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Article 71 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-06-30 14:21:37
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 71

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 71
अनुच्छेद 71 का पाठ
अनुच्छेद 70 का शीर्षक है "राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन"। यह संविधान के भाग V (संघ) में शामिल है।
संसद, विधि द्वारा, उन दशाओं में जिनके लिए इस संविधान में उपबन्ध नहीं है, राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिए उपबन्ध कर सकेगी और जब तक इस प्रकार उपबन्ध नहीं किया जाता तब तक उन कृत्यों का इस प्रकार निर्वहन किया जाएगा जिस प्रकार राष्ट्रपति समय-समय पर, सामान्य या विशेष रूप से, निर्देश दे।
उद्देश्य
लचीलापन: अनुच्छेद 70 संसद को यह शक्ति देता है कि वह उन परिस्थितियों में, जहां संविधान में स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं, राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिए कानून बना सके, जिससे संवैधानिक ढांचे में लचीलापन बना रहे।
शासन की निरंतरता: यह सुनिश्चित करता है कि अप्रत्याशित परिस्थितियों में भी राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन बिना किसी रुकावट के हो सके।
संवैधानिक पूर्णता: यह संविधान में संभावित अंतराल को भरने की व्यवस्था प्रदान करता है, ताकि शासन प्रणाली सुचारु रूप से कार्य कर सके।
जवाबदेही: संसद द्वारा कानून बनाने या राष्ट्रपति के निर्देशों के माध्यम से कृत्यों का निर्वहन लोकतांत्रिक जवाबदेही को बनाए रखता है।
प्रशासनिक सुगमता: यह राष्ट्रपति को असाधारण परिस्थितियों में अस्थायी निर्देश जारी करने की शक्ति देता है, जब तक कि संसद विधि द्वारा स्थायी व्यवस्था न कर ले।
ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि
औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन में, वायसराय और गवर्नर-जनरल को व्यापक विवेकाधीन शक्तियाँ प्राप्त थीं, जो क्राउन के निर्देशों पर आधारित थीं। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने एक संवैधानिक और लोकतांत्रिक ढांचा अपनाया, जिसमें राष्ट्रपति की शक्तियाँ संविधान द्वारा सीमित और जवाबदेह हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन: स्वतंत्रता संग्राम में, भारतीय नेताओं ने संवैधानिक शासन और जवाबदेही की वकालत की, जो अनुच्छेद 70 में परिलक्षित होता है।
संविधान सभा: अनुच्छेद 70 (मसौदा अनुच्छेद 60) पर संविधान सभा में चर्चा हुई। डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने तर्कशित परिस्थितियों में शासन की निरंतरता सुनिश्चित करता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: अनुच्छेद 70 यूनाइटेड किंगडम (संसदीय सर्वोच्चता और कार्यकारी शक्तियाँ) और संयुक्त
राज्य अमेरिका (राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियों का नियमन) से प्रेरित है, लेकिन भारतीय संसदीय लोकतंत्र के संदर्भ में ढाला गया।
प्रमुख प्रावधान
संसद की विधायी शक्ति: संसद को उन परिस्थितियों में, जहां संविधान में कोई प्रावधान नहीं है, राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिए कानून बनाने का अधिकार है।
यह शक्ति संसद की सर्वोच्चता और लोकतांत्रिक जवाबदेही को दर्शाती है।
राष्ट्रपति के निर्देश: जब तक संसद कानून नहीं बनाती, राष्ट्रपति सामान्य या विशेष निर्देशों के माध्यम से अपने कृत्यों के निर्वहन की व्यवस्था कर सकता है। यह अस्थायी व्यवस्था अप्रत्याशित परिस्थितियों में त्वरित कार्रवाई की सुविधा प्रदान करती है।
लागू होने का दायरा: यह केंद्र सरकार पर लागू होता है और राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन को नियंत्रित करता
न्यायसंगत प्रकृति: अनुच्छेद 70 एक सक्षमकारी प्रावधान है, जो संसद और राष्ट्रपति को संवैधानिक अंतराल को भरने की शक्ति देता है।
संबंधित अनुच्छेद
अनुच्छेद 53: राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्ति।
अनुच्छेद 74: मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति का कार्य करना।
अनुच्छेद 123: राष्ट्रपति की अध्यादेश-निर्माण शक्ति (अप्रत्याशित परिस्थितियों से संबंधित)।
अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन (आपातकालीन शक्तियों से संबंधित)।
अनुच्छेद 65: उपराष्ट्रपति का कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना (कृत्यों के निर्वहन से संबंधित)।
संबंधित कानून और प्रक्रियाएँ
राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति अधिनियम, 1952: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कृत्यों और शक्तियों से संबंधित कुछ प्रावधानों को नियंत्रित करता है।
संसद की नियमावली: राष्ट्रपति के कृत्यों और संसदीय प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: निर्वाचन और संवैधानिक प्रक्रियाओं से संबंधित प्रावधान।
सरकारी कार्य संचालन नियम, 1961: राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन में मंत्रिपरिषद और प्रशासन की भूमिका को नियंत्रित करते हैं।
अनुच्छेद 70 का व्यावहारिक अनुप्रयोग
सीमित उपयोग: अनुच्छेद 70 का उपयोग दुर्लभ रहा है, क्योंकि संविधान में राष्ट्रपति के अधिकांश कृत्यों के लिए स्पष्ट प्रावधान हैं (जैसे अनुच्छेद 74, 123, 356)। फिर भी, यह अप्रत्याशित परिस्थितियों के लिए एक सुरक्षा उपाय के रूप में कार्य करता है।
उदाहरण: आपातकालीन परिस्थितियाँ: 1975 के आपातकाल के दौरान, राष्ट्रपति के कुछ कृत्यों के निर्वहन में अनुच्छेद70 की भावना का उपयोग हुआ, हालांकि इसे स्पष्ट रूप से लागू नहीं किया गया। प्रशासनिक निर्देश: राष्ट्रपति ने समय-समय पर मंत्रिपरिषद की सलाह पर प्रशासनिक निर्देश जारी किए हैं, जो अनुच्छेद 70 के तहत अस्थायी व्यवस्था का हिस्सा हो सकते हैं।
संसद की भूमिका: संसद ने विभिन्न कानूनों (जैसे आपातकालीन प्रावधानों से संबंधित) के माध्यम से राष्ट्रपति के कृत्यों को नियंत्रित किया है, जो अनुच्छेद 70 की आवश्यकता को कम करता है।
संबंधित मुकदमे
शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य (1974)
पृष्ठभूमि: एक सिविल सेवक की बर्खास्तगी को राष्ट्रपति के आदेश के आधार पर चुनौती दी गई, जिसमें राष्ट्रपति के कृत्यों की प्रकृति पर चर्चा हुई।
मुद्दा:क्या अनुच्छेद 70 के तहत राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन संवैधानिक है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राष्ट्रपति के कृत्य अनुच्छेद 74 के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह के अधीन हैं, और अनुच्छेद 70 अपवादस्वरूप परिस्थितियों में लागू होता है जहां संविधान में प्रावधान नहीं हैं।
महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 70 को राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका और मंत्रिपरिषद की सलाह के साथ जोड़ा।
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006) (बिहार विधानसभा मामला)
पृष्ठभूमि: बिहार विधानसभा के विघटन और राष्ट्रपति शासन को चुनौती दी गई, जिसमें राष्ट्रपति के कृत्यों पर चर्चा हुई।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 70 के तहत राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन संवैधानिक ढांचे के अनुरूप है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राष्ट्रपति के कृत्य संविधान और मंत्रिपरिषद की सलाह के अधीन हैं, और अनुच्छेद 70 असाधारण परिस्थितियों के लिए लागू होता है। महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 70 की संवैधानिक प्रकृति और इसके सीमित दायरे को रेखांकित किया।
बाबूराव पटेल बनाम भारत संघ (1988)
पृष्ठभूमि: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कृत्यों और निर्वाचन में प्रक्रियात्मक मुद्दों को चुनौती दी गई।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 70 के तहत राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन संवैधानिक है?
निर्णय: इस मामले ने अनुच्छेद 70 की वैधता और इसके सक्षमकारी स्वरूप को पुष्ट किया।
मिथिलेश कुमार बनाम भारत संघ (1997)
पृष्ठभूमि: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन और कृत्यों की प्रक्रिया को चुनौती दी गई।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 70 के तहत राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन संवैधानिक है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 70 संवैधानिक ढांचे का हिस्सा है और अप्रत्याशित परिस्थितियों में शासन की निरंतरता सुनिश्चित करता है। महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 70 की संवैधानिक प्रकृति को और मजबूत किया।
एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)
पृष्ठभूमि: कई राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने को चुनौती दी गई, जिसमें राष्ट्रपति के कृत्यों की वैधता पर चर्चा हुई।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 70 के तहत राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन संवैधानिक ढांचे के अनुरूप है?
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राष्ट्रपति के कृत्य संविधान और मंत्रिपरिषद की सलाह के अधीन हैं, और अनुच्छेद 70 असाधारण परिस्थितियों के लिए लागू होता है। महत्व: इस मामले ने अनुच्छेद 70 को राष्ट्रपति की शक्तियों और संवैधानिक जवाबदेही के साथ जोड़ा।
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