हम कह सकते है की पार्टनरशिप दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बिच एक समझौता होता है यह समझौता किसी भी प्रकार से हो सकता है यह समझौता चाहे व्यापार करने के उद्देश्य से हो या प्रॉपर्टी खरीदने के उद्देश्य से हो या अन्य कोई कारण हो अतः हम कह सकते है कि पार्टनरशिप या साझे दरी दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बिच हो सकती है जैसे यदि कोई व्यक्ति कपड़ो का बिज़नेस करना चाहता है तो कोई भी व्यक्ति कोई भी बिज़नेस अकेले नहीं कर सकता है यहां हम कह सकते है कि एक व्यक्ति के दुवारा अकेले बिज़नेस संभालना संभव नहीं है तो वह व्यक्ति बिज़नेस ग्रो करने के लिए एक या एक से अधिक व्यक्तियों के बिच एक साझे दरी स्थापित करना चाहता है वह साझे दरी चाहे पैसे की हो या भारी भागदौड़ की हो साझे दरी किसी भी प्रकार की हो सकती है अतः हम कह सकते है व्यापार को बढ़ाने व् ग्रो करने के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता होती है अकेला व्यक्ति कोई भी बिज़नेस ग्रो नहीं कर सकता है बिज़नेस को चलाने के लिए बहुत से कार्य करने पड़ते है जैसे बिज़नेस के विषय में विज्ञापन करना प्रचार प्रसार करना आदि कार्य होते है कोई भी समझौता जब होता है तो यह साझेदारों के बीच एक कानूनी अनुबंध होता है जिसमे व्यवसाय को मिलकर संचालित करने के लिए एक समझौता करते हैं और लाभ-हानि को आपस में बांटते हैं, तो इसे साझेदारी व्यवसाय कहा जाता है जो साझे दरी द्वारा ही संभव हो सकते है और व्यापार ग्रोथ कर सकता है अतः हम हम सरल शब्दो में कह सकते है किसी भी व्यापार को चलाने के लिए दो या दो से अधिक व्यक्ति के मिलने ही साझेदारी उत्पन होती है व्यवसाय करने के कई तरीके हो सकते है , जिनमें से एक सबसे मुख तरीका साझेदारी (Partnership) है। यदि आप अपने व्यापार को बढ़ाना चाहते हैं लेकिन अकेले कार्यभार नहीं संभाल सकते, तो साझेदारी एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। साझेदारी या कई प्रकार से हो सकती है
1. सामान्य साझेदारी
इसमें हम कह सकते है कि वो साझे दरी जो समान रूप से व्यवसाय की जिम्मेदारी और देनदारी को मिलकर आपस में बाटते और सँभालते है यहां पर व्यक्ति कोई भी निर्णय लेने के लिए समान रूप से अधिकार रखते हैं।
2. सीमित साझेदारी
इस प्रकार की साझेदारी को हम इस प्रकार के स्पष्ट कर सकते है कि कुछ साझेदारी में व्यक्तियों के जिम्मेदारी सिमित ही होती है जो एक व्यक्ति को कार्य सौप दिया जाता है
तो वह व्यक्ति सिर्फ वही जिम्मीदारी व कार्य को देखता है उसका किसी की जिम्मेदारी से कोई लेना देना नहीं होता है वह व्यक्ति सिर्फ अपने ही कार्य को पूरी लगन से करता है
जो व्यवसाय के संचालन का पूर्ण नियंत्रण रखता है, जबकि अन्य जो साझेदार होते है वह केवल इन्वेस्टर होते हैं।
3. सीमित देयता साझेदारी
यह साझेदारी को हम कह सकते है कि यह साझेदारी का एक नया रूप होता है हम कह सकते है कि वह साझे दरी वह साझे दरी होती है जिसमे जितने भी साझेदार होते है
वह सामान रूप से कार्य करते है और सामान रूप से ही सभी बिज़नेस में इन्वेस्ट करते है इस प्रकार की साझे दरी में यदि व्यवसाय को कोई नुकसान होता है,
तो यहां व्यक्तिगत संपत्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ताहै सीमित देयता समझदारी कहलाती है
साझेदारी व्यवसाय करने के फायदे
साझेदारी व्यवसाय करने के अनेक फायदे होते हैं, जैसे: 1 कम इन्वेस्ट में व्यवसाय शुरू किया जा सकता है क्युकि अनेक साझेदारों के योगदान से पूंजी इकठ्ठा करना आसान होता है।
2 साझेदारी करने के यदि बिज़नेस में कोई नुकसान होता है तो सभी साझे दरी मिलकर हुए नुकसान को सामान रूप से झेलते है
3 साझेदारी में एक लाभ यह भी होता है कि जब अनेक साझेदार होते है तो सभी के अनुभव अलग होते है जिससे बिज़नेस में काफी फायदा हो सकता है
4 साझेदारी में सभी व्यक्ति सामान व सरलता से निर्णय लेने और बिज़नेस ग्रो करने में अधिक स्वतंत्रता होती है।
1. उचित साझेदार का चयन कैसे करें
साझेदारी में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ यह है कि आप ऐसे व्यक्ति का चयन करे जो बिज़नेस में रूचि रखता हो जो बिज़नेस में होने वाले लाभ और हानि को समान रूप से झेल सके
बिज़नेस ग्रो करने के लिए अपना पूरा पूरा योगदान दे सके यह एक मुख चीज होती है किसी भी व्यापार को चलने के लिएअतः हम कह सकते है कि किसी भी साझेदार का चयन सही प्रकार से सोच विचारकर चाहिए
2. साझेदारी समझौता कैसे तैयार करें
साझेदारी करने के लिए सबसे पहले एक लिखित साझेदारी समझौता बनाना बहुत आवश्यक व जरूरी होता है, जिसमे कितने साझेदार है, और किस साझेदार का क्या कार्य होगा आदि
शर्ते शामिल होंगी जिसमे यह भी शर्ते होगी कि सभी साझेदार समान रूप से लाभ और हानि को झेलेंगे और यह जो साझेदारी हो रही समय व वर्षो के लिए मान्य होगी
और यह साझेदारी को सभी शर्तो के लिखने के बाद उस साझेदारी समझौते को रजिस्ट्रड कराए व पंजीकरण कराए भारत में, साझेदारी व्यवसाय को कानूनी मान्यता देने के लिए Registrar of Firms के साथ पंजीकरण कराना बेहद जरूरी होता है
साझेदारी बिज़नेस सही प्रकार से ग्रो करने के लिए कुछ डॉक्यूमेंट की भी आवश्यकता होती है जैसे जिस बिज़नेस व् फर्म के लिए आपने साझेदारी स्थापित की है
उस फर्म का pan cord number बनवाए , व्यापार के लिए बैंक खाता खोलें, जीएसटी और अन्य आवश्यक डॉक्यूमेंट बनवाए और फर्म रेजिस्ट्रेड कराए आदि कार्य करने आवश्यक होते है
साझेदारी में होने वाली हानि
जहा साझेदारी करने के कई लाभ होते है वही कई नुकसान भी होते है जैसे
1 सभी साझेदार के विचारो का समान नहीं मिलना और किसी कार्य को लेकर विवाद उत्पन होना व सही प्रकार से निर्णय नहीं ले पाना भी एक साझेदारी करने का नुकसान हो सकता है
2 कभी कभी ऐसा भी होता है कि कोई साझेदार अपने कार्य को सही ढंग से नहीं कर पता है तो ऐसे साझेदार की गलती सभी साझेदार पर असर व प्रभाव डालती है:
साझेदारी में एक साझेदार द्वारा की गई गलती का सभी पर असर डालती है और सभी को हानि पहुँचती है