भारत, विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था और दूसरी सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश, आज विश्व की सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। 21वीं सदी में भारत ने वैश्विक आर्थिक मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। यह ब्लॉग भारत की अर्थव्यवस्था की संरचना, प्रमुख क्षेत्रों, चुनौतियों और संभावनाओं पर प्रकाश डालता है।
भारत की अर्थव्यवस्था का इतिहास :-भारत की आर्थिक संरचना का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। प्राचीन काल में भारत को "सोने की चिड़िया" कहा जाता था क्योंकि यहाँ व्यापार, कृषि और शिल्पकला बहुत उन्नत थे।
• औपनिवेशिक काल: अंग्रेजों के शासनकाल ने भारत की आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था को कमजोर किया। कच्चा माल भारत से ले जाकर इंग्लैंड में उत्पाद बनते थे।
• स्वतंत्रता के बाद: 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था अपनाई — जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों को शामिल किया गया।
• 1991 आर्थिक सुधार: यह वर्ष भारत के आर्थिक इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG reforms) ने देश के आर्थिक विकास को गति दी।
भारत की अर्थव्यवस्था की संरचना
भारत की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तीन क्षेत्रों पर आधारित है:
1. कृषि क्षेत्र (Primary Sector)
• अब भी बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है। , हालाँकि, जीडीपी में कृषि का योगदान घटकर लगभग 15% रह गया है। , सरकार द्वारा MSP, सिंचाई योजनाएँ, किसान क्रेडिट कार्ड आदि योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
2. उद्योग क्षेत्र (Secondary Sector)
• इसमें निर्माण, बिजली, गैस और खनिज शामिल हैं। , "मेक इन इंडिया" और "पीएलआई स्कीम" जैसी योजनाएँ इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई हैं।
. सेवा क्षेत्र (Tertiary Sector)
• यह भारत की अर्थव्यवस्था का सबसे तेज़ी से बढ़ता क्षेत्र है। , सूचना प्रौद्योगिकी, बैंकिंग, बीमा, पर्यटन आदि इस क्षेत्र में आते हैं। ,सेवा क्षेत्र जीडीपी में सबसे बड़ा योगदान देता है (~55-60%)।
भारत की जीडीपी और वैश्विक स्थिति
• भारत वर्ष 2024 तक विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। , IMF और World Bank जैसे संस्थानों के अनुसार भारत की जीडीपी विकास दर 6-7% के आसपास बनी हुई है। , भारत ने डिजिटल भुगतान, स्टार्टअप और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है
भारत की आर्थिक चुनौतियाँ
1. बेरोजगारी और रोजगार का अभाव
2. गरीबी और असमानता
3. कृषि क्षेत्र में संकट
4. बढ़ती जनसंख्या
5. अशिक्षा और कौशल की कमी
सरकारी प्रयास और सुधार
• जन धन योजना: वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए।
• डिजिटल इंडिया: डिजिटल भुगतान और ई-गवर्नेंस।
• उद्यमिता को बढ़ावा: स्टार्टअप इंडिया, मुद्रा योजना।
• GST (वस्तु एवं सेवा कर): एकल अप्रत्यक्ष कर प्रणाली।
भविष्य की संभावनाएँ
• ग्रीन और सस्टेनेबल इकॉनॉमी: नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान।
• डिजिटल इकोनॉमी: AI, IoT, 5G आदि में निवेश।
• मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की संभावना।
• नौकरी आधारित विकास के मॉडल की आवश्यकता।
• ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने की जरूरत।
निष्कर्ष:
भारत की अर्थव्यवस्था विविधताओं से भरी हुई है — जहाँ एक ओर वैश्विक आईटी सेवाओं में दबदबा है, वहीं दूसरी ओर कृषि में अभी भी अस्थिरता है। यदि योजनाबद्ध और संतुलित रूप से सुधार किए जाएँ,
तो भारत 2030 तक विश्व की टॉप-3 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो सकता है। इसके लिए सतत विकास, सामाजिक समावेशन और तकनीकी नवाचार को अपनाना जरूरी है।