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Article 133 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 13:24:26
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 133

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 133
अनुच्छेद 133 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह उच्च न्यायालयों से दीवानी मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की अपीलीय अधिकारिता (Appellate Jurisdiction of Supreme Court in civil matters) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालयों के दीवानी निर्णयों, डिक्रियों, या अंतिम आदेशों के खिलाफ अपील की अनुमति देता है, यदि कुछ शर्तें पूरी होती हैं।
अनुच्छेद 133 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"(1) किसी उच्च न्यायालय द्वारा दीवानी कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश से सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है—
(क) यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करता है कि उस मामले में कोई महत्वपूर्ण विधि का प्रश्न शामिल है और उस प्रश्न का निर्णय होना आवश्यक है; या
(ख) यदि उच्च न्यायालय यह समझता है कि उस मामले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय के लिए उपयुक्त समझा जाना चाहिए।
(2) इस संविधान के किसी अन्य उपबंध के होते हुए भी, संसद, विधि द्वारा, यह उपबंध कर सकती है कि इस अनुच्छेद के खंड (1) में उल्लिखित कोई अपील सर्वोच्च न्यायालय में नहीं की जाएगी।
(3) इस अनुच्छेद के अधीन दी गई किसी अपील में, यदि अपील उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए प्रमाणपत्र के आधार पर की गई हो, तो वह उस प्रमाणपत्र में उल्लिखित महत्वपूर्ण विधि के प्रश्न तक ही सीमित होगी।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 133 सर्वोच्च न्यायालय को दीवानी मामलों में उच्च न्यायालयों के निर्णयों, डिक्रियों, या अंतिम आदेशों के खिलाफ अपीलीय अधिकारिता प्रदान करता है। यह सुनिश्चित करता है कि महत्वपूर्ण विधि के प्रश्नों (जो सामान्य महत्व के हों) का समाधान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हो, ताकि कानूनी एकरूपता और स्पष्टता बनी रहे। यह प्रावधान न्यायिक प्रभुता और कानूनी स्थिरता को बढ़ावा देता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान ब्रिटिश सामान्य कानून और अन्य संघीय संविधानों से प्रेरित है, जहाँ सर्वोच्च न्यायालय दीवानी मामलों में महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्नों का अंतिम मंच होता है। भारतीय संदर्भ: भारत में, दीवानी मामले (जैसे संपत्ति, अनुबंध, या परिवारिक विवाद) उच्च न्यायालयों में बड़े पैमाने पर सुनाए जाते हैं। अनुच्छेद 133 इनमें से चुनिंदा मामलों को सर्वोच्च न्यायालय तक लाने की अनुमति देता है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान कानूनी सिद्धांतों की एकरूपता और महत्वपूर्ण मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका को सुनिश्चित करता है।
3. अनुच्छेद 133 के प्रमुख तत्व: खंड (1): अपील की शर्तें सर्वोच्च न्यायालय में अपील तभी हो सकती है, जब उच्च न्यायालय निम्नलिखित में से कोई एक प्रमाणित करे: (क): मामला सामान्य महत्व के महत्वपूर्ण विधि के प्रश्न से संबंधित है और उसका निर्णय आवश्यक है। (ख): उच्च न्यायालय की राय में, यह मामला सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय के लिए उपयुक्त है। दीवानी कार्यवाही: इसमें संपत्ति, अनुबंध, परिवारिक, या अन्य सिविल मामले शामिल हैं। उदाहरण: संपत्ति विवाद में कानून की व्याख्या पर अपील।
खंड (2): संसद की शक्ति संसद, विधि द्वारा, यह प्रावधान कर सकती है कि अनुच्छेद 133 के तहत कुछ अपीलें सर्वोच्च न्यायालय में न की जाएँ। यह प्रावधान संसद को लचीलापन देता है, लेकिन इसका उपयोग अभी तक नहीं हुआ। उदाहरण: कोई विशेष कानून अभी तक नहीं बनाया गया।
खंड (3): अपील का दायरा अपील केवल उच्च न्यायालय द्वारा प्रमाणित विधि के प्रश्न तक सीमित होगी। तथ्यात्मक प्रश्न या अन्य कानूनी मुद्दे इस दायरे में नहीं आते। उदाहरण: अनुबंध कानून की व्याख्या पर अपील।
4. महत्व: कानूनी एकरूपता: सामान्य महत्व के विधि प्रश्नों में एकसमानता। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम प्राधिकारी। न्यायिक प्रभुता: दीवानी मामलों में स्पष्टता। शक्ति पृथक्करण: संसद की सीमित शक्ति।
5. प्रमुख विशेषताएँ: अपीलीय अधिकारिता: दीवानी मामले। उच्च न्यायालय का प्रमाणन: अनिवार्य। महत्वपूर्ण विधि प्रश्न: सामान्य महत्व। संसद की शक्ति: अपील पर प्रतिबंध।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: चुन्नीलाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1964): संपत्ति कानून पर विधि प्रश्न। 2000s: अनुबंध और परिवारिक मामलों में अपीलें। 2025 स्थिति: संपत्ति और कॉर्पोरेट विवादों पर अपीलें।
7. चुनौतियाँ और विवाद: सीमित दायरा: केवल विधि प्रश्न, तथ्यात्मक विवाद बाहर। प्रमाणन में असंगति: उच्च न्यायालयों की भिन्न व्याख्या। न्यायिक समय: अपीलों से कार्यभार की चुनौती।
8. न्यायिक व्याख्या: चुन्नीलाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1964): विधि प्रश्न का दायरा। केशवानंद भारती (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, कॉर्पोरेट और संपत्ति विवादों पर अपीलें। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत अपीलों का डिजिटल रिकॉर्ड। दीवानी मामलों में कानूनी स्पष्टता पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच दीवानी कानूनों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 132: संवैधानिक अपील। अनुच्छेद 134: फौजदारी अपील। अनुच्छेद 136: विशेष अनुमति याचिका।
11. विशेष तथ्य: चुन्नीलाल (1964): संपत्ति विवाद। 2025 मामले: कॉर्पोरेट, संपत्ति। महत्वपूर्ण विधि: सामान्य महत्व। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
Conclusion
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