयों की संरचना और उनके न्यायाधीशों की संख्या को परिभाषित करता है।
"प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और ऐसे अन्य न्यायाधीश होंगे, जिन्हें समय-समय पर राष्ट्रपति नियुक्त करे।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 216 प्रत्येक उच्च न्यायालय की संरचना को परिभाषित करता है, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश शामिल होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। यह प्रावधान उच्च न्यायालयों की संरचना में लचीलापन प्रदान करता है, ताकि आवश्यकतानुसार न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई या घटाई जा सके। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक शासन, और संघीय ढांचे में राज्यों के लिए प्रभावी न्यायिक प्रशासन सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय उच्च न्यायालयों की संरचना को नियंत्रित करता था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली में उच्च न्यायालयों की संरचना को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, उच्च न्यायालयों की स्वतंत्रता और कार्यकुशलता सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान उच्च न्यायालयों के गठन को व्यवस्थित करता है और न्यायिक कार्यभार को संभालने के लिए लचीलापन प्रदान करता है।
अनुच्छेद 216 के प्रमुख तत्व
उच्च न्यायालय की संरचना: प्रत्येक उच्च न्यायालय में: एक मुख्य न्यायाधीश। अन्य न्यायाधीश, जिनकी संख्या राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जाती है। उदाहरण: 2025 में, दिल्ली उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित 60 न्यायाधीश थे।
राष्ट्रपति की शक्ति: राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनकी संख्या निर्धारित करता है। यह नियुक्ति अनुच्छेद 217 के तहत की जाती है। उदाहरण: राष्ट्रपति ने 2025 में कार्यभार के आधार पर अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किए।
महत्व: न्यायिक स्वायत्तता: उच्च न्यायालयों की स्वतंत्र संरचना। लचीलापन: न्यायाधीशों की संख्या में परिवर्तन। लोकतांत्रिक शासन: प्रभावी न्यायिक प्रशासन। संघीय ढांचा: राज्यों में स्वतंत्र न्यायिक ढांचा।
प्रमुख विशेषताएँ: मुख्य न्यायाधीश: प्रत्येक उच्च न्यायालय में। न्यायाधीश: राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त। लचीलापन: संख्या में परिवर्तन। न्यायपालिका: स्वतंत्रता और प्रभुता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई गई। 1980 के दशक: कार्यभार के आधार पर अतिरिक्त नियुक्तियाँ। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में उच्च न्यायालयों की संरचना का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: नियुक्ति में देरी: न्यायाधीशों की कमी से कार्यभार पर प्रभाव। न्यायिक स्वतंत्रता: नियुक्तियों में कार्यकारी हस्तक्षेप के आरोप।न्यायिक समीक्षा: नियुक्ति प्रक्रिया की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 214: उच्च न्यायालयों की स्थापना। अनुच्छेद 217: न्यायाधीशों की नियुक्ति और शर्तें। अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय की संरचना।
Conclusion
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